असम में 58,128 हेक्टेयर में राज्य के 38 हजार से अधिक किसान रबर की खेती करते हैं। लेकिन, आज भी वे आर्थिक रूप से स्वावलंबी नहीं हो पाए हैं। इसके पीछे मुख्य वजह उनके द्वारा परंपरागत रूप से की जाने वाली रबर की खेती है। परंपरागत रूप से खेती करने के कारण किसानों का उत्पाद बाजार में उचित कीमत पाने में विफल हो जाता है। साथ ही उत्पादन भी भरपूर नहीं होता है।
उल्लेखनीय है कि भाकिसं राज्य में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के कदम उठा रहा है। जिसमें धान की उन्नत खेती करने के अलावा खेती से जुड़े यंत्रों के उपयोग के लिए समय-समय पर विशेषज्ञों के साथ किसानों को परामर्श दिलाने समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। जिसका किसानों को काफी लाभ मिल रहा है। आज का गोलमेज सम्मेलन भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है।
इन बातों के मद्देनजर शनिवार को भारतीय किसान संघ (भाकिसं), असम के द्वारा राजधानी दिसपुर के खानापाड़ा स्थित असम प्रशासनिक महाविद्यालय परिसर में रबर केमिकल एंड पेट्रोकेमिकल स्कील्ड डेवलपमेंट काउंसिल (आरसीपीएसडीसी) के सहयोग से असम के किसानों के लिए एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
गोलमेज सम्मेलन का विषय रबर खेती की संभावना और समस्याएं थीं। सम्मेलन में रबर विशेषज्ञों ने राज्य में रबर की खेती के विकास और आधुनिक पद्धति के द्वारा की जाने वाली खेती के फायदे के बारे में किसानों को बताया।
यह सम्मेलन सुबह 10 बजे से आरंभ होकर दोपहर एक बजे तक आयोजित किया गया। सम्मेलन में मुख्य रूप से आरसीपीएसडीसी के पदाधिकारी विनोद टी सिमोन, रबर विशेषज्ञ डॉ. उमेश चंद्र एवं द्विजेंद्र नाथ बोरो, असम वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक हेम कांत तालुकदार, असम स्कील्ड डेवलपमेंट मिशन के अधिकारी हनिफ नुरानी, एनएसडीसी के शिलादित्य सरकार आदि ने रबर की आधुनिक खेती के बारे में विस्तार से जानकारी साझा की।
सम्मेलन के दौरान असम वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक हेम कांत तालुकदार ने वन सुरक्षा से संबंधित विभिन्न कानूनों के बारे में किसानों को अवगत कराया। वक्ताओं ने बताया कि आधुनिक तकनीक के जरिए रबर की खेती करने से जहां किसानों के उत्पाद में वृद्धि होगी, वहीं उनका उत्पाद भी वैश्विक बाजार में अच्छी कीमत पर बेचा जा सकेगा। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो सकती है। उन्होंने बताया कि रबर से 50 हजार से अधिक प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं। इसलिए रबर की खेती काफी फायदेमंद खेती है। यह किसानों को स्वावलंबी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।