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विलक्षण गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन —  अतुल कोठारी

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शून्य और अनंत (इन्फिनिटी) जैसी गणितीय शोध न हुई होती तो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के जिन शिखरों पर मानव सभ्यता आज खड़ी है, वहां तक पहुंचना शायद संभव न हो पाता। इन शोधों के बिना मंगल तक पहुंचने, चांद और धरती के बीच की दूरी का अंदाजा लगाने या समुद्र की गहराई नापने जैसे कार्यों को अंजाम देना सरल नहीं था। गणित की इन असाधारण शोधों के कारण ही विश्व भारत के गणितज्ञों के समक्ष नतमस्तक होती है। श्रीनिवास रामानुजन ऐसे गणितज्ञ थे, जिन्होंने अनंत को जाना था।

तमिलनाडु के इरोड़ में 22 दिसम्बर, 1887 को जन्मे रामानुजन का परिवार आर्थिक रूप से बेहद साधारण था। 11वीं में अनुत्तीर्ण होने के बाद परिवार की आवश्यकता के कारण वह ट्यूशन पढ़ाने लगे। विवाह के बाद उनको कई स्थानों पर नौकरी हेतु भटकना पड़ा। उस दौरान उनकी भेंट डिप्टी क्लेकटर रामास्वामी अय्यर, प्रो. पी.वी.शेषु अय्यर जैसे विद्वानों से हुई और उनके सहयोग से नौकरी के साथ-साथ गणित पर कार्य भी वह करते रहे।

उन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही अनुसंधान कार्य शुरू किया और 16 वर्ष की आयु में विख्यात गणितज्ञ जी.एस.कार. की पुस्तक में से ज्यामिति, बीजगणित के प्रमेय तथा सूत्र हल कर लिए थे और 25 वर्ष की आयु में त्रिघात, चतुर्घात समीकरण हल करने के तरीके खोज निकाले थे।

रामानुजन के जीवन में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो. हार्डी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने रामानुजन का गणितीय कार्य देखा तो आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें इंग्लैंड बुला लिया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में रामानुजन को प्रवेश कराने से लेकर छात्रवृति दिलाने, अध्ययन तथा शोध कार्य आदि में भी प्रो. हार्डी ने सहयोग किया। रामानुजन 1914 से 1919 तक इंग्लैंड में रहे। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण कार्य में रुकावट, शाकाहारी होने के कारण खानपान में कठिनाई, अत्यधिक ठंड आदि समस्याओं के कारण बीमार होने के बाद भी उन्होंने 37 शोधपत्र प्रस्तुत किए।

कैम्बिज यूनिवर्सिटी ने रामानुजन को 1916 को स्नातक की उपाधि दी। 1917 को “फेलो ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी” तथा 1918 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सदस्य के रूप में नियुक्ति, ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो का चुनाव तथा “फेलो ऑफ रॉयल सोसायटी” बनने का सम्मान उन्हें प्रथम भारतीय के रूप में प्राप्त हुआ।

असाध्य बीमारी के कारण उनको भारत वापस लौटना पड़ा फिर भी उनकी गणित की साधना चलती रही। उनसे मिलने के लिए आते हुए प्रो. हार्डी सोच रहे थे कि रामानुजन का स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह गणित की कोई चर्चा नहीं करेंगे और कुछ हल्की-फुल्की बातें करेंगे। रामानुजन से मिलने पर उन्होंने कहा कि मैं जिस टैक्सी से आया हूं, उसका नम्बर 1729 था, जो अपशकुन संख्या है। रामानुजन ने तुरंत कहा- ऐसा नहीं है, यह छोटी से छोटी संख्या है, जिसे दो भिन्न रूपों में दो संख्याओं के घन के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। वह इस प्रकार हैः- 103 + 93 =123 +1= 1729 | रामानुजन को स्वप्न में भी गणित ही दिखता था और वह जीवन के अंतिम क्षणों तक गणित के नए-नए सूत्रों का सृजन करते हुए इस विश्व से विदा हो गए। रामानुजन ने 32 वर्ष 4 मास एवं 4 दिन के छोटे से जीवनकाल में गणित के क्षेत्र में जो कार्य किया, उसे सिद्ध करने के लिए दुनियाभर के गणित के विद्वान आज भी जुटे हुए हैं।

रामानुजन के शोध कार्यों के पार्टिकल फिजिक्स, कम्प्यूटर साइंस, क्रिप्टोग्राफी, पोलिमर केमेस्ट्री, परमाणु भट्टी, दूरसंचार, कम्यूनिकेशन नेटवर्क, घात, न्यूक्लियर फिजिक्स, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रयोग हो रहे हैं। उनकी तीन हस्तलिखित नोटबुक टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ने प्रकाशित किया है। रामानुजन ने अंतिम दिनों में जो कार्य किया था, वह 1976 में अमेरिका की विस्कोन्सीन यूनिवर्सिटी के विजीटिंग प्रो. जार्ज एन्ड्रयुज को ट्रिनिटी कॉलेज की पुस्तकालय में से 140 पृष्ठ मिले। उन्होंने इनको “The Lost Notebook of Ramanujan” के नाम से प्रकाशित किया।

1921 में हंगेरी के प्रसिद्ध गणितज्ञ ज्योर्ज पोल्या ने प्रो. हार्डी से रामानुजन की नोटबुक कार्य करने के लिए ली थी। कुछ दिनों के बाद उन्होंने प्रो. हार्डी को नोटबुक वापस करते हुए कहा कि मैं इसके परिणामों को सिद्ध करने के मायाजाल में फंस गया तो जीवन भर मेरे लिए कोई स्वतंत्र शोध कार्य करना संभव ही नहीं होगा। प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्शनिक बट्रेड रसेल ने कहा कि प्रो. हार्डी एवं प्रो. लिटिलवुड ने “एक हिन्दू क्लर्क” में दूसरे न्यूटन को खोज निकाला”।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा पूरे विश्व के गणितज्ञों के लिए रामानुजन प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। प्रो. हार्डी ने तत्कालीन गणित के विद्वानों को 100 में से स्वयं को 25, लिटिवुड को 30, जर्मन गणितज्ञ हिलवर्ड को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए थे। मृत्यु के दो मास पूर्व उन्होंने प्रो. हार्डी को अंतिम पत्र लिखा, उसमें उन्होंने “मॉक थीटा फंक्शन” पर मिले परिणामों को भेजा था। यह उनके श्रेष्ठतम कार्यों में गीना जाता है।

रामानुजन की भारतीय संस्कृति, धर्म, परंपरा एवं नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता अनुकरणीय है। वह कहते थे—”यदि कोई गणितीय समीकरण, सूत्र किसी भगवत् विचार से मुझे नहीं भर देता, तो वह मेरे लिए निरर्थक है”। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था “जिस भारतीय संस्कृति ने विश्व को शून्य का उपहार दिया, उसी की कोख से रामानुजन जैसे विलक्षण गणितज्ञ ने जन्म लिया”।

2012 में रामानुजन के 125वें जन्मदिवस पर 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया गया। तभी से गणित दिवस तो मनाया जाता है परंतु आवश्यकता है उनके कार्यों पर भारत में शोध को बढ़ावा देने की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी भारतीय ज्ञान परम्परा को शिक्षा में समावेश करने एवं शोध कार्य को बढ़ावा देने की बात कही है। उसके अनुरूप रामानुजन जैसे सभी श्रेष्ठ गणितज्ञो के कार्य को शोध के द्वारा विश्व पटल पर उद्घाटित करना ही गणित दिवस की सार्थकता होगी |

अतुल कोठारी
राष्ट्रीय सचिव, 
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
नई दिल्ली।

(दिनांकः-19.12.2023)

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