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मुलुक चलो आंदोलन’ के बलिदानियों को शिलचर में दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

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शिलचर, 22 मई: बराक घाटी ( तत्कालीन सुरमा वैली ) में 21 मई 1921 में घटित मुल्क चलो आंदोलन’ के बलिदानों को शिलचर शहर में भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। अलग  – अलग इलाकों में अस्थाई शहीद बेदी बनाकर गुमनाम बलिदानियों के याद में पुष्पांजलि और दीप प्रज्वलन किया गया। इसके अलावा शाम को हिंदी भवन में मुलुक चलो आंदोलन श्रद्धांजलि समारोह आयोजन समिति द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आमंत्रित अतिथियों और प्रबुद्ध नागरिकों ने उक्त कार्यक्रम में मुलुक चलो आंदोलन पर अध्ययन कर रहे करीमगंज कॉलेज के प्रो• डॉ सुजीत तिवारी, दिवाकर रॉय, वरिष्ठ समाजसेवी महावीर प्रसाद जैन, परमेश्वर लाल काबरा, पूर्व विधायक तथा बराक चाय श्रमिक यूनियन के महासचिव राजदीप ग्वाला, अवधेश कुमार सिंह, राजकुमार दुबे, विधान सिन्हा आदि ने अपने वक्तव्य में आंदोलन पर प्रकाश डाला। प्रो• तिवारी और दिवाकर रॉय ने मुलुक चलो आंदोलन के इतिहास से जुड़ी जानकारी सबके समक्ष रखा। प्रो• तिवारी ने अपने वक्तव्य ने कहा कि बराक घाटी में कठिन परिश्रम से चाय उद्योग खड़ा हुआ । ब्रिटिश शासनकाल में श्रमिकों के साथ जो हुआ इसे सभी को जानना चाहिए । मुलुक चलो आंदोलन को एक छोटा सा विद्रोह बताकर इतिहास को दबा दिया गया। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बस्ती जिले से भी बड़ी संख्या में लोगों को चाय श्रमिकों के रूप में लाया गया था । पंडित देव शरण त्रिपाठी महात्मा गांधी जी से बहुत प्रभावित थे । पंडित देव शरण त्रिपाठी और गंगा दयाल दीक्षित सहित अन्य ने अंग्रेजों के अत्याचार का विरोध किया था । हजारों लोगों ने उनका समर्थन और सहयोग किया । मुलुक चलो आंदोलन पूर्ण रूप से स्वराज का आंदोलन था । पंडित देव शरण त्रिपाठी जोरहाट जेल, जिसे असम का काला पानी भी कहा जाता है,  में अनशन करके प्राण त्याग किए। गंगा दयाल दीक्षित शिलचर के प्रेमतल्ला में प्राण त्याग दिया । अनगिनत लोगों ने बलिदान दिया, जिनके इतिहास को संकलित कर सामने लाना होगा । मुलुक चलो आंदोलन के इतिहास पाठ्यक्रम में शामिल हो यह प्रयास होना चाहिए । दिवाकर रॉय ने कहा कि अब यह हमारी जिम्मेदारी है अपने पूर्वजों के इतिहास को मर्यादा दिला सके। उन्होंने इस आंदोलन के कई बिंदुओं पर प्रकाश डाला । राजदीप ग्वाला ने कहा इस इतिहास को घर घर पहुंचाना है। उन्होंने बराक चाय श्रमिक यूनियन की तरफ एक प्रयास शुरू किया है। अंग्रेजों द्वारा बाहरी प्रदेशों से बड़ी संख्या में लोगों को चाय श्रमिक के रूप में लाया गया था, उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार खिलाफ विद्रोह किया । अगणित लोग बलिदान दिए । महावीर प्रसाद जैन ने कहा कि मुलुक चलो आंदोलन का इतिहास एक पुस्तक के रूप में सबके समक्ष आना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं की प्रयास कर रहे हैं, देश के गुमनाम बलिदानियों का इतिहास उजगार करने के लिए। विश्व विद्यालय में इसका विवरण दिया जाना चाहिए । जैन ने कहा कि श्रमिकों के बलिदान को भुलाया नही जा सकता । मौजूदा परिस्थिति में भी श्रमिकों दशा इतनी ठीक नहीं है । यह भी सत्य है, चाय उद्योग की स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है । विधान सिन्हा ने कहा कि बराक घाटी के इतने बड़े आंदोलन के इतिहास, जो जलियां वाला बाग जैसा ही आंदोलन था, को दबाकर रखा गया। राष्ट्रीय स्तर तक इस इतिहास को उठाया जाएगा । अवधेश सिंह ने कहा देश के आजादी के बाद भी जनता जागरूक है ।  अंग्रेजी हुकूमत के समय भी दबाने का प्रयास किया गया, लोगों ने विरोध किया था । इतिहास को कोई दबा नही सकता । इतने सालों के बाद आज मुलुक चलो आंदोलन उजागर हो रहा है। युवा भी इस इतिहास को जानने ने रुचि रख रहे हैं। इस अवसर पर प्रदीप कुर्मी, युगल किशोर त्रिपाठी, प्रमोद जायसवाल, अनंत लाल कुर्मी, राजन कुंवर, राजदीप रॉय, राजेश मिश्रा, बीनापानी मिश्र, बिंदु सिंह, अपर्णा तिवारी, सुपर्णा तिवारी,  मनीष पांडेय, राजीव रॉय, नीतीश तिवारी, आनंद दुबे, योगेश दुबे आदि की उपस्थिति रही । कमला सोनार ने उपरोक्त आंदोलन के शहीदों पर स्वरचित गीत की प्रस्तुति दी । चंद्र कुमार ग्वाला, दिलीप सिंह ने कविता का पाठ किया । प्रदीप कुर्मी ने कुशल संचालन किया ।

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