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” तुम महामूर्ख हो “

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किसी ने दरवाजा खटखटाया
मै दरवाजा खोला सम्मुख सखा को पाया
उसने मुस्कुराया अभिवादन स्वरूप मै भी मुस्कुराया
उसने कहा- युद्धस्तर पर जा रहा था
गरमी काफी लगी लिहाजा थोड़ा सुसताने आया हूँ
मैंने कहा- आओ सुसताव यह मेरा शौभाग्य होगा
उसने पीठ पीछे से खंजर निकाल चारपाई पर लेटा
पीठ पीछे खंजर देख मै अचंभित हुआ, फिर पूछा
पीठ पीछे खंजर क्यों छिपाए हो!
उसने बेझिझक तपाक से बोला-
             ” तुम महामूर्ख हो “
यह सतयुग नही, ना है त्रेता, द्वापर
यह है कलियुग यहाँ आगे से नही, पीठ पीछे धोखे से करना पड़ता है प्रहार
इतना कहकर डंसने लगा सखा
बनकर आस्तीन के सांप
डंसने के कराह से मेरा नींद टूटा
नींद टूटते ही सम्मुख परम मित्र को पाया
मैनें सपने का वृतांत मित्र को सुनाया
उसने ना घबराने का नसीहत दिया
फिर कहा- चलो अच्छा हुआ
सपने के बहाने ही सही कम से कम आस्तीन के सांप
बाहर तो निकल आया
अब कई लोग उसके डंस से बच जाएगा
जो जैसा करेगा वैसा फल आज नही तो कल जरुर पाएगा
मित्र ने कलियुग मे भी धर्म का पाठ समझाया
कहा- जिनका हृदय स्वच्छ और कर्म होता है नि:स्वार्थी
उनका रथ आज भी खिंचते है कृष्ण, बनकर सारथी ||
पवन कुमार शर्मा  (शिक्षक)
दुमदुमा (असम)
मो.नं. ९९५४३२७६७७

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