अपने देश में एक पुरानी कहावत प्रचलित है , खरबुजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबुजे पर हर हाल में कटना तो खरबुज को ही हैं । यह कहावत असम के हिन्दीभाषियों पर सटीक चरितार्थ होती है । असम में चाहे किसी भी दल या पार्टी की सरकार बने भुक्तभोगी हिन्दीभाषी ही होते है । यह ध्रुव सत्य है , इससे इनकार नही किया जा सकता है । विगत माह 17 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी नीत असम सरकार ने सदिया को ट्राईबल संरक्षित वर्ग अर्थात ट्राईबल प्रोटेक्टेड क्लास घोषित किया । जिसके अंतर्गत आदिवासी , मोरान , अहोम , सुतिया , गोर्खा आदि शामिल किए गए । हिन्दीभाषीयों को सीधा बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। अर्थात हिन्दीभाषी ट्राईबल प्रोटेक्टेड क्लास के परिधि के बाहर खड़े है । अब सदिया के हिन्दीभाषी न जमीन ( माटी ) खरीद सकते है, न बेच सकते हैं। यदि बेचना भी होगा तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा , उनके लड़के बच्चे का स्थायी निवास प्रमाण पत्र ( पी ० आर ० सी ० ) भी नहीं बन सकेगा। सरकारी योजनाओं के लाभ उन्हे सिमित दायरे में ही प्राप्त होगा। प्रथम दृष्टया हम सरकार के इस घोषणा को सुस्वागतम करते है। असम सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है । परन्तु हिन्दीभाषियों को इस वर्ग या परिधि के बाहर रखना दुर्भाग्य जनक है। या यो कहे कि सरकार द्वारा हिन्दीभाषियों के साथ घोर अन्याय है, उपेक्षा है तथा हिन्दीभाषीयों के प्रति सौतेला व्यवहार है। जिस पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए। सदिया में हिन्दीभाषी समाज सदियों, दशको से रह रहा है तथा सदिया के मिट्टी से रस बस कर जुड़ गये है। सदिया के मिट्टी में इनकी जड़ें गहरायी तक जमी हुई है। अगर सदिया में सबसे ज्यादा खून बहा है तो वो हिन्दीभाषियों का, शायद आपको याद होगा वह मनहुस तारिख दिसम्बर , सन 2000 जिस सदिया के चिनपुरा के समिप तोड़ीबारी कुकुरमारा में दो बाजार गाड़ी को रास्ते में रोककर, उन्हें गाड़ी से उतार कर लाईन में खड़ाकर गोलियों से भून दिया गया था। इस बरदात में 30 बेकसुर हिन्दी भाषी बेमौत मारे गये। मारे गये सभी हिन्दीभाषी छोटे मोटे व्यवसायी थे। यह घटना बस यही तक नहीं रुकी बल्कि बारदात कि सिलसिला जारी रहा और 5 जनवरी 2007 फिर हिन्दीभाषियों के लिए भयानक काली रात साबित हुई जब रात के अंधेरे मे 13 हिन्दीभाषियों को गोलियों से छलनी कर दिया गया जिसमें दो बेजुबान भैसो की भी जान गयी थी। मारे गये सभी लोग निदोष दुग्ध उत्पादक थे, गौपालक थे। जो दुग्ध व्यसाय से जुड़े हुए थे। उस समय भारत के तत्तकालीन प्रधानमंत्री इस गंभीर घटना पर सदिया का दौड़ा किये थे और पीड़ित परिवार जनों के परिजन से मुलाकात कर पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन भी दिया था। तब से अब तक ब्रहमपुत्र नदी में बहुत पानी बह गया मगर किसी को नौकरी नहीं मिली । फिर भी सदिया के चर इलाका ( खुटी ) में बसे उन हिन्दीभाषी गौपालक, मवेशी पालक के जज्बे को दाद देनी होगी कि इतना जान – माल के क्षति के उपरांत आज भी दूध उत्पादन कर तिनसुकिया , डिब्रुगड़ तक दूध सप्लाई करते हैं। उनके दुग्ध उत्पादन से उपरी असम के कई शहरों की मिठाई के होटल में मेवा, मलाई, रसगुला, पनीर सजा रहता है। और लोगो के मुँह को मिठास करते है। सिर्फ यही तक नहीं बल्कि पहले सदिया का दूग्ध सेना को भी सप्लाई किया जाता था और किया जाता है । जिसको सेना के जवान पीकर दुश्मनों के दांत खट्टे करते है। इसके बावजूद भी सदिया के दूर दराज इलाके में गाहे – बिगाहे घटनाएँ होती ही रहती थी । उन आतंकी घटनाओं से तो सदिया के हिन्दीभाषी पहले ही उजड़ गये थे। बाकी जो कुछ कसर बच गयी थी तो सरकार के घोषणा से पूरा हो जायेगा जो हिन्दीभाषी सदिया में बसे है, वे जड़ से ही उखड़ जायेगे। सदिया के हिन्दीभाषियों ने सदिया को अपने खून – पसीना से सिंचा है । सदिया में हिन्दीभाषीयों के सिर्फ लालरक्त ही नहीं बहाया है बल्कि अपना स्वेतरक्त ( व्हाइट ब्लड ) बहा कर सदिया को सिचां है। महाबाहु ब्रह्मपुत्र सदिया के बीचों बीच से गुजरी है, कालान्तर से अभी कुछ वर्ष पहले तक सदिया में आवागमन, यातायात दूर्गम था तब हिन्दीभाषीयों ने ब्रह्मपुत्र नदी में फेरा सेवा प्रदान कर लोगो का आवागमन सुलभ किया था । सुबह हो या शाम रात हो बिरात, पथिको को अपने गंतव्य स्थान तक पहुचाने मे मदद किया है। सदिया के हिन्दीभाषी पहले ही बहुत उथल – पुथल का सामना किया है, थप्पेड़ो के मार झेले है। जब सन 1950 ई 0 में सदिया में भयंकर भूकंप आया था , तो हिन्दीभाषी सबसे पहली बार सदिया से विस्थापित हुए थे। सैखोवा घाट बजार जो उस जमाने विखेरती थी । इसी भुकंम्प के जलजला में ब्रह्मपुत्र के गोद में सदा – सदा हिन्दीभाषियों के दौड़ी – दुकान प्रतिष्ठान की अपार क्षति हुई थी । जिसके कारण सदिया के हिन्दीभाषीयों के लिए समा के में अपनी गुलशन गुलजार गयी । जिसमें PA 4 को विस्थापन द्वषं झेलना – के अवरोध साबित झेलना पड़ा। असम सरकार ने विभिन्न अंचलों में जमीन मुहैया कराकर बसाया, जिसमें फिलोबारी अचंल में सदिया के विस्थापित हिन्दीभाषी बहुतायत है। एसे अनेको दुखो मुसीबतो को झेलने वाले सदिया के हिन्दीभाषीयों के लिए सरकार द्वारा घोषित आदेश उनके जले घावो पर नमक छिटकने के बराबर है, हिन्दीभाषीयों के साथ धोखा है। किसी को कुछ अधिकार मिल रहा है। उससे हिन्दीभाषियों को काई गिला – शिकवा शिकायत नहीं है पर हिन्दीभाषियों का हक – हुकुक भी मिलना चाहिए। मेरा आपना मानना है कि देश जब जात – पात से उपर उठ रहा है तो धरती के भूखण्डों को जात -पात के नाम पर बांटना शुभ नहीं है । यह भविष्य में चलकर विकाश होगा । अगर किसी भी सरकार को नियत लोगो तक समुचित लाभ पहुचौँ सकती है , उसके नीतीश कुमार मिशाल है , जिन्होंने जात – पात के बंधन में जकड़े बिहार के उपेक्षित पिछड़ो – दलितों तक समुचित व्यवस्था द्वारा लाभ मुहैया कराया है । बिना कोई भूखण्ड का निर्धारण किये बेगैर हमारे असम के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री डा. हिंमत विश्व शर्मा एक तेज तर्रार युवा मुख्यमंत्री है। जिनके अंदर राजनैतिक कौशल , परिवक्ता, अनुभव, कुट-कुटकर भरी है । भारतीय राजनीति के परिदृष्य के राष्ट्रीय पटल फलक पर उभारते हुए पूर्वोतर भारत उदयमान राजनेता है। जिनकी कर्मशीलता, कर्मठता की चर्चा बाहर के राज्यों में हो रही है। आजादी के बाद यह पहली बार ऐसा संयोग बना है कि असम के मुख्यमंत्री को बाहर के लोग सुनना – जानना चाहते है। जिसको सुनकर असमवासियों को सुखमय भाव की अनुभूति हो रही है। एतएव सदिया के हिन्दीभाषियों के विषय पर एक बार विगत विधान सभा चुनाव में हिन्दीभाषियों ने दिल खोलकर झोली भर – भर कर सरकार अच्छी हो तो वह वंचित, उपेक्षित, शोषित जाति तरीके है। उदाहरण के तौर के लिए बिहार के मुख्यमंत्री – इसपर पुनः विचार होना चाहिए, को वोट दिये है। सरकार गठन में उनकी मुख्य भूमिका रही है। उन्हे सदिया में उचित सम्मान मिलना चाहिए अन्यथा सदिया में हिन्दीभाषियों के साथ धोखा होगा। सदिया के हिन्दीभाषियों को जमीन का अधिकार, उनका मौलिक, संवैधानिक अधिकार है, उसे बंचित नहीं किया जाये, छीना नहीं जाये । सनद रहे इस बाबत अखिल असम भोजपुरी युवा छात्र परिषद और अखिल असम भोजपुरी परिषद के एक संयुक्त प्रतिनिधि मंडल असम सरकार के एक आलामंत्री से भी मिल चुका है। उस प्रतिनिधि मंडल को सरकार ने भी वादा किया, हिन्दीभाषियों को ट्राईबल प्रोक्टेड क्लास में शामिल किया जायेगा । आशा है सरकार अपने वादा पर कायम रहेगी ।
मनु प्रसाद चौहान, दुमदुमा