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नेहू में आयोजित हुआ पूर्वोत्तर भाषा सम्मेलन

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युवाओं को अपनी मातृभाषाओं एवं राष्ट्रभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आगे आना चाहिए- प्रो.प्रभा शंकर शुक्ला
किसी भी मातृभाषा की सुंदरता उसकी लोक संस्कृति में समायी होती है- श्री एल आर विश्नोई
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग (मेघालय),-  मानविकी संकाय एवं भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में  “पूर्वोत्तर भाषा सम्मेलन” विषय पर दिनाँक 25/04/2024 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में एल आर बिश्नोई डी. जी . पी. (पुलिस महानिदेशक)शिलांग (मेघालय) उपस्थित थे। साथ ही अध्यक्ष के रूप में  पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग के कुलपति प्रो. प्रभा शंकर शुक्ल उपस्थित रहे।सम्मानित अतिथि के रूप में भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष चमू कृष्ण शास्त्री ने आभासीय पटल से भाषाओं की मनुष्य जीवन में महत्ता के बारे में अपने विचार एवं विमर्श रखे। कार्यक्रम में आभासीय पटल से सम्मानीय अतिथि भारतीय भाषा समिति के डॉ. राजेश्वर कुमार ने अपनी उपस्थिति से मातृभाषा के प्रचार एवं प्रसार के साथ साथ उनके संवर्धन एवं संरक्षण पर अपनी चिंता जताई। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें अपनी विलुप्त हुई कई स्थानीय भाषाओं एवं धीरे-धीरे विलुप्त हो रही  मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए  तत्पर रहना चाहिए। साथ ही हमें अपनी मातृभाषाओं के प्रति सम्मान एवं आदर का भाव रखना चाहिए। वहीं प्रथम  विशेष सम्मानित अतिथि वक्ता के रूप में स्थानीय अध्यक्ष (शिलांग) रांगभा शिनांग मावकिंरो उपस्थित रहे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि शिक्षा के माध्यम से भाषा को ग्रहण किया जा सकता है। तथा भाषा शिक्षा में विभिन्न माध्यमों से मनुष्य जीवन में अपनी उपयोगिता एवं आवश्यकता का बोध कराती है। वहीं उन्होंने कहा कि भाषा अनेकता में एकता की बात करती है जिससे हम  दैनिक जीवन में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। इसके साथ ही एक अन्य मुख्य अतिथि वक्ता किन्तन मस्सार के रांगबा शिनांग ने अपनी स्थानीय भाषा के प्रचार प्रसार पर अपने विचार सभा में सभी के सम्मुख रखे। उन्होंने वक्तव्य में बताया कि हमें अपनी लोक संस्कृति एवं लोक भाषा का संरक्षण एवं संवर्धन करने पर बल देना चाहिए । साथ ही उन्होंने चिंता जताई कि यहाँ के लोगों में खासकर से शहरी जीवन में अन्ग्रेजी भाषा के प्रति बढ़ती रुचि ने उन्हें अपनी मातृभाषा से धीरे-धीरे दूर कर दिया है। वहीं उन्होंने कहा कि अपेक्षाकृत स्थानीय मातृभाषा ग्रामीण जीवन में आज भी पहले की तरह सुरक्षित है। उनका मानना है कि ग्रामीण लोगों का अपनी लोक संस्कृति एवं लोक भाषा के प्रति प्रेम, स्नेह एवं सम्मान भाव है जो आज भी बरकरार है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शिलांग के डी. जी. पी. (पुलिस महानिदेशक) श्री एल. आर. बिश्नोई उपस्थित थे। उन्होंने बताया कि विश्व भर में लगभग सात हजार से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं तथा भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें लगभग सौलह सौ के आसपास बोलियां बोली जाती हैं। उन्होंने अपने वक्तव्य में मेघालय की स्थानीय भाषाओं से जुड़े ग्रामीण जीवन में प्रयुक्त होने वाले कई ऐसे शब्दों का उदाहरण दिया जिससे यहाँ की स्थानीय भाषाओं में संवाद करने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि किसी भी मातृभाषा की सुंदरता उसकी लोक संस्कृति में समायी होती है इसलिए बाहर से आने वाले एवं यहाँ घूमने आने वाले लोगों को यहाँ की भाषाओं को सीखने के प्रति रुचि एवं इच्छा रखनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इन स्थानीय भाषाओं के प्रति अगर हमें प्रेम, स्नेह एवं सम्मान का भाव रहेगा तो हमारी रुचि इनके प्रति और भी बढ़ेगी। स्थानीय भाषाओं को सीखना इसलिए भी अनिवार्य है क्योंकि ये हम सभी को एक दूसरे से जोड़े रखती हैं। कार्यक्रम में पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग के कुलपति प्रो. प्रभा शंकर शुक्ल अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अध्यक्षीय उद्बोधन में बताया कि भाषाओं से हमारे दैनिक जीवन में प्रभाव पड़ता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति में मातृभाषा, राष्ट्रभाषा एवं अंतरराष्ट्रीय भाषाओं की महत्ता के बारे में अपने वक्तव्य में बताया। उन्होंने बताया कि स्थानीय भाषाओं (मातृभाषाओं) को बिना साहित्य के नहीं सीखा जा सकता है इसलिए साहित्य की महत्ता एवं उपयोगिता मातृभाषाओं को सीखने में बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपनी मातृभाषाओं एवं राष्ट्रभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आगे आना चाहिए। तथा उन्हें अपनी मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम, आदर एवं सम्मान का भाव रखना चाहिए। वहीं कार्यक्रम में उपस्थिति आभासी पटल से जुड़े सम्मानित अतिथि, मुख्य अतिथियों, मुख्य वक्ताओं एवं सभा में उपस्थित सभी का धन्यवाद एवं आभार भाषा विज्ञान की आचार्या प्रो. स्ट्रीमलेट डख़ार ने किया। वहीं कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. आलोक सिंह ने हिंदी में एवं अंग्रेजी में डॉ सारा लिंगदोह ने किया।

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