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राष्ट्र चिंतन, हिमंता बिस्व सरमा की कट्टरता बनेगी भाजपा की समृद्धि

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विष्णुगुप्त
असम में  सोनेवाल को नजरअंदाज कर घोर कट्टरवादी नेता ही हिमंता बिस्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाए जाने का अर्थ और सन्देश होता है कि भाजपा में अब उदारवादियों और नरम किस्म के नेताओं और खासकर मुख्यमंत्रियों की जगह ही नहीं बचेगी | आम तौर पर राजनीति में यह सिद्धांत है कि जब देश में किसी सरकार की वापसी होती है तो यह स्वीकार कर लिया जाता है कि प्रधानमंत्री के कामों पर जनता की मुहर लग गई है, जनता ने अपना समर्थन दे दिया, इसलिए फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर उसी नेता की ताजपोशी होती है l इसी तरह राज्य में जब किसी सरकार के फिर से वापसी होती है तो फिर उसी मुख्यमंत्री की ताजपोशी होती है l राजनीति के इस सिद्धांत के पालन की परंपराएं सीमित अवसरों पर ही टूटती हैं l
पर भाजपा ने इस राजनीतिक परंपरा को एक झटके में तोड़ दिया,सोनेवाल को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया l सोनेवाल की सरकार कोई बुरी सरकार नहीं थी ,सोनेवाल पर भ्रष्टाचार के भी कोई आरोप नहीं थे l बहुत सारे लोगों की उम्मीद भी नहीं थी कि असम में भाजपा सरकार की वापसी होगी, क्योंकि सीएए कानून को लेकर असम में भी बवंडर उठा था,  सीएसए कानून के खिलाफ सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही नहीं बल्कि असम में बाहरी लोगों को बाहर करने के खिलाफ लड़ने वाले लोग और संगठन भी खिलाफ में थे, सिर्फ खिलाफ में ही नहीं थे बल्कि आंदोलित भी थे, असम में लाखो लोगो को बाहरी के तौर पर चिन्हित किया जा चुका है l फिर भी असम में भाजपा सरकार की वापसी हुई l इसलिए यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि सोनेवाल कि सरकार जन मुखी थी l फिर सोनेवाल को मुख्यमंत्री पद से वंचित क्यों किया गया? दरअसल इसके पीछे सोनेवाल का उदारवादी होना ही गुनाह था, कम बोलना गुनाह था, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ कड़ी और सबक कारी कदम न उठाना गुनाह था, बद्रूदीन अजमल के मजहबी आतंक और दबदबे पर चाबुक ना चलाना गुनाह था, विभिन्न उग्रवादी संगठनों पर काबू न करना गुनाह था, विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच एकता और विश्वास उत्पन्न  न करना गुनाह था, असम से बाहर निकल कर पूरे पूर्वोत्तर में पैठ न बनाना गुनाह था, पूरे पूर्वोत्तर के राजनीतिक प्रबंधन में  उदासीन होना गुनाह रहा।
भाजपा की खोज भी सिर्फ अच्छे और कट्टर मुख्यमंत्रियों के नहीं थी बल्कि ऐसे मुख्यमंत्री की खोज थी जो सिर्फ असम में ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में भाजपा की पैठ को सुनिश्चित कर सके, पूर्वोत्तर के राजनीतिक विचारों  और उलझनों को थाम सके असम से बाहर जैसे मणिपुर नागालैंड मिजोरम आदि लघु प्रदेशों में जारी चरमपंथी और विघटन कारी आतंक पर केंद्र को जरूरी व कड़े सहयोग की गारंटी दे सके। असम से सटे पश्चिम बंगाल में भी पैनी नजर रख सकें। पश्चिम बंगाल में तेजी के साथ जिस प्रकार की घटनाएं घट रही हैं उससे भाजपा बहुत ही ज्यादा परेशान है। पश्चिम बंगाल में भाजपा चौतरफा घेराबंदी चाहती है।
ऊपर युक्त राजनीति कसौटी पर भाजपा की राजनीतिक जरूरतों को उदारवादी नरम शख्सियत सोनेवाल पूरा नहीं कर सकते थे। कोई अति कट्टरवादी और अतिमहत्वाकांक्षा से भरपूर राजनीतिक शख्सियत ही भाजपा की ऐसी जरूरतों को पूरा कर सकती थी। इस कसौटी पर भाजपा की खोज  हिमंता बिस्व सरमा तक पहुंच कर समाप्त होती है।
अब राजनीतिक पड़ताल का एक विषय यह है कि हिमंता बिस्व सरमा बहुत ही कम समय में भाजपा के अंदर में अपनी पैठ कैसे बनाई। एक घोर कांग्रेसी होने के बावजूद भाजपा में आने के साथ ही साथ अति कट्टरवादी कैसे हो गए? कांग्रेस के अंदर में जब तक वे थे तब तक उनकी पहचान मुस्लिम विरोधी होने और कट्टरवादी हिंदू होने की कभी नहीं रही थी। पर वे कांग्रेस के अंदर बड़े नेता थे अपनी छवि चमका चुके थे। पर उन्हें कांग्रेस के अंदर शख्सियत के अनुसार सम्मान और पद नहीं मिला। देश की राजनीति में जब नरेंद्र मोदी राज का उदय हुआ तब उनका मन भी डोल गया।
कांग्रेस की कमजोरियों और दुश्वारियां एकांकी सांप्रदायिकता की राजनीति और असम में मुस्लिम करण को बढ़ती हुई राजनीतिक क्रिया में कांग्रेस का अप्रत्यक्ष समर्थन और सहयोग उन्हें स्वीकार नहीं था , पीड़ादायक था। इसके अलावा असम में कांग्रेस के भविष्य पर लगते विराम का भी उन्हें राजनीतिक ज्ञान था l 2015  में  उन्होंने भाजपा में शामिल होना स्वीकार कर लिया l आमतौर पर यह देखा जाता है कि  जब कांग्रेसी और अन्य दल से कोई नेता भाजपा में शामिल होता है तब वह उदारवादी ही बना रहता है अति कट्टरवाद को अंगीकार नहीं करता है l इस परंपरा को हिमंता बिस्व सरमा ने तोड़ डाली l उदारवादी होने की जगह उन्होंने अति कट्टरवाद का रास्ता चुना l इस मामले में  वे दूरदर्शी राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं l लाभ भी उन्हें खूब मिला l अति कट्टरवाद के रास्ते पर चलने के कारण उन्हें दो राजनीतिक लाभ हुए ,एक उनकी शख्सियत की लोकप्रियता में अचानक बढ़ोतरी हुई , दूसरा लाभ यह हुआ  कि वे रातों-रात आर एस एस और अन्य हिंदूवादी संगठनों के भी प्रिय बन गए, जबकि  आरएसएस और अन्य हिन्दू वादी संगठन बाहरी नेता को जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं और ऐसे नेताओं का समर्थन भी नहीं करते हैं l कट्टरवाद को सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों में शामिल करना बहुत ही कठिन कार्य होता है पर सोनेवाल सरकार में एक मंत्री के तौर पर उन्होंने हिंदू कट्टरता से जुड़े विषयों, नीति एवं कार्यक्रमों को सरकारी जामा पहनाने का पराक्रम दिखाया l खासकर मदरसों को समाप्त करना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी गई है l असम ही नहीं बल्कि पूरे भारत में मदरसों को लेकर जन चर्चा एवं राजनीति अच्छी नहीं है l जन चर्चा एवं राजनीतिके विमर्श है कि मदरसों से विघटनकारी और आतंकी पैदा लेते हैं l अधिकतर मुस्लिम आतंकवादी जो पकड़े जाते हैं वे सभी मदरसा छाप ही होते हैं l ऐसी धारणा वैश्विक भी बनी हुई है l असम और हिमंता बिस्व सरमाने पूरे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को भी रास्ता दिखाया l मदरसों की सरकारी मान्यता उन्होंने रद्द कर दी। सभी सरकारी मदरसों को बंद कर दिया। कह दिया कि सरकारी पैसों पर अब कोई मदरसा नहीं चलेगा l
मदरसे को बंद करने के निर्णय पर राजनीतिक बवंडर उठा। मुस्लिम प्रताड़ना के विषय बनाए गए । मुस्लिम पैसों पर पलने वालों ने हाय तौबा भी खूब मचाई पर हिमंता बिस्व सरमा विचलित नहीं हुए उन्होंने मदरसों को समाप्त करने की नीति को पूरी तरह से सच कर दिखाया है l  आज की तारीख असम के अंदर में सरकारी सहायता प्राप्त एक भी मदरसा नहीं है l
मुस्लिम समझ की कसौटी पर भी हिमंता बिस्व सरमा ने बाजी मारी है। भाजपा मूल के नेता भी जो बोलने का साहस नहीं करते हैं वह बोलने का साहस उन्होंने किया । अब यह प्रश्न है कि हेमंत विश्व शर्मा ने ऐसी कौन सी बात कही थी जो भाजपा मूल के नेता भी नहीं बोल सकते थे । उन्होंने खुलेआम और निडरता के साथ ही कहा था कि भाजपा को असम में मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए, हम मुसलमानों के वोट के लिए  गिर गिराएंगे नहीं, हम मुसलमानों के वोट के लिए देश की अस्मिता के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं , हम मुसलमानों के वोट के लिए देश और  असम को रोहिंग्या बांग्लादेशी मुसलमानों का धर्मशाला नहीं बनाएंगे, मुसलमानों के वोट के लिए हम सीएए कानून को स्थगित नहीं कर सकते हैं l हमें मुसलमानों के वोट के बिना भी असम में सरकार बना सकते हैं l वास्तव में हेमंत की नीति चाक-चौबंद थी उनकी यह राजनीति पूरी तरह से सर्वश्रेष्ठ थी l सीएए कानून और हिंदू एजेंडे के कारण मुसलमान भाजपा को वोट दे ही नहीं सकते थे l हेमंत की बात और नीति पूरी तरह से सच साबित हुई l असम में मुस्लिम वोट और मुस्लिम समर्थन के बिना भी भाजपा फिर से सरकार में वापसी करने में सफल हुई है l
राजनीतिक तथ्य भी यही है कि भाजपा  मुस्लिम समर्थन बिना भी सत्ता के लिए बहुमत जुटा सकती है l ऐसा राजनीतिक पराक्रम अब तो बार बार देखने को मिल रहा है l यह पराक्रम नरेंद्र मोदी ने शुरू किया है, कायम किया है l 2014  में नरेंद्र मोदी ने सिर्फ हिंदुओं के वोट पर सरकार बनाई फिर उन्होंने 2019 में केंद्र में सरकार बनाई नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुसलमानों का आक्रोश और रणनीति कौन नहीं जानता है।
कट्टरवाद का प्रयोग भाजपा की मज़बूरी बन गई है। भाजपा समर्थक बिना कट्टरवाद के उफान फरते नहीं। उदारतावाद बार बार पराजित होता है। अटल बिहारी वाजपेई का उदारतावाद पराजित हो गया था। खासकर भाजपा राज्यो की भाजपा राज्य सरकारें भी दफन होती रही है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश इसके उदाहरण हैं। इन राज्यो में भाजपा के मुख्यमंत्री अति उदारवादी थे, उन्हें अपने विरोधी मुस्लिम राजनीति पर जोरदार कारवाई करना स्वीकार नहीं था, हिन्दू हितो का उफान इन्हे नहीं स्वीकार नहीं था। इसके अलावा यूपी में योगी आदित्यनाथ की कड़ी। और कट्टर वादी सरकार प्रेरणा देती है।
असम के अंदर  हिमंता बिस्व सरमा को अमित शाह की प्रतिमूर्ति मानी जाती है। इसलिए हिमंता बिस्व सरमा पर असम के लोगो का विश्वास है। हिमंता बिस्व सरमा की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी खासकर बीजेपी के वैसे मुख्यमंत्रियों के लिए खतरे की घंटी है और सन्देश है जो अति उदारवादी हैं और हिंदुत्व के प्रश्न पर उदासीन बने रहते हैं। अब भाजपा हिमंता बिस्व सरमा का उपयोग पूरे पूर्वोत्तर में अपना जनाधार विकसित करने और राजनीतिक प्रबन्धन में करेगी।
संपर्क
विष्णु गुप्त
मोबाइल … 9315206123
द्वारा .. श्री राजेन्द्र कुमार

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