जयपुर. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के झालावाड़ में रिटायरमेंट के बयान के बाद भाजपा में सियासी भूचाल खड़ा हो गया है. प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. इस चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा राजे को किनारे लगाने की हरसंभव कोशिश की है.
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पार्टी में भूमिका को लेकर जूझती रही. लेकिन पार्टी ने कुछ नहीं किया. भाजपा के टिकट वितरण में भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की ज्यादा चली है. पार्टी ने वसुंधरा राजे को टिकट वितरण में इतनी तरजीह नहीं दी है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भाजपा को इशारा कर दिया है कि पार्टी खुद के दम पर चुनाव लड़ ले. वसुंधरा राजे के इस बयान के बाद पार्टी में खलबली मच गई है. अब सियासी गलियारों में वसुंधरा राजे के बयान के मायने निकाले जा रहे हैं.
दरअसल विधानसभा चुनाव में भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की लोकप्रियता का उपयोग करना चाहती है. पार्टी ने चुनाव को लेकर वसुंधरा की कोई भूमिका तय नहीं की है. राजस्थान में वसुंधरा राजे लोकप्रिय नेता हैं. प्रदेश में वसुंधरा की गिनती भीड़ जुटाने वाले नेताओं में की जाती है. जानकार बताते हैं कि वसुंधरा ने यह बयान देकर पार्टी को संकेत दे दिया है कि विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका स्पष्ट की जाए. आपको बता देते हैं कि राजस्थान में भाजपा में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं. लेकिन पार्टी के अन्य नेताओं का वसुंधरा राजे जितना आधार और पकड़ नहीं है.
राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार ओम बिड़ला और सुनील बंसल महाजन वर्ग से आते हैं, लेकिन उनकी अन्य वर्ग पर कोई खास पकड़ नहीं है. ऐसे ही दिया कुमारी, राजेंद्र राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत राजपूत, अर्जुन मेघवाल दलित, अश्विनी वैष्णव ब्राह्मण, सतीश पूनिया जाट समुदाय से आते हैं. इससे मूल ओबीसी वर्ग में नाराजगी बढ़ती है. राजनीति के जानकारों के मुताबिक वसुंधरा राजे राजपूत, गुर्जर और जाट समुदाय को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं. वसुंधरा राजे प्रदेश के हर वर्ग में, शहर, गांव-ढाणी में पकड़ रखती हैं. बाकी नेताओं की शहरों में ज्यादा पकड़ मजबूत है. ग्रामीण क्षेत्र में उतनी पकड़ नहीं है. जबकि राजस्थान की बड़ी आबादी गांवों में बसती है.