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सलमान के खिलाफ गवाही देने वाले की बुरी स्थिति में हुई मौत

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बुधवार को लोग बड़ी बेसब्री से उन व्यक्तियों के लिये इंसाफ़ की प्रक्रिया पर नजर गड़ाये बैठे रहे, जिन पर वर्ष 2002 में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की गाड़ी चढ़ गयी थी. तेरह साल के बाद ही सही पर पीड़ितों को न्याय की उम्मीद थी. जाने वाले वापस नहीं आ सकते और हमेशा साथ रहने वाली भूख और बेबसी को मिटाने के लिये अन्न की जरूरत होती है जो केवल पैसों से आ सकती है. शायद इसलिये उन पर सलमान के ज़ेल जाने या नहीं जाने से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था. मुमकिन है कि इसी कारण उनके लिये मुआवज़ा सलमान को सज़ा होने या नहीं होने से ज्यादा मायने रखता हो.
हालांकि, बुधवार को फुटपाथ पर सोये लोगों पर कार चढ़ा देने के मामले में सत्र न्यायालय के न्यायाधीश ने सलमान को पाँच साल की सज़ा सुनायी, लेकिन तेरह सालों से कागज़ों पर लिखी जाने वाली सज़ा के आदेश का प्रभाव बदलने में मात्र तीन घंटे लगे. सलमान को उच्च न्यायालय से ज़मानत मिल गयी. लेकिन मशहूर, धनी और पहुँच वाले सलमान जैसे अभिनेता को पाँच साल की सज़ा दिलवाने में मुम्बई पुलिस के इस हवलदार की भूमिका महत्तवपूर्ण रही. 28 सितम्बर, 2002 को सलमान के अंगरक्षक के तौर पर तैनात रविंद्र पाटिल के अदालत में दिये बयानों के आधार पर ही उन्हें पाँच साल की सज़ा हुई.
रविंद्र ने अपने बयान में 27 सितम्बर, 2002 की रात और अगले दिन की सुबह की घटना का सिलसिलेवार ब्यौरा अदालत में पेश किया था. घटना के वक़्त उनकी ड्यूटी सलमान के साथ थी. शराब के नशे में फुटपाथ पर सोये लोगों पर गाड़ी चढ़ाने के बाद वो अपने साथ बैठे एक दोस्त कमाल खान के साथ घटनास्थल से जान बचाने के लिये भाग चुके थे.
इस केस में पाटिल वह गवाह था जिसने सबसे पहले एफआईआर दर्ज़ करायी थी. लेकिन उसके बाद की ज़िंदगी उसके लिये आसान नहीं थी. उसके ऊपर अपनी गवाही को बदलने या उससे मुँह मोड़ने का भारी दबाव था. घटना से पहले इन्होंने सलमान को गाड़ी धीमा चलाने की बात कही जिसे शराब के नशे में धुत्त अभिनेता ने अनसुना कर दिया. पुलिस विभाग और सलमान के वकीलों से मिल रहे भारी दबावों और परेशानियों से बचने के लिये ट्रायल के दौरान उसे गुमनाम रहना पड़ा था.
चार लगातार सेशन में वह अदालत में पेश नहीं हुए जिस पर उनके खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी हुआ. मार्च 2006 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और 2007 तक वह जेल में रहे. इसी दौरान उन्हें टीबी हुआ. पुलिस विभाग और परिवार से अलग होने के बाद 2007 में ही उनकी मौत हो गई. मरने से पहले अपने बयान में उन्होंने कहा,”मैं अपने बयान पर अंत तक कायम हूँ लेकिन मेरा विभाग मेरे साथ नहीं खड़ा रहा. मैं अपनी नौकरी वापस चाहता हूँ. मैं जीना चाहता हूँ. मैं एक बार पुलिस कमिश्नर से मिलना चाहता हूँ.”
पंजीकरण संख्या एमएच 01 डीए 32 वाली उनकी गाड़ी टोयोटा लैंड क्रूज़र के नीचे चार लोग फँसे थे. पीड़ितों में एक ऐसा भी था जिसकी मौत हो गयी. रविंद्र पाटिल ने ही मामले की जानकारी बांद्रा पुलिस थाने को दी. इस मामले में उनकी गवाही को अहम आधार मानते हुए सत्र न्यायालय ने सलमान खान को पाँच साल की सज़ा सुनायी. हालांकि, टीबी के मरीज़ पाटिल का वर्ष 2007 में निधन हो गया, लेकिन उनकी दी गयी गवाही सलमान के लिये सज़ा का कारण और उनकी कर्तव्यपरायणता पुलिसवालों के लिये मिसाल बन गयी.

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