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कल्याण आश्रम ने शिलचर में आयोजित किया प्रो. जी. कमेई स्मृति वक्तृता समारोह

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आर्मेनिया से आई मिस नायरा मार्कसन ने संस्कृति, सभ्यता और परंपरा के संरक्षण का किया आह्वान

विशेष प्रतिनिधि, शिलचर, 18 अक्टूबर:
कल्याण आश्रम दक्षिण असम द्वारा शिलचर में आयोजित प्रो. जी. कमेई स्मृति वक्तृता समारोह में सुदूर आर्मेनिया से आई विदुषी, समाजसेवी एवं शोधकर्ता मिस नायरा मार्कसन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। उन्होंने अपने प्रेरक वक्तव्य में भारत और आर्मेनिया की प्राचीन सभ्यताओं, संस्कृतियों और परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और प्रो. गांगमूई कमेई के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पण से हुआ। स्वागत गीत रंगमई नागा समाज और हेरक्का एसोसिएशन के सदस्यों ने सामूहिक रूप से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन शुभम ने किया, जिन्होंने गुरुचरण विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. निरंजन राय का संदेश भी पढ़कर सुनाया। स्वागत भाषण लुंगथराई रंगमई ने दिया। लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों से वातावरण सांस्कृतिक रंगों में सराबोर हो उठा।

प्रांत संगठन मंत्री केदार कुलकर्णी ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृति के संरक्षण के साथ पूजा-पद्धति को भी अपनाना आवश्यक है — यही संदेश प्रो. जी. कमेई अपने लेखन में देते रहे हैं।

मुख्य अतिथि मिस नायरा मार्कसन ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विस्तार से बताया कि प्राचीन संस्कृति, सभ्यता और परंपरा का दस्तावेजीकरण (Documentation) क्यों और कैसे आवश्यक है। उन्होंने कहा कि “जो अपने लोकगीत, लोककला और मातृभाषा को भूल जाता है, वह अपनी जड़ों से कट जाता है।”

उन्होंने भारत और आर्मेनिया के सांस्कृतिक साम्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि दोनों देशों के लोग सूर्य-पूजा की परंपरा का पालन करते हैं और दोनों की सभ्यताएं वैदिक मूल्यों से प्रभावित रही हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि आर्मेनिया की एक प्राचीन पांडुलिपि में प्रयुक्त नीला रंग भारत से लिया गया था।

मिस मार्कसन, जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली से उच्च शिक्षा प्राप्त की है, ने कहा — “यदि हमें स्वयं को जानना है, तो अपने पूर्वजों को जानना होगा, और इसके लिए मातृभाषा की गहरी समझ जरूरी है।” उन्होंने ऋग्वेद और गीता के उद्धरणों के माध्यम से ज्ञान और शांति के महत्व को रेखांकित किया।

उन्होंने आर्मेनिया की परंपराओं का परिचय भी दिया — जैसे वाइन फेस्टिवलकोहड़ा पुलाव (Pumpkin Pilaf) और पारंपरिक तंदूर संस्कृति। उन्होंने बताया कि भले ही आर्मेनिया की जनसंख्या लगभग 30 लाख है, किंतु विश्वभर में एक करोड़ से अधिक आर्मेनियन लोग बसे हुए हैं, जिनमें भारत के कोलकाता, मुंबई, आगरा, चेन्नई और मैसूर प्रमुख केंद्र हैं।

कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख व्यक्तित्वों में कल्याण आश्रम के वरिष्ठ कार्यकर्ता शांति भूषणसंगठन मंत्री राजेश दासविश्व हिंदू परिषद के प्रदेश अध्यक्ष शांतनु नायकप्रो. संजीव भट्टाचार्यधनंजय तेलीएडवोकेट अरिजीत देववरिष्ठ पत्रकार दिलीप कुमार तथा योगेश दुबे सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जयंत हलांग ने की।

कार्यक्रम के अंत में उपस्थित सभी अतिथियों ने एक स्वर में यह संकल्प लिया कि भारत की जनजातीय और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाएंगे।

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