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पाठकों के पत्र

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।। हमारे बच्चे भी प्रतिभावान हैं।।

इस घाटी में हम हिंदी भाषी लाखों के तादाद में रहते हैं। उनमें बहुत सारे प्रतिभावान युवक युवतियाँ हैं, साहित्य, कला, विज्ञान, संगीत हर बिषय में हमारे हिन्दी भाषी अन्य लोगों के बच्चों को चुनौती दे सकते हैं। पर वे अपने आप को साबित या भाव को प्रकाशित नहीं कर पा रहे है, कोई भी बिषय में अपने प्रतिभा का बिस्तार, निखार नहीं ला सकते, क्यूंकि हमारे बच्चे अपने भाषा में नहीं दूसरे के भाषा में काम करते है। बच्चों को अनुबाद करके लिखना या बोलना पड़ता है। जबतक हम अपने मातृभाषा में पढ़ाई तथा काम नहीं करेंगे तब तक अपना भाव को सही तरीके से प्रकट करना सम्भव नहीं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों में रहने वाले हिन्दीभाषी लोग हर क्षेत्र में अपने प्रतिभाओं को दिखाते है। विश्व के देशों में राशिया, चाइना, जर्मन, इजराइल, इंग्लैंड जैसे उन्नत देश अपने मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं और वे अपने मातृभाषा सारे काम काज करते है। हमारे देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी है और हमारी मातृभाषा भी हिन्दी होते हुवे भी हम बाँगला या अंग्रेजी़ में पढ़ाई कर रहे हैं। अब तो हर केंद्रीय प्रतियोगिता परीक्षा के प्रश्न-पत्र हिन्दी में आ रहा है।

आइए इस बिषय को गहराई से सोचें और संगठित प्रयास करें। हमारे भविष्य की पीढ़ी को गुलामी के भाषा की जगह अपनी हिन्दी लायें।

************** नरेश कुमार बरेठा

दुर्गाकोना, काछाड़, असम

 

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