इकनॉमिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान इससे उबरने की हर कोशिश कर रहा है । हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने लंदन में कहा है कि पाकिस्तान के बिजनेसमैन चाहते हैं कि भारत के साथ बंद हो चुका व्यापार दोबारा से शुरु किया जाए। इशाक डार के मुताबिक इसे लेकर पाकिस्तान सीरियस है।पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने लंदन जाकर यह बयान ऐसे समय में दिया है जबकि भारत में आम चुनाव शुरू होने वाले हैं। इसलिए चर्चा के लिए तो इस बयान का महत्व हो सकता है लेकिन वास्तविक महत्व तभी होगा जब भारत में नयी सरकार बन जाने के बाद इस पर बातचीत होगी। लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि क्या भारत को फिर से पाकिस्तान से व्यापारिक रिश्ता बहाल करना चाहिए?
अगस्त 2019 में भारत की केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया था । ये भारतीय संविधान का एक प्रावधान था, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। धारा हटाते हुए सेंटर ने तर्क दिया कि इससे यह राज्य पूरे देश से जुड़ सकेगा। ऐसा हुआ भी। इसी बात पर पाकिस्तान परेशान हो उठा, और बौखलाकर भारत से अपने व्यापारिक रिश्ते निरस्त कर दिए।
दूसरी ओर ये बात भी हो रही थी कि ट्रेड सस्पेंशन की बड़ी वजह कुछ और ही थी। असल में उसी साल भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का स्टेटस ले लिया और पाकिस्तानी इंपोर्ट पर टैरिफ 200 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था। भारत ने यह कदम पुलवामा हमले के बाद लिया था, जिसे पाकिस्तानी टैरर गुट जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था। हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। अटैक के चौबीस घंटों के भीतर ही पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन दर्जा हटा दिया गया।
यहां बता दें कि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन का टैरिफ एंड ट्रेड एग्रीमेंट 1994 कहता है कि सारे सदस्य देश एक-दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन दर्जा दें, खासकर पड़ोसी देश ताकि फ्री टेड आसान हो सके। हालांकि ये कोई पक्का नियम नहीं। यही वजह है कि रिश्ते खराब होने पर देश सबसे पहले आपस में यही स्टेटस खत्म करते हैं ताकि नाराजगी का आर्थिक असर भी दिखे।
भारत और पाकिस्तान साल 1996 से ही एक-दूसरे को मोस्ट-फेवर्ड नेशन मानते आए। इसके बाद भी पाकिस्तान ने लंबी लिस्ट बनाई, जिसमें वो आइटम थे, जो भारत से आयात नहीं किए जा सकते। ये उत्पाद एक-दो नहीं, बल्कि 12 सौ भी ज्यादा थे। उसका कहना था कि वो ये बैन अपने घरेलू उद्योगों को चलाए रखने के लिए लगाए हुए है। हालांकि पहले वो 2 हजार से भी ज्यादा उत्पादों को आयात की मंजूरी दे चुका था। निगेटिव-लिस्टिंग के बाद केवल 138 उत्पाद ही रहे, जो वो भारत से आयात कर रहा था।
ध्यान रहे कि पाकिस्तान हमसे कपास, ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक, न्यूक्लियर रिएक्टर, बॉयलर्स, मशीनरी और मैकेनिकल डिवाइस जैसी चीजें इंपोर्ट करता था। हम भी पाकिस्तान से कई चीजें आयात करते रहे, जैसे- फल और सूखे मेवे, नमक, सल्फर, पत्थर, कई तरह की धातुएं और चमड़ा आदि। ट्रेड सस्पेंड करने के बाद भी पाकिस्तान हालांकि दवाएं मंगाता रहा क्योंकि उसके तुरंत बाद ही कोविड 19 का दौर आ गया था। भारत ने तब उसकी खासी मदद की थी। बंद होने के बावजूद भारत-पाकिस्तान के बीच लेनदेन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था । मीडिया की एक रिपोर्ट में सरकारी हवाले से कहा गया है कि थोड़ा-बहुत व्यापार वाघा-अटारी बॉर्डर के रास्ते हो रहा था, साथ ही कराची बंदरगाह के जरिए भी लेनदेन चलता रहा। लेकिन ये पहले से बहुत कम, लगभग नहीं जितना हो चुका था।
पाकिस्तान हमसे सबसे ज्यादा कॉटन लिया करता था। अब वो इसके लिए ब्राजील और अमेरिका पर निर्भर है। लंबे रास्ते से आने वाले इन उत्पादों पर समय के साथ पैसे भी काफी खर्च हो रहे हैं। फिलहाल पाकिस्तान जिस आर्थिक बदहाली से गुजर रहा है, दूरदराज के देशों से आयात उसपर और भारी पड़ रहा है। यही वजह है कि उसके विदेश मंत्री ने ट्रेड की वापस बहाली की बात की। हालांकि ये बात उन्होंने सीधे-सीधे नहीं, बल्कि एक इंटरनेशनल मंच पर की। तो फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता कि आगे क्या होगा। इसके अलावा भारत की मंजूरी भी जरूरी है।
दरअसल भारत के लिए पाकिस्तान किसी अन्य देश जैसा ही नहीं है। पाकिस्तान का जन्म भारत को मजहबी हिंसा में झोंककर और लाखों लोगों की कुर्बानी तथा बर्बादी पर हुआ है। उसके साथ न भारत का रिश्ता कभी सहज रहा है और न रह सकता है। इसका कारण सिर्फ यह भर नहीं है कि पाकिस्तान पहले दिन से कश्मीर पर दावा किये बैठा है और उसे आतंकवाद के जरिए हासिल करना चाहता है। बल्कि जब जब भारत पाकिस्तान की ओर आगे बढेगा, उसके उन घावों से खून रिसने लगेगा जो पाकिस्तान ने अपने जन्म से अब तक भारत को दिए हैं।सर सैय्यद अहमद हों या फिर अल्लामा इकबाल या फिर मोहम्मद अली जिन्ना। किसी न किसी तरह से समय समय इन्होंने यही डर दिखाया था कि अंग्रेजों के जाने के बाद हिन्दू अक्सरियत में मुसलमान दब जाएगा। पाकिस्तान भले ही जिन्ना ने मांगा हो लेकिन अविभाजित पंजाब, सिन्ध से लेकर अविभाजित बंगाल तक मुस्लिमों ने अगर अलग पाकिस्तान का समर्थन किया तो उसके मूल में एक बड़ा कारण हिन्दू बनियों का व्यापार में वर्चस्व होना भी था।
आज भी पाकिस्तान में हिन्दुओं की पहचान हिन्दू बनिया के रूप में की जाती है। उनके लिए व्यंग में एक कहावत वहां बहुत प्रचलित है कि हिन्दू वह बनिया है जिसके मुंह में राम और बगल में छूरी रहती है। इसलिए जब 1947 में भारत को काटकर पाकिस्तान बन रहा था तब वहां के मुस्लिम व्यापारियों ने इसे अपने लिए एक अवसर के रूप में देखा था। फिर वो सिन्ध के कारोबारी रहें हों या पंजाब के कारोबारी। उन्हें लगता था कि जो व्यापारिक संभावना हिन्दू बनिया छोड़कर जा रहा है वो उसे भुना लेंगे और आर्थिक रूप से समृद्ध हो जाएंगे।शुरुआत के दो दशक जब भारत और पाकिस्तान दोनों ही सोशलिस्ट नीति पर चल रहे थे तब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भारत से अच्छी थी। लेकिन बांग्लादेश के अलग होते ही पाकिस्तान ने जो मजहबी रफ्तार पकड़ी तो उसकी अर्थव्यवस्था दिनों दिन बिगड़ती चली गयी। वैसे तो आर्थिक रूप से पाकिस्तान के बर्बाद होने के बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे प्रमुख कारण भारत और हिन्दुओं से नफरत ही बनी रही। पाकिस्तान कभी अमेरिका की गोद में बैठा तो कभी चीन के आगे बिछ गया। लेकिन जब जब हिन्दू बनिया से तिजारत (व्यापार) बढाने की बात आई तब तब वहां के मजहबी मुल्लाओं ने बांग दिया कि क्या पाकिस्तान हिन्दुओं से तिजारत करने और अच्छा रिश्ता रखने के लिए बना था?
मुल्लाओं का तर्क अकाट्य है। यही कारण है कि जैसे जैसे पाकिस्तान सच्चे इस्लाम के रास्ते पर आगे बढता गया वहां के लोगों के मन में भारत को लेकर नफरत बढती गयी। जिया उल हक के जमाने से आज तक तमाम उतार चढाव के बावजूद वहां की आम अवाम ही इस बात के हक में नहीं रहती है कि भारत के साथ तिजारती रिश्ते बढाये जाएं। उनकी इस नफरत के बावजूद अगर पाकिस्तान ने भारत के साथ कुछ व्यापारिक रिश्ते रखे हैं तो उसका कारण अंतरराष्ट्रीय बाध्यता और उनकी अपनी आर्थिक मजबूरियां थीं।
लेकिन इस दौरान भी पाकिस्तान ने भारत में आतंकवाद फैलाने में कभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कश्मीर और पंजाब में ही नहीं मुंबई पर आतंकी हमला जैसा जघन्य कुकर्म पाकिस्तान के हुक्मरानों ने प्लान किया। एक ओर पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार करता रहा दूसरी ओर दो दशक तक देशभर में बम विस्फोट के जरिए हजारों लोगों की जान लेता रहा। इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक पाकिस्तान भारत के हर प्रधानमंत्री के साथ विश्वासघात करता रहा। वहां की फौज, वहां की आईएसआई सिर्फ भारत को लहुलुहान करने को अपनी जीत समझते रहे।मानों पाकिस्तान का होना सिर्फ भारत को परेशान करने और उसे बर्बाद करने के लिए ही है। एक दशक पहले तक टीवी पर बैठकर आईएसआई के चीफ रहे हामिद गुल जैसे हुक्मरान भारत के मुंबई या बंगलौर जैसे शहरों को बर्बाद करने की धमकी देते रहे। परमाणु बम की धमकी तो मानों उनके लिए कंचे गोली खेलने जैसा हो।
इन्हीं परिस्थितियों में 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने आसियान देशों के प्रमुखों को बुलाया था जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल थे। लेकिन जल्द ही मोदी को समझ में आ गया कि अपने खिलाफ पाकिस्तानियों की नफरत को वो किसी व्यापारिक रिश्ते से नहीं ढांक सकते। दिल्ली आकर नवाज शरीफ भी इस्लामाबाद में घिर गये और उनके बाद आये इमरान खान ने तो मोदी को छोटा आदमी बताकर अपनी हेकड़ी दिखा ही दी थी।इतना सब होने के बावजूद भारत ने 1996 में पाकिस्तान को दिया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म नहीं किया। हालांकि एमएफएन में जितनी वस्तुएं शामिल की गयी थीं पाकिस्तान उसकी चौथाई का भी व्यापार बड़ी मुश्किल से कर रहा था। लेकिन 2019 में पुलवामा में सैनिकों के काफिले पर आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को दिया एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया। मोदी तो पहले ही पाकिस्तान से विमुख हो गये थे लेकिन पुलवामा अटैक के बाद मोदी सरकार ने दुनिया में पाकिस्तान को अलग थलग करने की नीति पर काम शुरु कर दिया।
2019 में ही सरकार में दोबारा आने के बाद जब मोदी सरकार ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किया तब पाकिस्तान ने एकतरफा अपनी ओर से न केवल भारत से हाई कमिश्नर वापस बुला लिया बल्कि सभी प्रकार के व्यापारिक रिश्ते भी खत्म कर दिये। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि जब तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस नहीं लागू कर दिया जाता, भारत से कोई तिजारती रिश्ता कायम नहीं होगा।
आज महज पांच साल में ही पाकिस्तान को यह अहसास हो गया है कि हिन्दू बनिया से व्यापारिक रिश्ता रखे बिना उसका संभल पाना मुश्किल है। चीन की कठोर शर्तों के साथ मिले कर्जों से दबा पाकिस्तान अमेरिका के सामने अपनी वैल्यू पहले ही खत्म कर चुका है। इसलिए अब उसे यह बात समझ में आ रही है कि भारत से दोबारा व्यापारिक रिश्ता बेहतर किये बिना वह अपनी बर्बाद हो चुकी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर नहीं ला सकता।
सवाल अब भारत के सामने होगा कि क्या वह पाकिस्तान के साथ व्यापार करके एक और बेलआउट पैकेज देगा? बीते एक दशक से मोदी सरकार ने पाकिस्तान को अलग थलग करने के लिए जो डिप्लोमेटिक कार्य किया है क्या उसे व्यापार की लालच में मिटा दिया जाएगा? सवाल यह भी है जब आर्थिक रूप से कमजोर पाकिस्तान भारत की बर्बादी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा तब आर्थिक रूप से मजबूत पाकिस्तान भारत के लिए कितना हितकर होगा? 2024 में सरकार किसी की भी बने पाकिस्तान से दोबारा व्यापार शुरु करने से पहले इन बातों पर विचार जरूर करना चाहिए।
गौरतलब है कि देश को अरबों डॉलर के कर्ज के लिए अक्सर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) या सऊदी अरब और चीन जैसे मित्र देशों से संपर्क करना पड़ रहा है। भारत के साथ व्यापार बंद होने से दूर देशों से सामान आयात करने में बहुत ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार यूज करना पड़ रहा है, जो पहले से ही काफी कम है। इन वजहों से पाकिस्तान भारत संग व्यापार के लिए छटपटा रहा है। हालांकि, भारत का रुख एकदम साफ है कि जब तक आतंकवाद नहीं रुकेगा, पाकिस्तान संग बातचीत समेत रिश्ते सामान्य नहीं होंगे।
अशोक भाटिया,
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार
लेखक 5 दशक से लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं
पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड से सम्मानित,
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