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मैं भारत का संविधान हूं !
अधिकारों की उज्ज्वल रौशनी लेकर,
कर्तव्यों की राह दिखाता हूं।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,सबको समान रखता हूं।
न्याय, स्वतंत्रता, समता की
मिट्टी से जन्मा।
गाँधी, अम्बेडकर के सपनों को
सच्चा रूप देता।
किताब मात्र नहीं , भारत की आत्मा का स्वर प्यारा।
लोकतंत्र का दीप जलाता
हर जन-मन में उजियार भरता।
अधिकारों की ज्योति हूं,
हर दिल का विश्वास, मुझसे है आशा,
न्याय–समता–स्वतंत्रता
सबको एक सूत्र में बाँध,
नव-भविष्य रचता हूं !
आओ आओ ! हम सब मिलकर इसे निभाएँ,
इसके आदर्शों को अपनाएँ।
नागरिक बनें जिम्मेदार,
भारत को और ऊँचा उठाएँ।
जय-जय भारत का संविधान,
समानता-स्वतंत्रता का महान विधान।
-सुनील कुमार महला





















