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मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही क्यों होगा, क्या है इसका धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व  – डॉ. बी. के. मल्लिक

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हमलोग जब बच्चे  थे तब से हम मकर संक्रांति  14 जनवरी को ही मानते आये है लेकिन अब मकर संक्रांति हमेशा 15 जनवरी को ही होगा।  हमेशा 72 साल बाद मकर संक्रांति में एक दिन बढ़ जाता है।   यह सन 1935 से पहले 72 साल तक यह 13 जनवरी को रही होगी। हम में से ज्यादातर लोग हमेशा से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं इसलिए उनको इस बार मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र लग रहा है है। लेकिन अब यह 2081 तक 15 जनवरी को ही होगा।
संक्रांति काल का अर्थ है एक से दुसरे में जाने का समय अंग्रेजी में इसे ट्रांजिशन भी कह सकते है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि- सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन “मकर संक्रांति” के रूप में जाना जाता है।
ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है। इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह फर्क पूरे 24 घंटे का हो जाता है।सायं 4 बजे के बाद संध्याकाल माना जाता है और भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार संध्या काल के बाद सूर्य से सम्बंधित कोई भी गणना उस दिन न करके अगले दिन से की जाती है,लेकिन सूर्यास्त न होने के कारण 14 जनवरी को ही मानते आ रहे थे। वैसे तो 2008 से 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को हो चुकी है। 2081 से मकर संक्रांति 16 जनवरी को होगी। वैसे उसके बाद भी कुछ लोग कुछ बर्ष तक 15 जनवरी को मनाते रहेंगे। संक्रांति का चन्द्र महीनों की तिथि से कोई मतलब नहीं है।संक्रांति की अपनी गणना है जो कि अंग्रेजी से संयोग कर जाती है।72 साल की रेंज में संक्रांति चक्र एक दिन बढ़ जाता है।
275 में ये 21 दिसम्बर को थी जो कि अब 15 जनवरी तक आ गयी है। इन बातों को जानकार आपको अपने पूर्वजों पर गर्व करना चाहिए कि – जब दुनिया भर के लोग पशुओं की तरह केवल खाने और बच्चे पैदा करने का काम ही जानते थे तब हमारे पूर्वज ब्रह्माण्ड को पढ़ रहे थे।
*मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।*
पौराणिक कथा अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करेंगे तथा 2 माह तक रहेंगे। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं अत: इस दिन को ‘मकर संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है। इसी कारण इसे पिता-पुत्र पर्व के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन पुत्र द्वारा पिता को तिलक लगाकर उनका स्वागत करना चाहिए। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य कर अपनी खुशी मनाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थीं इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।
महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।
इस त्योहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति तमिलनाडु में ‘पोंगल’ के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरल में यह पर्व केवल ‘संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन दान करने का अनंत गुना फल मिलता है। इस दिन तिल, कंबल, सर्दियों के वस्त्र, आंवला, धन-धान्य आदि का दान करें व नदी में स्नान करें।
डॉ. बी. के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792

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