भारत महादेश में सदा दिवाली संत की आठों पहर त्यौहार वाली कहावत चरितार्थ होती है। आये महीने आये सप्ताह यानि हर दिन ही कोई ना कोई त्यौहार अवश्य होता है। रविवार को सुर्य पूजन सोमवार को शिव मंगलवार को श्री राम भक्त हनुमान बुधवार को गणेश वृहस्पति वार को वृहस्पति की शुक्रवार को संतोषी माँ की तो शनिवार को शनिदेव की पुजा के साथ साथ लोग रोजाना गौ पूजन एवं तुलसी पूजन करते हैं। चैत्र मास से फाल्गुन महीने तक अनगिनत त्यौहार आते है लेकिन होली का त्यौहार सबसे लंबी अवधी वाला अदभुत है जो बसंत पंचमी के दिन चंग डफली एवं नृत्य गीत के साथ शुरू,होता है तो चैत्र माह में संपन्न होता है। अलग अलग प्रदेशों में अपने अपने अंदाज में लोग होलिकोत्सव मनाते है जिसमें ब्रज की लठमार होली, हरियाणा की कोङेमार होली सहित कहीं फुलों की होली तो कहीं गोठ एवं रंगों की होली मनाई जाती है। जिसमें रंग भंग एवं चंग का अद्भुत संयोग है। पहले युवक एवं पुरुष ही अल्हड़ नारी बनकर तरह तरह के स्वांग रचकर लोगों का मनोरंजन करते थे लेकिन आज परिवेश बदला है तो लोगों की मानसिकता एवं आर्थिक स्थिति सुधरने से मजाकिया कलाकार एवं फुह्हङ कवियों से हास्य कवि सम्मेलन करवाने के साथ साथ मुंबई कोलकाता जयपुर तथा कोलकाता के महंगे कलाकार बुलाकर अन्य प्रदेशों में भी अपनी जन्मभूमि की लोक संस्कृति एवं संपन्न परंपराओं के साथ होली का महोत्सव मनाते है। होली में नन्हे बच्चे युवक युवतियों महिलाओं एवं बुजुर्गों का एक साथ होली खेलने एवं रंग लगाने से निश्चित रूप से सालभर के तनाव से मुक्ति मिलती है। हताश एवं निराश लोगों में जीने की तमन्ना जाग्रत होती है लेकिन अधिकांश लोग खेमों में बंटकर अपने आप को अलग कर लेते हैं। होली का त्यौहार हमें रंग खेलने का समान अधिकार देता है इसलिए हमें चढबढ कर हिस्सा लेना चाहिए।
