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असम साहित्य सभा का तीसरा कार्यकारी पूर्ण अधिवेशन सिलचर में आयोजित किया गया।

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मंत्री कृष्णेंदु पाल ने बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच विभाजन के बजाय भाषा, साहित्य और संस्कृति के माध्यम से एकता का आह्वान किया
सिलचर रानू दत्ता  12 अक्टूबर  : वित्तीय वर्ष 2025-27 के लिए असम साहित्य सभा के तीसरे कार्यकारी पूर्ण सत्र का दूसरा दिन रविवार को सिलचर में एक रंगारंग सांस्कृतिक जुलूस के साथ मनाया गया। जुलूस का मुख्य उद्देश्य बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच एकता, शांति, सद्भाव और प्रगति लाना था। सिलचर शहर के मुख्य मार्ग पर सांस्कृतिक जुलूस में दिवंगत गायक जुबिन गर्ग के शाश्वत गीत ‘मायाबिनी’ की गूंज रही। जुलूस का उद्घाटन राज्यसभा सांसद कणाद पुरकायस्थ ने किया। समारोह में राज्य मंत्री और स्वागत समिति के अध्यक्ष कृष्णेंदु पाल, महासचिव और विधायक दीपायन चक्रवर्ती, असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ. बसंत कुमार गोस्वामी, मुख्य सचिव देबजीत बोरा, विभिन्न साहित्य सभाओं के अध्यक्ष, सांस्कृतिक कार्यकर्ता और संगठन और छात्र उपस्थित थे।
मंत्री कृष्णेंदु पाल ने कहा कि बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच एकता और एकजुटता को लेकर अलग-अलग समय पर कई सवाल उठे हैं। मुख्यमंत्री ने भाषा, साहित्य और संस्कृति के माध्यम से बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर ज़ोर दिया था। असम साहित्य सभा के पिछले बजाली अधिवेशन में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। इसलिए, बराक घाटी में असम साहित्य सभा का एक अधिवेशन और ब्रह्मपुत्र घाटी में बंगाली साहित्य सभा का एक सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया। असम साहित्य सभा का तीसरा पूर्ण अधिवेशन शिलांग में आयोजित किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम ने बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के विभिन्न जातीय समूहों को एक साथ लाकर विभाजन के बजाय एकता का आह्वान किया है। साथ ही, इसने हमें बंगाली और असमिया भाषाओं में एक-दूसरे के साहित्य, कला और संस्कृति को जानने का अवसर दिया है। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ. बसंत कुमार गोस्वामी और मुख्य सचिव देबजीत बोरा ने किया।
राज्यसभा सांसद कणाद पुरकायस्थ ने अपने भाषण में असम साहित्य सभा से बंगाली भाषा के लिए शहीद हुए ग्यारह भाषा शहीदों को आधिकारिक मान्यता देने की पहल करने का आग्रह किया। उन्होंने असम साहित्य सभा से बराक घाटी के ग्यारह शहीदों और असमिया, बंगाली, बिष्णुप्रिया मणिपुरी और दिमासा भाषाई समूहों के शहीदों को आधिकारिक मान्यता देने की पहल करने का आग्रह किया, जिन्होंने राज्य की भाषा और साहित्य के लिए अलग-अलग समय पर अपने प्राणों की आहुति दी। असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ. बसंत कुमार गोस्वामी और मुख्य सचिव देबजीत बोरा तथा अन्य पदाधिकारी असम साहित्य सभा के तीसरे पूर्ण अधिवेशन की सफलता के लिए आयोजित बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने सभी के प्रति हार्दिक धन्यवाद और कृतज्ञता व्यक्त की। विधायक दीपायन चक्रवर्ती ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने सबसे पहले बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच एकता और एकजुटता स्थापित करने की पहल की। ​​उन्होंने कहा कि यह अधिवेशन असम साहित्य सभा के पदाधिकारियों के साथ हुई चर्चाओं के संदर्भ में आयोजित किया गया था। शाम को कछार के जिलाधिकारी मृदुल यादव ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इसमें बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।

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