पंचमुखी श्रीबालाजी भगवान
पंचमुखी हनुमान जी, गुण बल बुद्धि निधान।
सेवक हैं श्रीराम के, भक्तों के भगवान।।
भक्तों के भगवान, रुद्र के हे अवतारी।
कर दो बेड़ा पार, आप से विनय हमारी।।
जै जै जै बालाजी स्वामी।
अजर अमर प्रभु अन्तर्यामी।।
आप सृष्टि के पहले नायक।
आदि अंत पावन परिचायक।।
रामचन्द्र सेवक पंचानन।
जिसकी कृपा तरै अहिरावन।।
पंचमुखी कल्याण प्रतीका।
सब देवों में हनुमत टीका।।
जब भक्तों पर संकट छाये।
संकट मोचन हनुमत आये।।
भक्तजनों पर तुम हो वारे।
लखन सिया प्रिय राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के साधक।
भूत प्रेत भय दारुण बाधक।।
अतुलित बल अनुपम छवि धारी।
सहज सरल सबके सुखकारी।।
बालकाल सूरज को लीले।
मान मधुर फल खाइ हठीले।।
सीता माँ का पता लगाए।
लंका में विध्वंश मचाए।।
सीय मातु के पुत्र दुलारे।
शंकर सुमन अंजना प्यारे।।
लखन लाल पर मुर्छा छाई।
वटी हेतु कर शैल उठाई।।
अहिरावण महिरावण भ्राता।
बचपन से रावण प्रिय ताता।।
रावण ने सूचना पठ़ाई।
छिड़ी हुई है कठिन लड़ाई।।
बंधु बांधव स्वर्ग सिधारे।
अहिरावण महिरावण न्यारे।।
राम शिविर अहिरावण आयो।
मायावी मुर्छा सब छायो।।
मुर्छा छाड़ि विभीषण जागे।
राम लखन को खोजन लागे।।
नहीं मिले लक्ष्मण रघुराई।
दुखी विभीषण भेद बताई।।
अहिरावण ले गया चुराई।
देर न करो पवन सुत भाई।।
लोक पताल गये हनुमंता।
पहरा देत पवन सुत कंता।।
नाम मकरध्वज परिचय पाहीं।
बाँध पूँछ हनु भीतर जाहीं।।
देख वहाँ बलि की तैयारी।
पंच दिशा दीपक लौ जारी।।
मायावी रण कुशल धुरंधर।
पूजत मातु भवानी सादर।।
हनुमत रूप भवानी धारे।
अट्टहास कर नगर उजारे।।
उत्तर दिशि वराह मुख लीन्हा।
दक्षिण में नरसिंहहि कीन्हा।।
पश्चिम गरुड़ पूर्व मुख बानर।
अम्बर दिशि हयग्रीवहि सुन्दर।।
सुख संपदा वराह दिलाते।
इसी हेतु ये पूजे जाते।।
सकल शक्ति नरसिंह विराजे।
हनुमत के ऊपर यह साजे।।
गरुड़ तीव्रगति के प्रतिमाना।
इनके सम कोऊ नहिं जाना।।
तेज बुद्धि हयग्रीव प्रदाता।
बानर मुख द्युति वीर्य विधाता।।
फूँक पाँच आनन जब मारी।
बूझत दीपक राज उजारी।।
अहिरावण को स्वर्ग पठायो।
राम लखन पुनि लेकर आयो।।
मरियल नाम असुर अविवेका।
चुरा लिया हरि चक्रहि नेका।।
हनुमत पंचरूप तनु धारे।
चक्र सुदर्शन छीन पधारे।।
आप समान देव नहीं दूजा।
सकल मनोरथ पूरहिं पूजा।।
मन से जो बालाजी ध्वावे।
मन इच्छित फल तत्क्षण पावे।।
बालाजी का नाम अनूपा।
जो नर भजे तरे भव कूपा।।
तुलसीदास जपे दिन रैना।
दर्शन मिले मिले हिय चैना।।
जब हरिकीर्तन कोई गावे।
रूप बदलकर हनुमत आवे।।
शनि मंगल द्वारे जो आवे।
मनवांछित फल लेकर जावे।।
पंचमुखी हनुमान जी, सुनियो मोर गुहार।
अवध अराधे आपको, सहित सकल परिवार।।
सहित सकल परिवार, कृपा निधि दया विचारो।
आयुर्विद्या यशो बलम से मोहिं सँवारो।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
संपर्क 8787573644