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” हे राम….!”

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सकल जनमानस के आराध्य
आपकी कृपा से विपत्तियां
स्वत: हो जाती साध्य
हे मानवता की अमर कीर्ति…!
स्वीकार करो हमारी भक्ति
रामायण है आपकी पुण्यकथा
जो सुना…भव तरा
नहीं सुना जो…
उसका जीवन वृथा
हे अनाचार के तिमिर नाशक,
मर्यादा के उच्च शिखर
आप प्रभु हैं प्रखर दिनकर
सकल रुप में सर्वश्रेष्ठ परिभाषित
तुम सम पुत्र जग में अभिलाषित
हे मर्यादा के उच्च प्रतिमान…!
सकल राष्ट करता है गुणगान
हे आत्म ज्ञान हे अमिट चेतना,
पाऊं आशिष तो मिटे वेदना
आप हमारी कुशल क्षेम हैं
हमें आपसे बहुत प्रेम है
भक्तों के हैं आप शुभ्र भाल
अनाचार पर हैं सम्पूर्ण काल
मुझ जैसे भक्तों को आशिष राम का
करता हरदम गुणगान आपका
प्रदीप सेवक ” रामभक्त हनुमान ” का
स्वरचित रचना : –
प्रदीप मारोदिया ‘ मेरा मन ‘
ज्योतिनगर , डिब्रूगढ़ ( असम )

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