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युगानुकूल हो असमिया संघर्ष

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मुझे लगता है असमिया जातीयता को असमिया राष्ट्रीयता के रूप में देखना या अभिव्यक्त करना एक खतरनाक ट्रेंड है। उसकी जगह असमिया अस्मिता शब्द प्रयोग ज्यादा सटीक है। किसी भी विविधता की अपनी विशिष्टता होती है,अपना वैशिष्ट्य होता है। असमिया अस्मिता की पूर्ण सुरक्षा की गारंटी सिर्फ और सिर्फ भारतीय राष्ट्रीयता में ही है और भारत की राष्ट्रीयता का आधार सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व है, ये मेरा कनविक्शन है।

असमिया संस्कृति भी अतिविशिष्ट है और उस अस्मिता को अक्षुण्ण रखने का हर प्रयास जायज है।

असमिया खान-पान, व्यवहार, इसकी सत्रीय पहचान, साहित्य-सभा का समाज पर अप्रतिम प्रभाव, मातृ सत्तात्मक चिति और थोड़े भौतिक संसाधनों में आनंदित रहने की मानसिकता, ये सब मिल कर असमिया संस्कृति है जिसमें इस समाज की भाषा और उसके लिए इतना प्रेम भी एक मजबूत आयाम है।

ये विडंबना है कि इतनी बहु-आयामी विशिष्टता को सिर्फ भाषा में ढाल कर प्रतिष्ठित कर दिया गया है। निहित स्वार्थी तत्वों ने इस कमजोरी को ठीक ठीक पकड़ लिया है और अवसरवादी राजनीति भी इसका फायदा उठा रही है।

आशा है प्रांत के बुद्धिजीवी इसे समझेंगे..खतरा सांस्कृतिक आक्रमण का है और लड़ाई सिर्फ भाषाई डेमोग्राफी की लड़ी जा रही है। सिर्फ भाषाई डेमोग्राफी की लड़ाई नई परिस्थितयों में बेमानी है। इसका खामियाजा भी हमने भुगता है।

बहरूपिया आक्रांता ,भाषा का मुखौटा पहन कर विप्लवीयों की भीड़ में छुपा है और आंदोलन को गलत दिशा में ले जा रहा है।

लंपट वामपंथ और राजनीतिक इस्लाम से ये आंदोलन जितनी जल्दी छुटकारा पा ले अच्छा है..बाकी जो है सो है..

-संवेद अनु

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