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अनेकता में एकता हिन्दू की विशेषता-(1) — आनंद शास्त्री

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सम्माननीय मित्रों ! शताब्दियों से चले आ रही मुस्लिम  आक्रांताओं द्वारा दिये गये हमारी सांस्कृतिक अस्मिता पर लगे घावों के प्रथम चिन्ह को अंततः हमारे यशस्वी प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के भगीरथी प्रयास से मिटाने की वो घडी आ गयी जिसकी प्रतिक्षा में हमारे आपके पूर्वजों ने न जाने कितनी बार अपना प्राणोत्सर्ग किया ! इस निबंध को लिखते मेरी आँखों में ऐसे आँसू हैं जिन्हें सदियों से प्रवाहित होते देखने भर को मेरे जैसी करोड़ों करोड़ आत्मा आदी हो चुकी थीं।
ये एक ऐसी घडी है जिसे आज के भारत में अब बार-बार आनी है ! मैंने अपनी आँखों से कम से कम ऐसे एक हजार देवालयों को देखा है जिनकी पहचान आज-“देवालय”के रूप में नहीं है ! तथाकथित-“लाल किला,कुतूब मीनार,ताजमहल,श्रीकृष्ण जन्मभूमि,ज्ञानवापी,हुमायूँ का मकबरा,जामा मस्जिद, उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र,मुम्बई,आन्ध्र प्रदेश,कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु,गुजरात,मैसूर, काशी,मथुरा,उडीसा, बीहार अर्थात लगभग सभी प्रदेशों के सभी नगरों में स्थित-“जामा मस्जिद-कब्रिस्तान,मदरसे और दो सौ वर्ष से अधिक पुरानी जितनी भी मस्जिदें हैं उनमें 70% हिन्दू-जैन और बौद्ध”मन्दिरों को आधा अधूरा तोड कर उनकी  मूर्तियों और धार्मिक चिन्हों को अत्यंत ही घृणास्पद स्थान और स्थिति में वहीं रखा गया है ! और वो इसलिए कि हमें दिन-प्रतिदिन ये आभास रहे कि-“इस्लाम और मुसलमान” हमारे बादशाह हैं ?
मित्रों ! इनकी दीवारों और गुम्बदों के पीछे और नीचे क्या है इसकी वास्तविकता खुलती जा रही है,हमारे द्वादश ज्योतिर्लिंगों, चौरासी शक्ति पीठ-
“अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव……..इन सभी में इन लुटेरों ने भयानक रूप से विध्वंस किया-
“काशी कर्बला होती मथुरा होती मदीनी।
जो न होते शिवाजी तो सुन्नत होती सबकी॥”
इन्होंने भारत माता की आत्मा पर प्रहार किया ! प्रहार नहीं अपितु माँ के ह्रदय पर लात मारी ! और ये करने में सक्षम ये आततायी केवल इसलिए हुवे क्यों कि हम जाति,भाषा,प्रान्त, गोत्र,सम्प्रदाय छूत-अछूत,छोटे-छोटे राज्यों और जमींदारों के उसी मायाजाल में फंसे हुवे थे जिस-“जातिगत जनगणना” पुनः कराने की बात आज कांग्रेस और आइएनडीआइए कर रही है ! मैं उस इतिहास के काले पन्नों को भला कैसे भूल सकता हूँ जो ये याद दिलाता है कि -“सोमनाथ” आदि सैकड़ों सहस्त्रों शिव लिंगों के ऊपर सैकडों बार और हजारों हजार पुजारी और भक्तों के मस्तक रखकर इन जेहादियो ने-“हलाल” करते हुवे अर्थात जिबह करते हुवे ! हैवानों की तरह रेतते हुवे कहा कि-
“बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम अर्थात वो अल्लाह बहुत दयालू, सबसे महान और कृपालू है ? अगर ऐसा अल्लाह दयालू है तो नृशंस किसे कहोगे आप ?
अब उस गुलामी के चिन्ह सभी को दिखने लगे किन्तु इसके लिये करोड़ों-अरबों लोगों को बर्बरता पूर्वक मार दिया गया, ऐसा भी नहीं है कि आपसी सौहार्द के प्रयास नहीं हुवे !सन् 1857 में तद्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर एवं तद्कालीन अयोध्या हनुमान गढी के महंत स्वामी रामचरन दास एवं स्थानीय मुस्लिम नेता सरदार अमीर अली ने जब यहाँ मिलकर सहमति पूर्वक मन्दिर के जीर्णोद्धार पर सहमत हुए तभी इस्ट इंडिया कम्पनी ने उनको अयोध्या में ही जनता के समक्ष वट-वृक्ष पर फाँसी दे दी।
मुझे अभी भी स्मरण है कि गोरक्षपीठाधीश्वर श्रीमहंत योगी अवैद्यनाथ जी तब संसद सदस्य थे और केन्द्र में इन्दिरा गांधी तथा,उत्तर प्रदेश में हिन्दू विरोधी विश्वनाथ प्रसाद सिंह की सरकार थी तमिलनाडु तथा लगभग पूरे देश में कांग्रेस की सरकार थी उस समय दक्षिण भारत में क्रिश्चियन मिशनरियों तथा मुस्लिमों का आतंक अपने चरम पर था ! मीनाक्षी पुरम तथा वेल्लारी नामक स्थान पर 900 दलितों ने ईसाई धर्म अपनाना ! जिससे आहत होकर आपने तत्काल ही त्यागपत्र देकर हिन्दू युवा वाहिनी के तत्वावधान में जन-जागरण की ऐसी अलख जगाई कि समूचे भारत मे-“स्वधर्म अपनाने”की ऐसी चिंगारी फूटी कि लाखों लाख आदिवासी,गिरिवासी, ग्रामीण और जागरूकता के अभाव में ईसाई और मुस्लिम बने हमारे अपने लोगो ने हिन्दू धर्म को पुनश्च अपनाया ! आपने तब ये उद्घोष किया था कि-“न हिन्दूः पतितो भवेत्” ।
मैं तब गुजरात में था ! मुझे गर्व है कि बाल्यावस्था से ही-“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ”का सदस्य था ! हिन्दी हिन्दू और हिन्दुस्थान के प्रति मुझमें तभी से प्राणों से अधिक प्यार है ! संघ से एक विचार मैंने आत्मसात किया है ! जीवन में लाखों लोग मुझसे मिले ! मुझे देखते ही वे सम्मान हेतु खडे हो गये किन्तु संघ के किसी भी प्रचारक को देख कर मैं खडा हो जाता हूँ क्योंकि उनमें जो निष्ठा और समर्पण है-“अभूतपूर्व और अविस्मरणीय” है वह ! वहीं गुजरात के पूज्य संत श्री पाण्डुरंग शास्त्री आठवले जी के यहाँ- “स्वाध्याय परिवार” के एक कार्यक्रम में मुझे श्रीमद्भगवद्गीता जी पर सात दिन प्रवचन करना था ! हजारों लोग प्रतिदिन आते थे और एक दिन मुझे पता चला कि आज स्थानीय जिला- “महेसाणा” के जिला प्रचारक जी आयेंगे और वे आये ! मेरे कार्यक्रम के पश्चात उन्होंने मुझे बताया कि -वीसनगर” में आजकल नित्यप्रति हिन्दुओं के घरों में तोड़फोड़ की जा रही है ! चलिए वहाँ ! एकबार अलख जगानी है।
मुझे स्मरण है कि उसी घटना के कारण आदरणीय संत शिरोमणि श्रीमान प्रभुदत्त ब्रम्हचारी जी का आगमन वीसनगर में हुवा था ! जहाँ उनके द्वारा किये गये उद्घोष-“न दैन्यम् न पलायनम्” इस आदर्श वाक्य से जागृत हुवे हिन्दू समाज ने वहां चल रहे दंगों के बीच पहली बार शूरवीरता के साथ पैशाचिक शक्तियों से दो-दो हांथ किये और काफी समय तक वहां दंगे शांत हो गये। इसके पश्चात मेरे जीवन का सर्वाधिक स्वर्णिम पल आया -“सन् 1983 में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित अखिल भारतीय एकात्मता यात्रा” इस कार्यक्रम में आबू रोड से लेकर सोमनाथ तक पूरी यात्रान्तर्गत चार सप्ताह तक नित्यप्रति दस-बीस सभाओं में जाकर हिन्दुओं में एकता जागृत करने का सौभाग्य से जो मुझे अवसर मिला इसके लिये जन्मों जन्म तक इस प्रखर संगठन का मैं ॠणी रहूँगा क्रमशः ..आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

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