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सूर्य सी चमक और उजाला मुट्ठी में…!!

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हौंसलें  है संग  तो,पर्वत को  भी हम हिलाते हैं,

लक्ष्य को  पल में अपनी, बांहों में भर  लाते हैं |

 

एकअसफलता ने हमको,सच में जीना सिखाया,

राह  की  ठोकरें खा,फिर उत्साह से जुट जाते हैं |

 

निरंतर प्रयास की गंगा को, देकर ताज़गी यूँ ही,

ऊँचे आसमान को अपने, कदमों  में झुकाते  हैं |

 

सूर्य सी चमक और  उजाला  मुट्ठी  में  है  हमारे,

पथ  में  अंधीयारों से, इसीलिये नहीं  घबराते हैं |

 

ये तूफ़ान क्या रोकेंगे? हमारे बढ़ते क़दमों को,

हम  संकल्पो  से, खुशियों  के  बीज  उगाते हैं |

 

मन में सपनों को, सच करने की ज़िद है हमारी,

चाहे मुश्किलों से सदा, होती हमारी मुलाक़ाते हैं |

 

कवितायें जन्म लेती है,मन की गहराई में “क्रांति”,

माँ सरस्वती के आशीष से, शब्द- पुत्र कहलाते हैं |

 

  प्रहलाद ” क्रांति ” ( कवि )

चित्तौड़गढ़( राजस्थान )

 

 रचना स्वयं रचित, मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित

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