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हिंदी को अंग्रेजी का विकल्प बनाना चाहिए, स्थानीय भाषा का नहीं- अमित शाह

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नई दिल्ली 8 अप्रैल: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि अलग अलग राज्यों के लोगों को आपस में अंग्रेजी की जगह हिंदी में बात करनी चाहिए. उनका मानना है कि हिंदी को देश की राष्ट्रीय भाषा बनाने का समय आ गया है.

गृह मंत्रालय ने बताया कि अमित शाह ने यह बात संसद की आधिकारिक भाषा समिति की एक बैठक में कही. मंत्रालय के मुताबिक उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि सरकार को चलाने का माध्यम ही आधिकारिक भाषा है, और इससे निश्चित रूप से हिंदी का महत्व बढ़ेगा.

शाह ने आगे कहा, “अब समय आ गया है कि आधिकारिक भाषा को देश की एकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए. जब अलग अलग भाषाएं बोलने वाले राज्यों के लोग एक दूसरे से बात करें तो उन्हें भारत की भाषा में बात करनी चाहिए.”

शाह पहले भी हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने की बात कर चुके हैं. 2019 में उन्होंने कहा था की अगर ऐसी कोई एक भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है, तो वो हिंदी है. उनके इस बयान का काफी विरोध किया गया था और इसे केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश पर हिंदी थोपने की कोशिश के रूप में देखा गया था.

शायद इसलिए इस बार शाह ने सावधानीपूर्वक यह कहा कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में मान लेना चाहिए, न कि स्थानीय भाषाओं के. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को भी और लचीला बनाया जाना चाहिए और उसमें दूसरी स्थानीय भाषाओं से शब्दों को जोड़ लेना चाहिए.

भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. अंग्रेजी और हिंदी के अलावा 21 प्रादेशिक भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया है. राज्यों के बीच संवाद के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है.

लेकिन एनडीए सरकार लंबे समय से हिंदी के इस्तेमाल का विस्तार करने की कोशिश कर रही है, जिसका देश के कई कोनों में विरोध भी किया जाता है. शाह ने खुद बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत अजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है. यहां तक कि पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी के 22,000 शिक्षकों की भर्ती कराई गई है.

शाह ने यह भी बताया कि पूर्वोत्तर के नौ जनजातीय समुदायों ने अपनी बोलियों की लिपि को देवनागरी में परिवर्तित कर लिया है. इसके अलावा सभी आठ राज्य हिंदी को स्कूलों में दसवीं कक्षा तक अनिवार्य करने पर भी सहमत हो गए हैं.

गृह मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि नौवीं कक्षा तक छात्रों को हिंदी का मूल ज्ञान देने की जरूरत है और हिंदी पढ़ाने की परीक्षाओं पर भी और ध्यान दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हिंदी के शब्दकोष का दोबारा अवलोकन कर उसे फिर से छापने की भी जरूरत है.

हिंदी के विस्तार पर केंद्र सरकार के इस जोर को लेकर फिर से विरोध शुरू हो रहा है. कांग्रेस पार्टी की केरल इकाई ने एक ट्वीट में कहा कि बीजेपी को हिंदी को विकल्प के रूप में थोपना नहीं चाहिए.

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