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‘परीक्षा पे चर्चा’ बच्चों के लिए सबसे बड़ा ‘महामंत्र’

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परीक्षार्थियों के मानसिक तनाव और अन्य तरह के अवसाद को दूर करने का ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। सामाजिक सरोकार से जुड़ा यह कार्यक्रम युवाओं के ही नहीं, उनके माता-पिता के दिलों में घर घर चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 29 जनवरी के अपने इस कार्यक्रम के बारे में एक्स हैंडल पर लिखा है ‘मैं परीक्षा के तनाव को दूर करने के तरीकों पर सामूहिक रूप से रणनीति बनाने के लिए परीक्षा योद्धाओं की सबसे यादगार सभा ‘परीक्षा पे चर्चा’ का उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूं। आइए, हम परीक्षा से जुड़ी उन निराशाओं को अवसरों की एक खिड़की में बदल दें…।’ प्रधानमंत्री ने उन्होंने परीक्षाओं को मनोरंजक और तनाव मुक्त बनाने से संबंधित पिछले कार्यक्रम के विषयों और व्यावहारिक सुझावों को भी साझा किया।

इस बारे में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की लखनऊ इकाई ने इस कार्यक्रम पर विस्तार से चर्चा की है। इसमें कहा गया है कि यदि किसी राष्ट्र के नेता राजकाज के अतिरिक्त अपनी जनता के लिए एक अभिभावक की भी भूमिका अपना लें तो उस राष्ट्र के लोग निश्चित रूप से सौभाग्यशाली हैं। राम राज्य की भी यही तो सबसे प्रधान विशेषता थी। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी समस्त भारतवासियों को अपना परिवार मानकर कुछ ऐसा ही सफल प्रयास कर रहे हैं। अभिभावक के रूप में नरेन्द्र मोदी की भूमिका की एक अच्छी मिसाल उनका ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम है जिसके माध्यम से वह किशोर और युवा विद्यार्थियों की समस्याओं को समझ कर उनका मार्गदर्शन करते हैं।

‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए तनाव मुक्त माहौल बनाने, वैचारिक और अकादमिक उपलब्धि में सकारात्मक वृद्धि करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बड़े आंदोलन ‘एग्जाम वॉरियर्स’ का हिस्सा है। यह एक ऐसा आंदोलन है जो अभिभावकों, शिक्षकों और समाज को एक साथ लाता है। इस कार्यक्रम का संदेश स्पष्ट है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास तो करे ही, साथ ही साथ उन उद्देश्यों की प्राप्ति में आने वाले तनाव का सुव्यवस्थित ढंग से प्रबंधन करे। हम अपने आसपास देखते हैं कि कुछ विद्यार्थी परीक्षा का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं। कुछ परीक्षा पूर्व या परीक्षा के दौरान बीमार पड़ जाते हैं। कई विद्यार्थी तो निराशा, अवसाद आदि में चले जाते हैं। यही स्थिति विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके माता-पिता या अभिभावकों की भी होती है।

शिक्षा और सीखने के द्वारा उपरोक्त समस्याओं के तो उत्तर मिलने ही चाहिए, साथ ही साथ जीवन को आनंददायी तरीके एवं कुशलता से जीने के कौशल भी प्राप्त होने चाहिए। इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी का कथन है कि “सीखना एक आनंददायक, संतुष्टिदायक और अंतहीन यात्रा होनी चाहिए। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 रट्टामार पद्धति से कहीं अलग एक ऐसी पद्धति है जिसमें छात्रों को उन्मुख करने का प्रयास है। जहां छात्र सिद्धांत से कम और व्यवहार से ज्यादा समझ सकें और अध्ययन के दौरान अधिक उत्सुकता और आनंद से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। आनंददायी शिक्षा के लिए सबसे बड़ी बाधा परीक्षा ही प्रतीत होती है। परीक्षा पर गहराई से विचार करें तो यह विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों के आकलन का केंद्र तो है, लेकिन साथ ही साथ विद्यार्थियों में तनाव पैदा करने का एक मुख्य स्रोत भी रही है। जबकि होना यह चाहिए कि परीक्षा केवल परीक्षा नहीं, सीखने की एक आनंददायक प्रक्रिया भी हो। जहां विद्यार्थी ने जो सीखा है एवं उसके अनुभव में जो वृद्धि हुई है. उसे उन अनुभवों के स्वतंत्र और व्यवस्थित अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाये।

प्रधानमंत्री मोदी जी इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में एक उन्मुक्त मंच पर विद्यार्थियों से अपनी बात रखते हैं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से तनाव न लेने की बात पर चर्चा होती है। तनाव को कम करने के व्यावहारिक माध्यम क्या हो सकते हैं? परीक्षा के प्रति विद्यार्थियों का दृष्टिकोण कैसा हो? आदि मुद्दों पर चर्चा भी प्रधानमंत्री करते हैं। कई कार्यक्रमों में सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि यही विद्यार्थी हमारे देश का भविष्य हैं और जब हमारे देश का भविष्य ही चिंताग्रस्त होगा, तनावग्रस्त होगा, या किसी अन्य प्रकार के मनोवैज्ञानिक दबाव में होगा तो ऐसी स्थिति में वह अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकता। विद्यार्थी को इस अवस्था से बाहर निकालने के लिए उन्होंने मुख्य रूप से शिक्षक, परिवार एवं अभिभावकों की भूमिका पर बल दिया है, जिससे छात्र मुस्कुराहट के साथ परीक्षा दे सकें।

कई बार ऐसा देखने में आता है कि अपनी महत्वाकांक्षा की छाया तले माता-पिता अपने बच्चों की तुलना किसी दूसरे बच्चे से करते हैं। स्वाभाविक है कि एक बच्चे के ऊपर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा और वह परीक्षा से दूर भागेगा। कई बार शिक्षक भी कक्षा के दूसरे बच्चों से अध्ययन में कमजोर किसी बच्चे की तुलना करते हैं। ऐसी स्थिति में वह बच्चा अध्ययन के प्रति उदासीन हो जाता है। ऐसी ही स्थितियों को टालने के लिए यह सशक्त मंच है। यह मंच शिक्षकों और माता-पिता के लिए भी एक संदेश है कि कैसे परीक्षा से निबटा जाए। यदि हमने बच्चों के अंदर परीक्षा के प्रति आत्मविश्वास जगाया और उसे इस बात का विश्वास दिलाया कि परीक्षा के परिणाम जो भी आएं इस परिणाम से उसे सीख कर तथा निरंतर आगे उत्तरोत्तर प्रगति करते रहना है तो वह बच्चा परीक्षा से दूर नहीं भागेगा। आज हम बड़े शहरों में देख रहे हैं कि परीक्षाओं की काउंसलिंग के नाम पर बड़े और महंगे सेंटर्स की भरमार है। ऐसी काउंसलिंग प्रधानमंत्री बड़ी सहजता के साथ बातचीत में ही करते चलते हैं।

और यह भी सुखद है कि परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम आज केवल दिल्ली के ऑडिटोरियम तक सीमित नहीं रहा गया है। धीरे-धीरे इस कार्यक्रम ने संपूर्ण शिक्षा जगत एवं सभी हितधारकों को अपने साथ जोड़ा है। आज देश ही नहीं, दुनिया के कई देशों के छात्र और अभिभावक बड़े मनोयोग से इस कार्यक्रम का हिस्सा बन रहे हैं। इस कार्यक्रम पर विभिन्न अध्ययन हुए हैं। इनका निष्कर्ष है कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत शिक्षकों एवं परामर्शदाताओं की पहल से आशातीत परिणाम प्राप्त हुए है एवं परीक्षा को उत्सव के रूप में मनाने का दौर प्रारंभ हुआ है। विद्यार्थी तनावरहित होकर अब पूरी तैयारी के साथ परीक्षा में बैठते हैं और सफलतापूर्वक उज्ज्वल भविष्य की ओर अपना मार्ग प्रशस्त करते हैं। देश के प्रधान अभिभावक के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम के माध्यम से किशोरों और युवाओं के जीवन में नई आशा का संचार किया है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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