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श्रद्धांजलि – एक सच्चे इंसान थे हमारे पिताजी

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2 नवंबर 2021 को भोर में 2.15 पर रांची के रिम्स हॉस्पिटल में हमारे पिता श्रद्धेय आत्मा प्रसाद जी का स्वर्गवास हो गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गड़वार के निकट छोटा मनियर में स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद और स्वर्गीय इंद्रासनी देवी के घर सन 1940 में उनका जन्म हुआ था। अल्पायु में ही दादा जी का देहांत होने के कारण कक्षा 5 तक की शिक्षा के उपरांत ही उन्होंने नेपाल, पश्चिम बंगाल और असम में काम किया। कम उम्र में ही खेजूरी- खड़सरा निवासी स्वर्गीय गौरी शंकर गुप्ता की पुत्री चंद्रावती देवी के साथ उनका विवाह हो गया। पिताजी ने पहले बड़सरी के पास उदयपुर में किराने की दुकान शुरू किया था तब द्वितीय पुत्र मां के पेट मे थे, किराये के घर मे वही रहते भी थे। उनके पहले पुत्र अशोक कुमार जब 3-4 साल के थे, तभी सत्तर दशक के उत्तरार्ध में पूरे देश में टीवी महामारी का प्रकोप चला था और पिताजी भी इस बीमारी के प्रकोप में आ गए। परिणाम स्वरूप घर में औरों को बीमारी ना फैले, इस भय से दादी ने उनका गांव के घर में प्रवेश वर्जित कर दिया था। मेरी मां उन्हें लेकर पश्चिम बंगाल में आसनसोल के पास कुल्टी नामक स्थान पर केंदुआ बाजार में अपने मौसी के यहां रहने लगी। मां ने मेहनत- परिश्रम करके घर-घर में काम करके पिता जी की सेवा की और उन्हें ठीक किया। उसी समय 1970 के अंत में द्वितीय पुत्र दिलीप कुमार का जन्म केंदुआ बाजार के मौसी के घर में हुआ। हमारे नाना जी वहां पर अचार का व्यवसाय करते थे, मां को लेकर अपने गांव आए थे। उसी समय बड़े पुत्र अशोक को चाचा लोग मनियर लेकर आए थे, यहां एक दुर्घटना घट गई। लोग बताते हैं कि मनियर में हमारे घर के पीछे जो नहर बहती है, उसको पार करने के लिए एक पेड़ का तना रखा हुआ था और दोपहर में खाना खिलाने के लिए यदू बाबूजी को बुलाने के लिए भैया उसे पार करके खेत में जा रहे थे, गांव के ही एक मुस्लिम परिवार के बच्चे उनके पीछे थे। खेल खेल में उनको धक्का दे दिया, नहर में पानी भरा हुआ था, डूब कर उनकी मौत हो गई। उनका मृत शरीर चांदपुर के पास लोगों ने नहर में देखा और निकाला। खबर हमारे घर आई, मातम छा गया। ‌ परिवार के बड़े पुत्र अशोक कुमार का 5 साल की उम्र में ही असामयिक निधन हो गया। तब दिलीप कुमार की उम्र 1 साल थी।
उस समय गड़वार थाने के सामने चट्टी पर हमारी चाय की दुकान थी, पिताजी और चाचा लोग चाय की दुकान में ही लग गए। चाय- मिठाई की एक ही दुकान थी और अच्छी चलती थी। बाद में मझले चाचा ने कपड़े की अलग दुकान कर ली और छोटे चाचा ने पान की दुकान कर ली। फिर मां हम लोगों को लेकर गड़वार ही रहने लगी, दो भाई राजाराम और कृष्ण कुमार का मनियर में 1975 और 1977 में जन्म हुआ जबकि दोनों छोटे भाई रामप्रकाश का 1979 में और श्यामजी का 1982 में गड़वार में जन्म हुआ।
मां और पिताजी ने कठिन परिश्रम करके स्वयं कष्ट, तकलीफ में रहकर हम पांचों भाइयों का पालन पोषण किया। हमारी मां हरफनमौला थी नेहरू महिला मंडल की ब्लॉक अध्यक्षा थी, ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल की मेंबर थी, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई थी। चाचा जी ग्राम प्रधान थे, कोआपरेटिव के चेयरमैन थे। पिताजी जंगली बाबा इंटरमीडिएट कॉलेज संचालन समिति के आजीवन सदस्य थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों से सक्रिय रुप से जुड़े हुए थे। इसलिए हमारी चाय की दुकान एक राजनीति का अखाड़ा भी थी। हमारी मां स्वर्गीय चंद्रावती देवी का देहावसान कैंसर के चलते 1993 में ही हो गया और पिताजी अकेले रह गए।
पिताजी शिक्षा के महत्व को समझते थे, इसलिए उन्होने कभी भी पढ़ाई में आर्थिक अभाव नहीं होने दिया और पढ़ाने के लिए  हर संभव प्रयास किए। हमलोगो को स्वाभिमान और प्रतिष्ठा के साथ जीना सिखाया। कभी हिम्मत ना हारने की प्रेरणा दिए।
हम पांच भाइयों को जन्म देने वाले पूज्य पिताजी बहुत ही उच्च विचारों के, मानवीय दृष्टिकोण रखने वाले सच्चे व्यक्ति थे। अल्प शिक्षित किंतु दुनिया का ज्ञान रखने वाले पिताजी ने सदैव हम सभी का ध्यान रखा। बहुत संयम पूर्वक रहते थे, नियम के पक्के थे, उनके भीतर लेशमात्र भी लालच नहीं था। सदैव खुद तकलीफ में रहकर भी दुसरों को मदद करते थे। परिवार में सबका ध्यान रखने वाले वहीं थे। सर्वदा हंसते- हंसाते रहने वाले जिंदा दिल इंसान थे। कलयुग में रहकर भी सतयुगी व्यक्तित्व था उनका। सिद्धांतों के साथ कभी उन्होंने समझौता नहीं किया, जरूरत पड़ी तो अपने बेटे को भी जेल भेजने में संकोच नहीं किया। परिवार की रौनक थे, सबको पढ़ाया- लिखाया आदमी बनाया, खुद के लिए कभी कुछ नहीं मांगा। मिलनसार, व्यवहार कुशल, परोपकारी स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें चाय बहुत पसंद थी, कड़क चायपत्ती, हल्का चीनी वाला दिन भर में कितनी बार भी मिल जाए मना नहीं करते थे।
बड़े भाई दिलीप कुमार इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक करके संघ का प्रचारक बन गए और बाद में उन्हें असम भेज दिया गया, जहां वे दैनिक हिंदी समाचार पत्र प्रकाशित करते हैं। द्वितीय भाई राजारामजी घर परिवार, व्यवसाय संभालने के चक्कर में उलझ गए। तृतीय भाई कृष्ण कुमार दिल्ली में टूरिस्ट कंपनी में काम करने लगे, बाद में उन्होंने गाड़ी का बिजनेस शुरू किया। चतुर्थ भाई रामप्रकाश नोएडा में अपनी कला के बल पर व्यवसाय करने लगे। छोटे भाई श्याम जी आर्मी में भर्ती हो गए। राजाराम जी का विवाह मां के रहते ही हो 1993 में हो गया था, मां के देहांत के बाद कृष्ण कुमारजी का विवाह 1995 में हुआ। बड़े भाई दिलीप कुमार जी का भी सन 2000 में विवाह हुआ। रामप्रकाश का 2007 में और श्यामजी का भी विवाह 2009 में करके पिताजी दायित्व मुक्त हुए। हम पांचों भाइयों ने मिलकर पिताजी की चाय, मिठाई की दुकान बंद करवा दी। अब वहां पर कंप्यूटर से संबंधित काम राजारामजी का बड़ा पुत्र अभिषेक करता है। दुकान की वजह से पिताजी का कहीं जाना आना नहीं होता था। दुकान बंद होने पर कभी रामप्रकाश के पास, कभी श्याम जी के पास और कभी शिलचर में बड़े भाई दिलीप कुमार जी के पास उनका आना-जाना होने लगा।
आर्मी के जवान छोटे भाई श्यामजी के साथ गांधीनगर, सुकना, देहरादून और रांची में रहते हुवे अपने मिलनसार और मृदुभाषी व्यक्तित्व के चलते पिताजी सभी को प्रभावित करते गए। जहां फोन करने से ही लोग पिताजी के बारे में पूछते हैं।
2011-12 में शिलचर में रहकर उन्होंने प्रेरणा भारती का भवन निर्माण कराया था। 2018 तक बराबर उनका शिलचर आना-जाना था।
पिताजी तीन भाई आत्मा प्रसाद, परमात्मा प्रसाद, महात्मा प्रसाद और दो बहनों तेतरी देवी, देवंती देवी में सबसे बड़े थे, एक भाई और एक बहन का पहले ही देहांत हो चुका है। वे अपने पीछे पांच पुत्र, पांच पुत्रवधु, छ: पौत्र, सात पौत्री सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
पिताजी की आत्मा जहां कहीं भी हो, ईश्वर उन्हें परमधाम प्रदान करें, उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति मिले, इसी प्रार्थना के साथ हम पांच भाई- दिलीप कुमार, राजाराम, कृष्ण कुमार, रामप्रकाश और श्यामजी
गड़वार, बलिया (उत्तर प्रदेश)

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