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(विशेष) असम विधानसभा चुनाव परिणाम के मायने

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गुवाहाटी, 03 मई (हि.स.)। असम विधानसभा चुनाव परिणाम के कई मायने हैं। सीधे तौर पर परिणाम को इन अर्थों में लिया जा सकता है कि लोगों ने भारतीय जनता पार्टी सरकार के पांच वर्षों के कामकाज को सराहा है। सरकार के सभी मंत्रियों ने चुनाव में जीत दर्ज की है, लेकिन गठबंधन से अलग होकर जिन्होंने कांग्रेस महागठबंधन का हाथ थाम था, उन्हें असम की जनता ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। बीपीएफ के तीन मंत्रियों को हाराकर जनता ने अपना संदेश स्पष्ट कर दिया है।

दूसरी महत्व की बात यह है कि जिन सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा ने उम्मीदवारों को बदला था, उन सीटों पर भी लोगों ने पार्टी का भरपूर समर्थन किया। भाजपा ने कई कई सिटिंग एमएलए का टिकट बदलकर बड़ा जोखिम उठाया था, लेकिन जनता ने भाजपा के इस निर्णय पर भी अपनी मुहर लगाई है।
यह सच है कि पार्टी अपने दावे के अनुसार 100 सीटों को पार नहीं पहुंच सकी है। लेकिन, वह अपनी पुरानी स्थिति को बरकरार रखने में कामयाब रही। भाजपा का विकल्प बनने की तमाम कोशिशों के बावजूद सूबे की जनता ने किसी पर भरोसा नहीं दिखाया।
जनता ने इस बात को महसूस किया कि यदि भाजपा नहीं तो विकल्प क्या है? सूबे की जनता इस सवाल से जूझती रही। आखिर में उसने विकल्प पर विचार करना छोड़ दिया। एक स्थिर और विकासपरक सरकार के लिए भाजपा को ही चुना।
दूसरी ओर विकल्प के नाम पर लंबे चौड़े वादे थे। वहीं, बीते 15 वर्षों के कांग्रेस शासन काल को जनता देख चुकी थी। उस दौरान ऐसा कुछ भी विशेष कार्य नहीं किया गया था, जिसे भाजपा के पांच वर्षों की सरकार से तुलना की जा सके। मुद्दा बेरोजगारी का हो या फिर भ्रष्टाचार का। बात कुशासन की हो या कुछ अन्य मसले हों। हर मोर्चे पर कांग्रेस के कार्यकाल में जनता निराश हुई। घोटालों के कीर्तिमान स्थापित होते गए। 15 वर्षों के शासनकाल में कांग्रेस जो कुछ नहीं कर सकी, वह सब चुनाव प्रचार के दौरान करने की गारंटी देने लगी थी। वह चाय मजदूरों की समस्या हो या बिजली बिल की। सूबे में ये समस्याएं आज कल की नहीं हैं, बल्कि इसका इतिहास है।
जनता बिजली बिल को लेकर हमेशा ही परेशान रही है। कांग्रेस के 15 वर्षों के शासनकाल में बिजली बिल को लेकर जनता पर एक के बाद एक बोझ डाले गए थे। भ्रष्टाचार का चारों ओर बोलबाला था। चपरासी से लेकर मंत्री तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे होने के आरोपी थे। जनता ने कांग्रेस के उसी कथित कुशासन को उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा का दामन थामा था।
इसमें कोई शक नहीं कि पांच वर्षों के शासनकाल में भाजपा उन मुद्दों पर कुछ नहीं कर सकी, जिसे करने के लिए उसे चुना गया था। बावजूद इसके पांच वर्ष बाद जनता ने फिर भाजपा की सरकार को इसलिए चुना क्योंकि तुलनात्मक दृष्टि से भाजपा की सरकार कांग्रेस सरकार से कई मायने में अलग और बेहतर थी। एक तरफ लोग आशान्वित थे कि भाजपा को यदि फिर से सत्ता में वापस लाया जाए तो पार्टी इस बार वह सब कुछ करेगी, जो बीते कार्यकाल में नहीं कर पाई है।
वहीं, दूसरी ओर केंद्र में भाजपा का शासन है। ऐसे में यदि राज्य में गैर भाजपा सरकार बनती भी है तो राज्य के लिए बहुत अच्छा नहीं होगा। तीसरी बात यह कि असम की जनता जल्दी परिवर्तन नहीं करती है। यही जनता है कि 15 वर्षों तक कांग्रेस को झेलती रही। ऐसे में पांच वर्षों में ही भाजपा के शासन को बदलकर कांग्रेस के हाथों में दे देने की बात सोचना इतिहास की कसौटी पर खड़ा नहीं उतरता है।
ऐसी कई सारी वजह हैं कि भाजपा फिर से अपनी पुरानी स्थिति को बरकरार रखते हुए सत्ता में वापस आई है। इसके सभी मंत्री चुनाव जीतकर आए हैं। लोगों को विश्वास है कि इस कार्यकाल में भाजपा की सरकार अपने किए गए हर वादे को पूरा करेगी।

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