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एक नवगीत __________ बात घर में चल रही है

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हो गई बेटी सयानी
उम्र दिन – दिन ढल रही है
बात घर में चल रही है
वर कई देखे गए पर
कुछ न कुछ मिलती कमी है
गुण नहीं मिलते कहीं तो
रूप पर चर्चा थमी है
भाभियों की व्यंग्य वाणी
भाइयों को खल रही है
बात घर में चल रही है
क्या करें बापू बिचारे
लौट आते रोज उन्मन
सूख कर काँँटा हुई है
माँ बहुत भारी दुखी मन
पूछती है क्या हुआ जी
साँस उखड़ी छल रही है
बात घर में चल रही है
जो लली की आयु की थीं
बाल बच्चे दार हैं सब
सब मजे में हैं सुनो तो
बोल लच्छेदार हैं अब
ब्याह हो जाता अभी तक
किन्तु शादी टल रही है
बात घर में चल रही है
सूख कर काँटा हुई है
गाल गड़ने लग गए हैं
और कब शादी करेंगे
लोग कहने लग गए हैं
लग रहा है हँस रही पर
मौन बेटी जल रही है
बात घर में चल रही है
शहर में होती तो तय था
बात बन जाती अभी तक
मिल गए होते बहुत वर
नववधू बनती अभी तक
गाँव में भ्रातृत्व लज्जा
सादगी अविकल रही है
बात घर में चल रही है
मिल रहे दारू पियक्कड़
मस्त मौला और फक्कड़
एक निश – दिन का घुमक्कड़
एक भुक्खड़ एक लक्कड़
क्या इन्हें दे दूँ लली जो
“प्राण” प्यारी पल रही है
बात घर में चल रही है
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
“वृत्तायन” 957 स्कीम नं. 51,
इन्दौर, पिन – 452006, म.प्र.
मो. 9424044284
6265196070

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