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विशेष प्रतिनिधि दिल्ली, 2 दिसंबर: नार्थ ईस्ट संस्था, जो राष्ट्रीय एकता और पूर्वोत्तर भारत से जुड़े मुद्दों के प्रति समर्पित दिल्ली आधारित संगठन है, द्वारा 29–30 नवंबर को हरियाणा भवन, नई दिल्ली में दो दिवसीय वार्षिक आवासीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में कुल दस सत्र हुए, जिनमें उद्घाटन और समापन सत्र भी शामिल थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री उल्हास कुलकर्णी जी ने उद्घाटन और समापन दोनों सत्रों में मुख्य वक्तव्य दिया और पूरी कार्यशाला के विचार-विमर्श की दिशा निर्धारित की।
मुख्य वक्ताओं में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील अंबेकर जी ने वैचारिक अधिष्ठान – हिंदुत्व ही राष्ट्रत्व विषय पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। कार्यशाला में विभिन्न विषय विशेषज्ञों और संगठन पदाधिकारियों द्वारा विस्तृत प्रस्तुतीकरण भी दिए गए। इनमें भाजपा के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रमुख श्री विजय चौथाईवाले जी द्वारा बदलते विश्व क्रम में भारत की भूमिका, मेजर जनरल आर. पी. भदौरिया द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और पूर्वोत्तर, जनजाति सुरक्षा मंच के संगठन मंत्री श्री पी. श्रीनारायण सूरी जी द्वारा स्वदेशी आस्था के संरक्षण का अभियान, पूर्वोत्तर भारत के प्रचार प्रमुख डॉ. सुनील मोहंती जी द्वारा छलपूर्ण नैरेटिव्स का विमोचन, दिल्ली प्रांत प्रचारक श्री विशाल कुमार जी द्वारा सामाजिक परिवर्तन के लिए पंच परिवर्तन, तथा श्री श्याम मोगा जी द्वारा पूर्वोत्तर कार्य – चुनौतियाँ और समाधान विषय शामिल थे।
सत्रों की अध्यक्षता प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों द्वारा की गई, जिनकी उपस्थिति ने संवाद को और समृद्ध किया। इनमें पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो-वाईस चांसलर प्रो. किरण हजारिका, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं असम के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री चिन्मय प्रदीप शर्मा, सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री विक्रमजीत बनर्जी और प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक श्री देबजीत पलित शामिल थे। एक सत्र की अध्यक्षता श्री तोशीवाल जी ने भी की, जिनके अनुभव और मार्गदर्शन से चर्चा को विशेष दिशा मिली।
यह कार्यशाला उत्तर पूर्व संस्था के सदस्यों तथा पूर्वोत्तर भारत से जुड़े नीति, सांस्कृतिक, सामरिक और सभ्यतागत विषयों में रुचि रखने वाले प्रतिभागियों को एक मंच पर लेकर आई। प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से संवाद और विचार-विमर्श में हिस्सा लिया, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ करना, क्षेत्रीय समझ को गहरा बनाना और एक समन्वित तथा जागरूक सभ्यतागत दृष्टिकोण को विकसित करना था।





















