हर चीज अभ्यास एवं त्याग तपस्या से मिलती है इसी तरह बौद्धिक विकास भी धीरे धीरे अध्ययन एवं एक अच्छे श्रोता को तब मिलता है जब वो संत महात्माओं राजनेताओं कथा वाचकों एवं अन्य वक्ताओं के संबोधन ध्यान से सुनकर एक एक शब्दों को चुनकर माला बनाने के बाद श्रोताओं को संक्षिप्त सारगर्भित एवं सही तथ्यों के साथ अपनी बात रखता है तो यदि दमदार व्यक्तव्य हो तो विषय भले ही कमजोर हो लेकिन रुचि लेकर फिर सुनने जाते हैं। देश में स्वर्गीय इंदिरा गाँधी अटल बिहारी वाजपेयी चंद्रशेखर सुषमा स्वराज स्मृति ईरानी नरेंद्र मोदी सहित अन्य राजनीतिक दलों के भी ऐसे नेताओं के भाषण सुनकर लोग प्रभावित होते आये है। बोलने का अंदाज यदि कोई भी भाषा में हो तो जनता आकर्षित होती है। बोलना उतना ही चाहिए जितना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होता है। जिस समाज में अच्छे वक्ता हो अपने भाषण को रोमांटिक अंदाज़ एवं शेरों शायरी एवं काव्य की पंक्तियों के साथ जहाँ जरुरी हो वहाँ मार्मिक ओर जहाँ विषयगत आवश्यक हो रोबदार शब्दों में प्रस्तुत करना चाहिए। काग़ज़ पर लिखकर लाने में कोई बुराई नहीं है वो ठीक से ऐसे जनता के सामने रखना चाहिए कि लोग प्रभावित हो। बिना वाकपटूता के व्यक्ति एवं समाज भले ही आर्थिक रूप से संपन्न हो लेकिन बौद्धिक के बिना गुंगा माना जाता है। किसी भी कार्यक्रम का संचालन बहुत ही मर्यादित ढंग से तथा पहले से जानकारी इकट्ठा करके ही किया जाना चाहिए बीच बीच मे कुछ सुझाव देने लोग आते हैं वो कभी कभी महत्वपूर्ण भी हो सकतें है बिना विचलित हुए शामिल कर लेना चाहिए लेकिन कार्यक्रम की गति में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए।
