जाने-माने पत्रकार वरुण दास गुप्ता का कोलकाता में हाल ही में हुए निधन के समाचार ने एक बार फिर हमें बिलुप्त होती आदर्शवादी पत्रकारों की याद दिलाता है जो अपने उसूलों के साथ कभी समझौता नहीं किए । पत्रकारिता के क्षेत्र में वह बिना किसी औपचारिक शिक्षा के ही कूद पड़े थे । इसके बाद सफलता के शिखर पर पहुंचे। और, उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है जो अगली पीढ़ी को प्रेरित करती है।
वयोवृद्ध पत्रकार के निधन की खबर ने पत्रकारिता में मेरे शुरुआती दिनों की कुछ पुरानी यादें ताजा कर दीं। वह गुवाहाटी में पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सम्मानित व्यक्ति थे। वह उस समय के नैतिक पत्रकारिता का एक जीवंत प्रतीक थे। सभी उन्हें वरुणदा कहकर बुलाते थे।
नब्बे के दशक के अंत में मुझे गुवाहाटी में वरुणदा के साथ कई कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर मिला। उस समय मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी करियर के शुरूआती दौर में था। मुझे उनसे बात करने और रिपोर्टिंग टिप्स लेने के लिए काफी समय से बहुत दिलचस्पी थी। मुझे पता चला कि वरुणदा के पास पत्रकार बनने के लिए कोई पारंपरिक डिप्लोमा या डिग्री नहीं थी। मैंने भी किसी डिप्लोमा या डिग्री के बिना रिपोर्टिंग के क्षेत्र में प्रवेश किया था। उस दिन मैंने हिम्मत करके उनसे पूछा कि कैसे वह एक घटना की रिपोर्टिंग करते है। उन्होंने प्यार से कहा कि समाचार रिपोर्ट के पहले दो अनुछेद ,घटना या दृश्यस्थल से वापस आते समय ही अपने दिमाग में गढ़ लेते थे। जब तक वह कार्यस्थल पर पहुंचते, उस घटना का विस्तृत रिपोर्टिंग लगभग तैयार हो जाता था। फिर, शेष लेखन सामान्य प्रक्रिया से गुजरता था। वह बिना समय बर्बाद किए आसानी से पूरी रिपोर्ट न्यूज डेस्क को भेज देते थे।
वरुणदा की पत्नी बांग्ला की नामी लेखिका और कबि रुचिरा श्याम मेरी माँ के स्कूल की सहपाठी थीं। लेकिन उनके भारी व्यक्तित्व के कारण उस पहचान को कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं हुई।
वरुणदा कई वर्षों तक गुवाहाटी में ‘द हिंदू’ के विशेष संवाददाता रहे। एक दिन मैं उनसे पत्रकारिता की गुड की जानकारी के लिए उनके गुवाहाटी की चांदमारी स्तिथ निवास पर गया। उन्होंने उस दिन एक अमूल्य सलाह दी जिसे मैं आज भी श्रद्धा के साथ याद करता हूं। अपने पत्रकारिता करियर के शुरुआती दिनों में, मैं आर्थिक पत्रकारिता में शामिल होने की कोशिश कर रहा था। वरुणदा ने सबसे पहले सामान्य रिपोर्टिंग के लिए एक्सपोजर का सुझाव दिया। और, उसके बाद उन्होंने किसी विशेष विषय में रिपोर्टिंग करने की सलाह दी। “यदि आप यह रास्ता चुनते हैं, तो आप भविष्य में एक बेहतर पत्रकार बनेंगे” – वरुणदा के आशीर्वाद के ये बाते आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं।
एक संक्षिप्त बीमारी के बाद 87 वर्ष की आयु में 31 अक्टूबर को उनका निधन हो गया।
गुवाहाटी छोड़कर दिल्ली आने के बाद पत्रकारिता में मेरी असली तैयारी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया या पीटीआई से जुड़ने के बाद शुरू हुई।
नवागंतुकों को सामान्य समाचार एकत्र करने और रिपोर्ट करने के लिए पीटीआई में एक अभ्यास आयोजित किया जाता है। एक बार जब सामान्य समाचार एकत्र करने की तकनीकों और रिपोर्ट लेखन शैली से परिचित होने पर, कोई एक विशेष विषय को रिपोर्टिंग करने का अवसर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, एक प्रशिक्षु पत्रकार को धीरे, धीरे एक विशेष संवाददाता के रूप में तैयार किया जाता है। अपने दो दशकों के पत्रकारिता करियर में मुझे रॉयटर्स, डॉव जोन्स न्यूज़वायर्स – द वॉल स्ट्रीट जर्नल सहित विश्व-प्रसिद्ध समाचार संगठनों के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं अभी भी एक अंतरराष्ट्रीय समाचार संगठन में एक पत्रकार के रूप में मैं जुड़ा हुआ हूं।
हालांकि, मुझे यहां यह स्वीकार करना होगा कि पत्रकारिता के बारे में ज्ञान के शब्द जो मैंने अपने पत्रकारिता करियर के शुरुआती वर्षों के दौरान बरुण दा से एकत्र किए थे, वे मेरे करियर के बाद के चरणों में सहायक थे। खासकर, वैश्विक समाचार संगठनों के लिए स्पॉट इवेंट को कवर करते समय।
नब्बे के दशक में पूर्वोत्तर के कई उभरते पत्रकार वरुणदा की समझदारी और उसूलों से समझौता न करने वाली मानसिकता की ओर आकर्षित हुए। और, मैं उनमें से एक हूं।
[लेखक दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय पत्रकार हैं। उन्होंने पीटीआई, रॉयटर्स, डॉव जोन्स न्यूज़वियर – वॉल स्ट्रीट जर्नल के साथ काम किया है। वर्तमान में, लंदन स्थित समाचार एजेंसी एस एंड पी ग्लोबल प्लैट्स से जुड़े है।]