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हिन्दी भाषी चाय जानगोष्ठी पर जुल्म

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1970 से पहले इस घाटी के लग भाग हर जगह हमारे लोग हिन्दी स्कूलों में मात्री भाषा में पड़ाई लिखाई करते थे. धीरे धीरे सभी हिन्दी स्कूलों को बंगला स्कूलों में परिबार्तित कर दिया गया आज हमारे बच्चों को अपनी भाषा हिन्दी के बजाय बांगला पड़ने में मजबूर होना पड़ रहा हैं.
इस घाटी में हिन्दी भाषियों पर लगभग हर स्तर पर दबाव डालने, इनको कमजोर दिखाने, अति कम संख्यक़ दिखाकर मौलिक अधिकारो से बंचित रखने का कोशिस काफी पहले से जारी हैं. बराक घाटी जो आज संम्ब्रीद्ध दिख रहा हैं उसमें इसकी नीव हिंदीभाशी चाय जानोगोष्ठी भारत स्वाधीनता से सौ साल पहले जब इस घाटी में रेल मार्ग, सड़क मार्ग, उद्योग कुछ भी नहीं था, ब्रिटिश सरकार केवल चाय उद्योग स्थापना के लिए भारत के मूल भूखंड से हमारे पुर्बजों को लाकर इस घाटी को हराभरा संम्ब्रीध्य बनाया था. कभी इस घाटी से 4/5 बिधायक भी चुने जाते थे आज एक बिधायक चुनने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं . जब तक हम इस घाटी के लोग अलग अलग छोटे छोटे संगठनों में बाटे रहेंगे तबतक तो कुछ भी संभव नहीं. अगर सभी लोग अपनी साहसिक भावनाओं को समेट कर आपसी भेदभाव भुलाकर फिर से एक साथ एक मंच बना लें तो कोई भी जो हमें कमजोर दिखाकर दबाकर उपर उठना चाहता हैं, सौ बार सोचेगी.

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