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BRICS सम्मेलन से निकल रहे है चीन व भारत शांति के कई रास्ते , ‘मोदी है तो मुमकिन है ‘- अशोक भाटिया

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जैसे ही ये समाचार फैला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के BRICS सम्मेलन के दौरान अहम द्विपक्षीय वार्ता होने जा रही है वैसे ही महाराष्ट्र चुनाव में सोशल मीडिया पर यह नारा ट्रोल होने लगा कि ‘ मोदी है तो मुमकिन है ‘ ।

बताया जाता है कि यह वार्ता 2020 के गालवान संघर्ष के बाद दोनों नेताओं की पहली औपचारिक बैठक होगी। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद (India-China Border Dispute) के बाद यह बैठक विशेष महत्व रखती है। इस बैठक से उम्मीद की जा रही है कि भारत-चीन संबंधों में तनाव को कम करने और भविष्य में शांति बहाल करने के प्रयास होंगे। 2020 में गालवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से भारत और चीन के संबंध काफी तनावपूर्ण हो गए थे। इस संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच कई बातचीत की कोशिशें हुईं, लेकिन पूर्ण रूप से स्थिति सामान्य नहीं हो पाई थी। अब BRICS सम्मेलन के दौरान हो रही इस वार्ता से उम्मीद है कि दोनों देश सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाएंगे।

समाचारों के अनुसार हाल ही में दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर पेट्रोलिंग व्यवस्था पर सहमति बनी है। यह व्यवस्था 2020 से पहले की स्थिति पर लौटने की कोशिश है, जो कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल करने और सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में मदद कर सकती है। महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

बताया जाता है कि इस सम्मेलन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भी मौजूद हैं। यह वार्ता BRICS देशों के बीच वैश्विक मुद्दों पर सहमति बनाने का एक मंच भी है। ऐसे में भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार का सीधा असर इस समूह के अन्य सदस्यों पर भी पड़ सकता है। गालवान संघर्ष के बाद से प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच औपचारिक संवाद बहुत कम हुए हैं। 2023 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए BRICS सम्मेलन के दौरान भी दोनों नेताओं के बीच एक बैठक हुई थी। इसके अलावा 2022 में इंडोनेशिया के बाली में हुए G20 सम्मेलन के दौरान भी एक अनौपचारिक बातचीत हुई थी। लेकिन, यह पहली बार है जब दोनों नेता विस्तृत वार्ता करेंगे।

भारत और चीन के बीच संबंधों में आई कड़वाहट का असर अन्य क्षेत्रों में भी देखा गया था। पिछले चार सालों से दोनों देशों के बीच कोई सीधी फ्लाइट सेवा नहीं थी। साथ ही, चीनी टेक्नीशियनों को वीजा मिलने में भी सुरक्षा संबंधी अतिरिक्त प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा था। अब इस बैठक के बाद उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य क्षेत्रों में भी संबंध सुधरेंगे।

गौर करने वाली बात यह है कि, पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पेट्रोलिंग को लेकर भारत और चीन के बीच बनी सहमति के बाद दोनों देशों के बीच यह बैठक हो रही है। भारत और चीन के बीच बीते कई वर्षों से पूर्वी लद्दाख में जारी सैन्य गतिरोध अब समाप्त होता हुआ नजर आ रहा है। चीन ने पुष्टि की है कि पूर्वी लद्दाख में दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध समाप्त करने के लिए भारत के साथ समझौता हो गया है। 15-16 जून, 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आ गए थे। दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि चीन के भी 40 से ज्यादा सैनिकों की मौत हुई थी। हालांकि, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने आज तक अपने सैनिकों की मौत की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। इस घटना के चार साल बाद अब भारत और चीन ने गतिरोध खत्म करने को लेकर आगे कदम बढ़ाए हैं, जिसका नतीजा दोनों देशों के बीच हुआ समझौता है.

गौर करने वाली बात यह भी है कि कनाडा पिछले कुछ दिनों से भारत पर लगातार बेबुनियाद आरोप लगा रहा है। इसमें अमेरिका सहित कई फाइव आइज देश भी उसका पक्ष लेते नजर आ रहे हैं। जिनपिंग और पीएम मोदी की इस बैठक को फाइव आइज ग्रुप के खिलाफ कड़े जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है। फाइव आइज को ऐसे समझ सकते हैं कि यह दुनिया भर में जासूसी करने के लिए पांच देशों द्वारा मिलकर बनाया गया एक गुट है। जासूसी से मिले इनपुट को ये पांच देश आपस में साझा करते हैं। इस क्लब में अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन शामिल हैं।

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जब 2019 में पहले जब पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई तब चीन ने धोखा दिया था. लेकिन अब उसे भारत की शर्तों पर झुकना पड़ा है. दरअसल, अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के दौरे पर आए थे. दोनों नेता महाबलीपुरम में एक अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिए मिले थे. इस मुलाकात के कुछ महीने बाद ही चीन ने भारत को धोखा दिया था और LAC पर सैन्य गतिरोध पैदा हो गया था.दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थीं. 15 जून, 2020 को भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हो गई थी, जिसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी. इस घटना के बाद सितंबर, 2020 में राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत शुरू हुई. कई दौर की बातचीत के बाद भारत और चीन LAC पर समझौते को तैयार हुए. दोनों मुल्क पैट्रोलिंग पर 2020 से पहले वाली स्थिति पर सहमत हुए हैं. ये समझौता पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात से कुछ घंटे पहले ही हुआ.

इस मुलाकात के पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा था कि समझौते से दोनों देश 2020 वाली स्थिति में लौट आए हैं और दोनों देशों के बीच सेनाओं को पीछे हटाने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने चीनी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी के बाद इस बैठक की पुष्टि की। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि बीजिंग इस घटनाक्रम को सकारात्मक रूप से देखता है और भारत के साथ मिलकर उस समाधान को लागू करने के लिए काम करेगा जो दोनों पक्षों ने निकाला है। विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने चीनी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी के बाद इस बैठक की पुष्टि की। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि बीजिंग इस घटनाक्रम को सकारात्मक रूप से देखता है और भारत के साथ मिलकर उस समाधान को लागू करने के लिए काम करेगा जो दोनों पक्षों ने निकाला है।

मिश्री ने कहा कि समझौते के तहत चर्चा के दायरे में आने वाले क्षेत्रों में गश्त और चराई गतिविधियों के संबंध में 2020 की स्थिति बहाल होगी। उन्होंने कहा कि इसे जमीन पर लागू किया जाना है और भारत ऐसी व्यवस्था के लिए प्रयास करेगा जिससे किसी भी तरह की सीमा झड़प न हो। उन्होंने यह भी कहा कि नया समझौता उन बकाया मुद्दों पर केंद्रित था जो पिछले कुछ वर्षों में सामने आए थे। विदेश सचिव विक्रम मिश्री के अनुसार  हमें अब अलग होने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। सेना की वापसी और उनके ठिकानों पर वापसी के बारे में हम सही समय पर बात करेंगे। भारत ने सोमवार को कहा था कि दोनों पक्ष एलएसी पर गश्त व्यवस्था पर एक समझौते पर पहुंच गए हैं जिससे गतिरोध समाप्त हो गया है और 2020 में शुरू हुए गतिरोध के बाद उभरे मुद्दों का समाधान हो गया है।

अपनी पहली प्रतिक्रिया में, बीजिंग ने कहा कि चीन और भारत ने राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से सीमा से संबंधित मुद्दों पर घनिष्ठ संवाद बनाए रखा है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने टिप्पणी के एक अंग्रेजी अनुवाद के अनुसार कहा कि वर्तमान में, दोनों पक्ष प्रासंगिक मुद्दों का समाधान निकाल चुके हैं, जिसका चीन ने सकारात्मक मूल्यांकन किया है। अगले चरण में, चीन उपरोक्त समाधान को लागू करने के लिए भारत के साथ काम करेगा।

प्रगति के बावजूद, अभी भी कई अनसुलझे मुद्दे हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। इससे पहले कि स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो सके, भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि जहां ‘आसान’ मुद्दों का समाधान हो गया है, वहीं अधिक कठिन परिस्थितियां अभी भी बनी हुई हैं। विशेष रूप से देपसांग के मैदानों और पूर्वी लद्दाख के कुछ हिस्सों में ये अनसुलझे क्षेत्र पूर्ण वापसी के लिए एक चुनौती बने हुए हैं।विशेष रूप से देपसांग एक विवादास्पद क्षेत्र बना हुआ है जहां माना जाता है कि चीनी सेनाएं भारत के दावा वाले क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर जमी हुई हैं। सितंबर 2022 में गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से दोनों पक्षों के सैनिक पीछे हट गए थे, देपसांग में गतिरोध को हल करना इसके रणनीतिक महत्व के कारण अधिक चुनौतीपूर्ण रहा है।

अशोक भाटिया,

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक  एवं टिप्पणीकार

लेखक  5  दशक से लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं

पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड से  सम्मानित,

वसई पूर्व  – 401208 ( मुंबई )E MAIL – vasairoad.yatrisangh@gmail.com   केवल व्हाट्स एप्प 9221232130

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