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अयोध्या के राम मंदिर का 494 वर्ष  का इतिहास – डॉ. बी.के मल्लिक

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अयोध्या में श्री राम मंदिर बनकर तैयार है अयोध्या वासी के साथ-साथ सभी लोगों को बहुत खुशी हो रही है की अयोध्या में भव्य भगवान श्री राम का मंदिर बन गया है। आज इस राम मंदिर को देखकर सभी प्रेमी खुश है लेकिन आज से 494 वर्ष पहले भी वहां पर भगवान राम का मंदिर था। अयोध्या में उसे मंदिर को देखकर हमारे पूर्वज भी खुश रहते होंगे लेकिन एक समय आया सन 1528 ई में जब उसे मंदिर के ढांचा को तोड़कर एक मस्जिद के रूप में बना दिया गया।
इसकी शुरुआत होती है ‘बाबर’ से, वही मुगल शासक ‘बाबर’ जिसने दिल्ली पर कब्जा किया था। फिर समय आता है 1528 का जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार बाबर ने तब के अपने गवर्नर मीर बाकी को आदेश दिया था, तभी बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था। इतिहास के पन्नों में ऐसा दर्ज है कि तब भी मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच उस जगह को लेकर कई बार विवाद हुए थे।
एक सबसे दिलचस्प बात आपको बता दें कि बाबरी मस्जिद 1528 में ही बनी थी, इसका कोई दस्तावेज में एतिहासिक प्रूफ नहीं है और ना ही ‘बाबर नामा’ में इस बात का जिक्र है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया था। इसी के साथ 1574  में लिखी गई राम चरित मानस या फिर अकबर की जीवनी में भी इसका जिक्र नहीं है। अब बात करते हैं। तुलसीदास की रामायण को बाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा था, लेकिन भारत में जब ज्यादा लोगों को संस्कृत नहीं आती थी, तो तुलसीदास ने इसे अवधी में लिखने का फैसला किया, उस दौर में उन्हें काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने क्रोध में ये तक कह दिया था कि ‘मांग के खइयो, मसीद पर सोइयो’ मतलब मांगकर खा लूँगा और मस्जिद में सो लूँगा लेकिन राम की कथा आम जन मानस तक ज़रूर पहुंचनी चाहिए।
तुलसीदास जी के महत्वपूर्ण जिक्र के बाद आपको बता दें कि ठीक 80 साल बाद इंग्लैंड के ट्रेवलर विलियम फिंच अयोध्या आए, इस बात का जिक्र विलियम ने अपनी किताब में भी किया है, वो दौर था 1611 का, जब फिंच ने राम जी के महल के गिर जाने का जिक्र किया था, लेकिन मस्जिद का जिक्र नहीं किया था। इसके बाद 1634 में थॉमस हरबर्ड भी मंदिर का जिक्र करते हैं लेकिन मस्जिद का ज़िक्र वो भी नहीं करते हैं। 1717 में जयपुर के राजपूत राजा सवाई जय सिंह द्वितीय अयोध्या में मस्जिद के पास एक जमीन खरीदते हैं, इसका प्रसंग जयपुर राजघराने में मौजूद दस्तावेज में भी मिलता है, वहां भी मंदिर का जिक्र होता है। इतने नजरिये के बाद एक नज़र स्क्रिप्टो इंडिया किताब पर भी डालते हैं, ये किताब 1767 में लिखी गई थी। इसमें लिखा गया था कि औरेंगजेब ने राम किले को नष्ट किया था। जिसे राम जन्म स्थान कहा जाता है। इसी के साथ जिस जगह राम जन्म भूमि थी उस जगह मस्जिद का निर्माण किया गया था, उसी किताब में ये भी लिखा गया है कि कुछ लोग कहते हैं कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने किया है।
मध्यकाल में मुग़ल शासकों ने कई मंदिर नष्ट किए थे ये बात इतिहासकारों के हवाले से कई किताबों में कही गई है। दक्षिण भारत के हम्पी से लेकर खजुराहो तक के मन्दिर को खत्म करने की बात मुस्लिम इतिहासकार भी मानते हैं और कई किताबों में इसका जिक्र भी किया है। भीम राव आंबेडकर ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान द पार्टिशन ऑफ़ इंडिया’ में भी कई मन्दिरों को खत्म कर देने की बात को सही कहा है, अगर आपने ये किताब नहीं पढ़ी है तो ज़रूर पढ़िए।
1838 का ब्रिटिश सर्वे अयोध्या विवाद को मन्दिर-मस्जिद का पूरी दुनिया का सबसे बड़ा विवाद भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। साल 1838 में ब्रिटिश सर्वे करने वाले मार्टिन ने एक रिपोर्ट पेश की थी, इस रिपोर्ट में मार्टिन ने साफ़ तौर पर कहा था कि मस्जिद के पिलर मन्दिर से लिए गए थे। हालाँकि, इस रिपोर्ट पर बाद में काफी हंगामा भी हुआ था।
अयोध्या विवाद के दूसरे चरण में साल 1857 को आज़ादी की पहली लड़ाई के तौर पर भी याद किया जाता है।  अयोध्या मंदिर को लेकर लड़ाई भी साल 1857 में ही शुरू हुई थी। फिर से हम बी.बी.सी. में दर्ज रिपोर्ट पर नजर घुमाते हैं, तो हमको पता चलता है, कि इसी साल हिंदू पुजारियों ने मस्जिद के बाहर एक चबूतरा बना लिया था, और उसी चबूतरे पर पूजा-पाठ की भी शुरुआत कर दी थी।
फिर आया 30 नवम्बर 1858 जब पहली बार मौलवी असगर  ने लिखित शिकायत की थी कि मस्जिद की दीवारों पर हिंदूओ ने राम-राम लिख दिया है। फिर चबूतरे और मस्जिद के बीच प्रशासन ने दीवार बना दी थी, लेकिन मुख्य दरवाजा एक ही था। 1883 के अप्रैल में निर्मोही अखाड़े की एंट्री होती है, उसने फैजाबाद के कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए मन्दिर बनाने की परमीशन मांगी थी। 29 जनवरी 1885 तारीख याद रखियेगा, क्योंकि इसी दिन निर्मोही अखाड़े के महंत रघबर दास ने चबूतरे को राम जन्मभूमि बताते हुए पहली बार मोहम्मद असगर के खिलाफ सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। मंदिर-मस्जिद विवाद के साथ अभी इस मामले में शिया और सुन्नी विवाद की भी एंट्री होनी बाकी थी। साल 1936 में मुसलमानों के दो समुदाय शिया और सुन्नी के बीच ही विवाद की शुरुआत हो गई थी। इस विवाद का मुख्य मुद्दा ये था मस्जिद आखिर है किसकी?
30 मार्च 1946 को सिविल जज एस.ए. अहसान ने शिया समुदाय का दावा खारिज कर दिया था, क्योंकि उनका कहना था कि मस्जिद सुन्नी बादशाह ने बनवाई थी। 1870 से लेकर 1949 तक कई दस्तावेजों में ये बात उभर कर सामने आती रही कि अयोध्या में तीन मंदिरों को खत्म करके मस्जिद का निर्माण किया गया था, उसमे से एक मस्जिद बाबरी मस्जिद भी है। इस दौरान कई झगड़ों ने भी जन्म लिया था, जैसे कि 1935 का झगड़ा, जिसमे मस्जिद के कुछ हिस्से को नुकसान हुआ था।
साल 1947 में देश आज़ाद हुआ और शुरुआत हुई तीसरे चरण की सरकारी आंकड़ो के हिसाब से साल 1949 आता है, देश को आजाद हुए पूरे दो साल हो चुके हैं, नेहरु प्रधानमंत्री भी हैं, तब के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लभ पंत। दिसंबर का महीना आता है, ठंड की रूहानी शाम में अयोध्या में 9 दिनों का राम चरित मानस के पाठ का आयोजन होता है। आयोजनकर्ता थे अखिल भारतीय रामायण महासभा, अब एंट्री होती है गोरखनाथ मठ के संत दिग्विजय नाथ की, जब 22 और 23 दिसंबर की रात को मस्जिद के अंदर राम और सीता की मूर्ती को विराजमान कर दिया गया था, और इसी घटना को कहा गया था कि राम जी प्रकट हुए हैं।
इसके बाद होना क्या था, वही विवाद, मामला कोर्ट में पहुंचा, मुस्लिम के पक्षकार थे हाशिम अंसारी, 29 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद को विवादित ढ़ांचा करार दे दिया गया था।
एक आदेश निकाला गया, इस आदेश में मुस्लिमों को भी इस मस्जिद में जाने से मना कर दिया गया था। मुख्य दरवाजे पर ताला था, हिन्दुओं को एक साइड के गेट से अन्दर जाकर दर्शन करने  की इजाजत थी।
गोपाल सिंह हिंदू महासभा के उस दौर के सदस्य  ने एक सिविल केस फाइल किया था, जिसमे उन्होंने मूर्तियों को ना हटाने और पूजा करने की इजाजत मांगी थी। फिर 1959 में निर्मोही अखाड़ा भी एक पक्षकार बनकर सामने आता है, और केस फाइल कर देता है।
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के समीकरण राजीव गांधी सियासतदार बनते हैं, एक बार फिर से अयोध्या का मुद्दा शिखर पकड़ता है, अब क्या होने वाला था? इसका अंदाजा किसी को भी नहीं था। मीडिया रिपोर्ट्स को पढ़िए तो पता चलता है कि कम अनुभव के कारण राजीव गाँधी को समझ नहीं आ रहा था कि अयोध्या के मामले पर कांग्रेस का क्या रुख होना चाहिए।
इसी बरस अब कहानी में एंट्री होती है विश्व हिंदू परिषद की, राम जन्म भूमि के लिए विश्व हिंदू परिषद आंदोलन करने का भी फैसला करती है। साल 1985 से राम जानकी पथ यात्रा की भी शुरुआत होती है। अब आता है शाहबानो केस भारत के इतिहास में ये एक ऐसी घटना थी जिसने कई समीकरण बदले थे, इस घटना ने अयोध्या विवाद में भी घी डालने का काम किया था। इस केस के बारे में हम फिर कभी बात करेंगे, लेकिन इसका असर अयोध्या मामले में कैसे पड़ा था, ये आपको बताते हैं। इंदौर की रहने वाली तलाकशुदा शाहबानो के हक में कोर्ट ने फैसला सुनाया था, ये फैसला गुजारा भत्ता को लेकर था। इस फैसले से मुस्लिम नेता खुश नहीं थे, उन्होंने कई फतवे जारी करते हुए राजीव गांधी पर दबाव बनाया कि वो संसद में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विधेयक लाकर पलट दें। फिर राजीव गांधी ने इस फैसले को संसंद में पलट दिया था।
इसी फैसले को बैलेंस करने के लिए राजीव गांधी ने तब के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह पर दबाव बनाते हुए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा दिया था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार ताला खुलने के बाद ही फैजाबाद की आदालत ने वहां पूजा की इजाजत भी दे दी थी। इससे पहले जो पूजा एक पुजारी उस परिसर में साल में एक बार करता था, अब रोज हो सकती थी, और नमाज वहां नहीं पढ़ी जा रही थी। इसका सीधा फायदा उठाया विश्व हिंदू परिषद ने, कोर्ट के अंदर नहीं बल्कि कोर्ट के बाहर, राम लला को आजाद करो, इस तरह के आंदोलन की शुरुआत भी हो चुकी थी।
एक बार फिर से राजीव गांधी पर विश्व हिंदू परिषद और बहुसंख्यक समुदाय ने शिलान्यास करने का दबाव बनाया, राजीव गांधी भी असमंजस में थे, उन्होंने भी शिलान्यास की इजाजत दे दी, साल था 1989, महीना था नवम्बर, यही वक्त तय हुआ था शिलान्यास का, ये पूरा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन.डी. तिवारी ने तमाम मीडिया हाउस को बताया है।
 लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा
कुलदीप नय्यर की किताब के अनुसार प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने जब मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की तो भाजपा के पास अयोध्या मामला ही हांथ में बचा था, तब आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा का एलान किया, 25 सितंबर 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा शुरू भी हो गई। इस यात्रा को 6 हफ्तों में अयोध्या पहुंचना था, विश्व हिंदू परिषद भी साथ में ही था, यात्रा के साथ साम्प्रदायिक तनाव भी बढ़ता ही जा रहा था।
लालू प्रसाद यादव ने रथ यात्रा को बिहार में रोका। आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर का माहौल बनाते हुए, ये रथ यात्रा शहर दर शहर आगे बढ़ती जा रही थी, तभी लालू प्रसाद यादव ने ये कह दिया था कि वो यात्रा को बिहार से आगे नहीं जाने देंगे, उन्होंने यात्रा को बिहार पहुँचते ही रोक दिया था। 30 अक्टूबर का दिन था लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंचे, मुलायम सिंह यादव ने कई कड़े प्रयास भी किए, पर वो विफल रहे, लाठी- गोली भी चली, लेकिन कार सेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ ही गए थे। मुलायम सरकार ने कार सेवकों पर गोली भी चलवा दी थी, जिसमे सरकारी आंकड़े के अनुसार 16 लोगों की मौत भी हुई थी। सरयू नदी लाल हो चुकी थी, साल 1991 में प्रशासन ने बाबरी को बचा लिया था, लेकिन फिर चुनाव हुए, मुलायम सिंह की पार्टी अबकी बार हार चुकी थी।
कल्याण सिंह की सरकार और बाबरी मस्जिद  साल 1991 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेत्रत्व में कांग्रेस की सरकार थी, राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, साल 1992 में अयोध्या के प्रदेश उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन चुके थे।
इन सबके बीच विश्व हिंदू परिषद ने 6 दिसंबर 1992 को विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण का एलान भी कर दिया था, फिर से लाखों कार सेवक अयोध्या की तरफ बढ़ चुके थे।
‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखा गया है कि कल्याण सिंह ने ये एलान कर दिया था कि कार सेवकों का स्वागत सरकारी खर्चे में किया जाएगा। इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने 20,000 सैनिकों को अयोध्या की तरफ तलब कर दिया था। अजीब बात ये है कि सैनिक शहर से करीब कुछ किलोमीटर की दूरी पर थे, और लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंच चुके थे। मतलब साफ़ था स्क्रिप्ट तैयार थी और फिल्म शुरू होने वाली थी।
6 दिसंबर 1992 मंदिर वहीं बनायेंगे, एक धक्का और दो, इस तरह के वाक्त्व्य से अयोध्या नगरी गूँज रही थी। भाजपा के नेता- लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल सभी लोग मौजूद थे, लेकिन सैनिक एक घंटे की दूरी में थे। उसके बाद जो हुआ, वो सब इतिहास में दर्ज हो चुका है। 49 लोगों के खिलाफ मुकदमे भी चल रहे हैं, जिसमे से आधे लोग अपनी जिंदगी जीकर ऊपर जा चुके हैं।
सर्वोच्च न्यायालय से मंदिर बनाने का आदेश मिला। उसके बाद मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ और 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान श्री राम का प्राण प्रतिष्ठा होगा सनातन धर्म प्रेमी को इससे ज्यादा खुशी और कुछ नहीं हो सकता है।(साभार समाचार पत्र के संकलन)
डॉ. बी. के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792

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