गुजरना होता है परीक्षाओं से
कुछ बनने के लिए
कुछ पाने के लिए.
लाचित को भी देनी पड़ी थी
कई परीक्षा यें
बरसेनापति बनने के लिए.
बुलंद आवाज में दिया आदेश
‘दौलभारी’ लोंगों को
राजा के मन को भा गया.
सय्यद साला और सय्यद फिरोज
को पकड़ने के बावत
राजा ने की चिन्ता ब्यक्त.
कहा लाचित ने कि
राज्य में वीरों की कमी नहीं
आदेश कर देखें श्रीमंत.
हुई संतुष्टी ,पर परखनी थी अभी
आत्म सम्मान बोध और निडरता की
राजा ने बुलाया दरबार.
सोची समझी थी परीक्षा,
नौकर ने उड़ाई ‘पाग’लाचित की
तब काटने को उसे दौड़ पड़ा.
दौड़ा नौकर ली शरण स्वर्ग देव की
सब कुछ समझी बूझी थी परीक्षा
ऐसा राजा ने समझाया.
जब शान्त हुआ, कर सलाह चक्रध्वज ने
दे स्वर्ण मंडित तलवार औ पारितोषिक
दिया ओहदा ‘बर सेनापति’ व ‘बरफूकन का.’
निचले असम का बरफूकन
औ पूर्ण सैन्य के बोरसेनापति
पद पर शोभित लाचित हुआ.
योग्य सैन्य संचालन में
मां असमी का लाल
हुआ सफल.
खदेड़ किया मुगलों को बाहर
ना रखी केवल असमी की लाज
बचा लिया पूर्वी पड़ोसी देशों को भी.
जमने न दिया मुगलों के पांव
दी मुंहकी ऐसी ओरंगजेबी सेना को
बचा लिया भारत के पूर्वोत्तर को.
ऐसा था मां असमी का लाल.
नमन तुझे है बोरफूकन
बोरसेनापति था तूं बेमिशाल.
मुरारी केडिया ९४ ३५० ३३०६०.





















