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गरीब माँ और बेटी की दिवाली

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एक छोटे से गाँव में एक माँ और उसकी नन्ही सी बेटी, गुड़िया, रहती थीं। उनका घर मिट्टी का था, छप्पर से ढका हुआ। माँ दिन भर दूसरों के घरों में काम करती थी — झाड़ू-पोछा, बर्तन-माँजना — ताकि शाम को चूल्हा जल सके।

दिवाली नज़दीक आ रही थी। गाँव के हर घर में रोशनी की तैयारी थी — कोई नए कपड़े ला रहा था, कोई मिठाइयाँ बना रहा था, तो कोई पटाखे खरीद रहा था।
पर गुड़िया के घर में न तो नए कपड़े थे, न मिठाइयाँ, न ही तेल के दीये।

गुड़िया ने मासूमियत से पूछा —
“अम्मा, सबके घर में दीये जल रहे हैं, हमारे घर में क्यों नहीं?”

माँ मुस्कुराई, बोली —
“बिटिया, हमारे दिल में जो सच्चाई का दीया है, वही सबसे उजला है।”

उस रात माँ ने घर के कोने में मिट्टी का एक छोटा-सा दीया बनाया। पुराने तेल के डिब्बे से थोड़ा तेल निकाला, कपड़े का टुकड़ा बाती बना दी।
गुड़िया ने अपनी छोटी हथेलियों से दीया जलाया।

धीरे-धीरे वह दीया जल उठा — छोटा था, पर उसकी लौ ने पूरे कमरे को रोशनी से भर दिया।
माँ ने गुड़िया को गोद में लिया और बोली —
“देख बेटा, असली दीwali दिल की होती है। जब हम सच्चे मन से खुश होते हैं, तो अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है।”

गुड़िया ने मुस्कुराते हुए कहा —
“अम्मा, हमारी दिवाली सबसे प्यारी है, क्योंकि इसमें प्यार की रोशनी है।”

बाहर आसमान में पटाखों की आवाज़ गूँज रही थी, पर उस छोटे घर में ममता, उम्मीद और प्रेम की रोशनी सबसे ज़्यादा चमक रही थी।

Anju.S
BCA 3rd sem
GFGC KR.Puram
Bangalore-36

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