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आज सवामणी प्रायः हर भक्त लगाने में सक्षम हो गया लेकिन अतीत में बहुत ही कम सवामणी लगती थी। इसमें सवा मण यानि पचास सेर प्रसाद लगाया जाता है लेकिन 51 सेर शुभ होने से भक्त गण आजकल 51 किलोग्राम वजन की सवामणी लगाते हैं। लेकिन विभिन्न कारणों से प्रसाद कम बनाने से वो अधुरी मानी जाती है जो बनाने वाले लगाने वाले तथा चढाने वाले के लिए भी उचित नहीं है।
मान्यताओं के अनुसार किसी धनाड्य एवं प्रभावशाली व्यक्ति ने 51 सेर सोने की सवामणी लगाई थी इससे सपष्ट हो गया कि दुनिया में ऐसे लोग तो विरले ही होंगे इससे भक्त एवं भगवान् दोनों ही एक ऐसे दायरे में आ जायेंगे कि अधिकाधिक संख्या में भक्त ऐसा नहीं कर पायेंगे। इसलिए इसे वजन के आधार पर कोई भी सामग्री जैसे फल मिष्ठान मेवे आदि की सवामणी लगाई जाने लगी जो भक्त अपनी श्रद्धा एवं भक्ति के अनुसार लगा सकें। आज एक विशेष जन्मोत्सव पर लोग सवामणी लगाते हैं जो निश्चित रूप से उचित है लेकिन उस प्रसाद को लगाने वाले भक्त अथवा संस्था के लिए भारी मात्रा में बने प्रसाद को वितरित करने में समस्या प्रायः देखी गई है।
इसलिए मेरी मान्यता है कि सालभर सवामणी लगाने का सिलसिला जारी रहना चाहिए ताकि सैंकड़ों लोगों के घरों में थोड़ा थोड़ा प्रसाद हर महीने पहुँच सके। यदि संभव नहीं हो तो जगह जगह मंदिरों में भंडारा लगाया जा सकता है। सवामणी का प्रसाद भारी मात्रा में तीन दिन पहले बनता है तथा सुविधा के अनुसार तीन चार दिन में वितरित किया जाता है तो स्वाभाविक है कि प्रसाद नष्ट हो जाता है।
धार्मिक संस्थानों को ऐसी पहल शुरू करनी चाहिए। भक्तों को फलों की सवामणी भी लगानी चाहिए। गौशाला में अलग तरह की सवामणी लगाई जाती है इसी तरह हमें इस विषय पर गौर करना चाहिए।
यदि आप बिना मनौती सवामणी इसलिए लगाते हैं कि आप पर दबाव है अथवा समारोह में आर्थिक सहयोग करना चाहते हैं तो आपको पहल करनी चाहिए। अन्न का भोजन का तथा भगवान् की सवामणी का एक एक दाना श्रद्धा एवं भक्ति के साथ लोगों के मूंह तक पहुंचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमने ऐसा प्रयास वर्षों से शुरू किया तो अनेक भक्त ऐसा ही कर रहे हैं।
सभी संस्थान एवं उनके पदाधिकारी कार्यकर्ताओं एवं स्वयंसेवकों के दिनरात परिश्रम एवं सेवा में कोई कमी एवं दखलअंदाजी नहीं बल्कि एक समयोचित सुझाव है।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653