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बराक घाटी में भाजपा क्यों कर रही है हिंदीभाषियों की उपेक्षा? – सच्चिदानंद विद्रोही

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बहुत बड़ा सवाल है? बराक घाटी में भाजपा क्यों कर रही है हिंदीभाषियों की उपेक्षा? लोकसभा चुनाव सर पर है फिर भी सोच समझकर बराक घाटी के हिंदीभाषियों की उपेक्षा की जा रही है। यू तो असम में जबसे भाजपा की सरकार आई है, पार्टी और सरकार दोनों जगह हिंदीभाषियों का कोई सम्मान नहीं हैं। भाजपा ने आते ही हिंदीभाषियों से उधारबंद, राताबाड़ी और पाथरकांदी विधानसभा सीट छीन ली। पार्टी में जगह मिलती तो भी कहा जाता, तीन जिलों में एक भी जिला अध्यक्ष हिंदी भाषी नहीं है। यही नहीं करीमगंज और काछार में जिलाध्यक्ष तो क्या एक भी मंडल अध्यक्ष हिंदीभाषी नहीं है। जगह जगह पार्टी में हिंदीभाषी बहुल क्षेत्रों में भी गैर हिंदीभाषी को अध्यक्ष बनाया गया है। तीनों जिलों के सरकारी बोर्ड में एक में भी किसी हिंदीभाषी को चेयरमैन नहीं बनाया गया। जब से भाजपा आई है हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति भी बंद थी। कई संगठनों के सम्मिलित प्रयास के बाद सरकार ने विज्ञापन जारी किया है, किंतु नियुक्ति होगी भी या नहीं संदेह है, कारण फरवरी में चुनावी आचार संहिता लागू होने की संभावना है।
ये सब विषय तो है ही डलू चाय बागान में बल प्रयोग करके एयरपोर्ट के लिए जमीन दखल करना चाय बागान वासियों में अब भी क्षोभ बरकरार है। घुंघूर बाईपास में शहीद मंगल पांडेय की मूर्ति स्थापना के लिए दो साल से अनुमति नहीं देना भी हिंदीभाषियों में क्षोभ का कारण बन सकता है। केवल हिंदीभाषी नही बल्कि बुरे बराक घाटी के साथ भेदभाव हो रहा है, 15 विधानसभा सीट से तेरह कर दिया गया, हिंदीभाषी/ चाय बागान बहुल क्षेत्रों को काटपीटकर ऐसा कर दिया गया है कि कभी भी चाय बागान के प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा न जाने पाए।
भाजपा के मनमाने आचरण के पीछे उसका अति आत्मविश्वास है कि हिंदू मतदाता जाएंगे कहां? 2014, 2016, 2019 व  2021 के  चुनावों में बराक घाटी के हिंदीभाषियों व चाय जनगोष्ठी ने दोनों हाथों से भर-भर कर भाजपा को वोट दिया। 2021 में कांग्रेस ने 6-6 प्रत्याशी खड़े किए फिर भी हिंदीभाषियों और चाय जनगोष्ठी ने भाजपा को ही वोट दिया। इसलिए भाजपा ने मान लिया है कि हिंदीभाषी और चाय जनगोष्ठी उसका वोट बैंक हो गया। काछार भाजपा के बड़े बड़े हिंदीभाषी नेताओं उदय शंकर गोस्वामी, अवधेश कुमार सिंह को हाशिए पर धकेल दिया गया। भारतीय चाय मजदूर संघ और सेवा भारती जैसे संगठन जो चाय बागान क्षेत्र में काम करते थे, उन्हें भी निष्क्रिय कर दिया गया। हर चुनाव से पहले भाजपा का टी सेल सक्रिय कर दिया जाता है। भाजपा भी उसी नक्शे कदम पर चल रही है जिस पर कांग्रेस चलती थी। चले भी क्यों नहीं सरकार और संगठन दोनों को पूर्व कांग्रेसी ही चला रहे। भाजपा में पुराने कार्यकर्ताओं की कोई कदर नहीं है।
शिलचर मेडिकल कॉलेज, एन आई टी, असम विश्वविद्यालय आदि सभी संस्थान चाय बागान की जमीन पर बने हुए हैं लेकिन चाय जनगोष्टी के लोगों को चतुर्थ श्रेणी में भी अवसर नहीं दिया जा रहा। असम विश्वविद्यालय में लैंड लूजर एसोसिएशन ने कितना धरना प्रदर्शन किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
इसी भाजपा ने असम के 29 लाख नागरिकों का बायोमेट्रिक ब्लाक कर रखा है,जिसके चलते आधार कार्ड नहीं बन पा रहा और इन लोगों को बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा को हिंदुत्व, राममंदिर और मोदी के नाम का ऐसा अहंकार हो गया है कि उसे किसी की परवाह ही नहीं है।

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