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अनावश्यक फोटो एवं खबर छपवाने वाले लोगों से अखबार वाले परेशान

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लाकडाउन में अखबारों एवं चैनलों की भूमिका अहम रही लेकिन उन्होंने कितना नुक्सान उठाया जोखिम में अपने संवाददाता भेजकर पूरे मिडिया हाउस को कोविद महामारी में झोंक दिया जिससे अधिकांश कर्मचारियों एवं संवादाताओं को 14 दिन तक अस्पतालों में भर्ती होने के बाद 14 दिन फिर घर में रहना पङा. उन्हें संख्या में कटोती करके काम चलाना पङा लेकिन वेतन तो देना ही पङा.कम पूंजी वाले अखबार बंद भी हो गये तथा बहुत से अखबार धर्मसंकट में पङ गए कि कहाँ से भरपाई की जाए?? कैसे चलाया जाए??? पूंजी का जुगाड़ कैसे किया जाए???

     हालांकि यह समस्या हर क्षेत्र के व्यापार व्यवसाय में दैनिक मजदूरी करने वाले नौकरी करने वाले के सामने भी भंयकर समस्या आई लेकिन महामारी में किसी तरह जीवन यापन किया.अखबार वाले तो अखबारों की बिक्री तथा विज्ञापन पर ही निर्भर है इसलिए लाकडाउन में भी बिना विज्ञापन बिना बिक्री इंटरनेट एवं व्हाट्सएप के जरिये लोगों तक खबर पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया लेकिन पाठक अखबार मुफ्त में पढ़ने, फोटो एवं खबर समय पर छपवाने के लिए तो संबंधित संवाददाता मालिक संपादक पर दबाव बनाते रहे लेकिन यह कभी नहीं सोचा कि यह कैसे चलेगा.
    मुफ्त में फोटो एवं खबर छपवाने की लोगों की लत तथा अनावश्यक दबाव एक दुसरे की तुलना करके परेशान करने से अखबार वाले भी परेशान है.
   अखबारों की मर्यादा नियम खबर के लिए जगह उसकी महता आदि से उन्हें कुछ लेना देना नहीं रोजाना ग्रुप फोटो छपनी चाहिए.अखबार कोई विशेष व्यक्ति की मृत्यु पर फोटो छाप सकता है लेकिन लोग कहते हैं कि वो पैसे वाला था नेतागिरी करता था इसलिए छाप दी, हमारी क्यों नहीं.
    संवाददाता स्थानीय होता है इसलिए उसे इन समस्याओं से जुझना पङता है लेकिन कोई नहीं जानता कि इसके अधिकार अखबार वाले संपादक के अधीन है.
   ऐसे लोगों को फेसबुक पर अपनी फोटो अपडेट करनी चाहिए तथा अपनी आकांक्षा पूरी करनी चाहिए नाकि किसी अखबार वाले संवाददाता पर दबाव बनाना चाहिए ना ही अनावश्यक शोक पालना चाहिए.
 मदन सिंघल पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम मोबाइल 9435073653

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