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क्या कारपोरेट कल्चर में ढल रहे हैं भाजपा के नेता और मंत्री? 

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क्या कारपोरेट कल्चर में ढल रहे हैं भाजपा के नेता और मंत्री?

दिल्ली ब्यूरो, 3 दिसंबर: देशहित और जनहित में अनेकों काम कर रही भाजपा सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता गण क्या कारपोरेट कल्चर में ढल रहे हैं? कार्यकर्ता और आम जनता से दूर हो रहे हैं? दिल्ली से हमारे विशेष प्रतिनिधि ने एक रिपोर्ट भेजी है जो भाजपा संगठन के लिए चिंता का विषय हो सकती है। भाजपा संगठन और विचार परिवार से जुड़े कार्यकर्ता तथा आम जनता अपनी समस्याएं लेकर गुवाहाटी और दिल्ली दौड़ लगाते हैं लेकिन देखने में आ रहा है की नेता, मंत्री और जनता के बीच एक दीवार खड़ी हो गई हैं, जिसका नाम है पीए अथवा पीएस। साधारणतया नेता और मंत्री व्यस्त रहते हैं, सबका फोन उठाना संभव नहीं होता इसलिए और पीए और पीएस रखे जाते हैं ताकि कार्यकर्ता और जनता से दूरी ना हो।

किंतु मात्र कुछ पीए और पीएस ऐसे पाए गए जो अपरिचित फोन भी उठाते हैं तथा अपरिचित लोगों को भी नेता और मंत्री तक मिलाने तथा उनकी समस्या समाधान के लिए सहयोग करते हैं। अधिकतर पीए और पीएस ऐसे हैं जो नेता और मंत्री को जनता और कार्यकर्ताओं से जुड़ने नहीं देते। तरह -२ के बहाने बना कर लोगो को निराश करते हैं। या तो फोन नहीं उठाते या फिर झूठ बोल देते है, मंत्री जी व्यस्त है, मंत्री जी मीटिंग में है, अभी घर से निकल जाएंगे आदि-आदि। सही भी हो सकता है लेकिन एक बार, दो बार, बार-बार तो ऐसा नहीं हो सकता। बहुत सारे लोगों के साथ ऐसे ही होता है। बहुत सारे लोग जिनको बार-बार बहाने बना कर टाल दिया जाता है या फोन नहीं उठाया जाता है मंत्री जी के बंगले पर या कार्यालय पर इस आशा में पहुंच जाते हैं कि शायद उन्हें मिलने के लिए बुला लिया जाए किन्तु जब यहां भी निराशा मिलती है तो आदमी जाएं कहां?

प्रवेश द्वार पर चौकीदार अंदर नहीं जाने देता, पूछता है अपॉइंटमेंट है क्या? जैसे कोई सेना और सुरक्षा बल का अधिकारी रहता है, जनप्रतिनिधि नहीं। कुछ तो ऐसे हैं जिनको आम जनता से मिलने में रुचि भी कम है क्योंकि बिना परिश्रम के, संगठन के बल पर और मोदीजी के नाम पर चुनाव जीत गए हैं। उन्हें लगता है कि अभी तो चुनाव आने में देर है।

यह सही है कि मोदी सरकार का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है, इसलिए नेता और मंत्री मनमाना आचरण करेंगे, ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती हैं बल्कि काम करने का अवसर मिला है तो जनता और कार्यकर्ताओं में विश्वास बढ़ाने वाला काम करना चाहिए। लोग दरवाजे पर खड़े रहते हैं, नेताजी गाड़ी में बैठे और चल दिए, यह कारपोरेट कल्चर है, जहां कोई संवेदना नहीं है। ‌कोई व्यक्ति कितनी दूर से आया है, कितने प्रयास से उनके दरवाजे पर आशा लेकर पहुंचा है, इसका विचार ना करके यंत्रवत आचरण लोकतंत्र के लिए अपेक्षित नहीं है। ‌ लोकतंत्र में लोक के द्वारा चुने गए लोग लोकहित में कार्य करते है। मिलने के लिए आए व्यक्ति से प्रत्यक्ष लाभ होने की स्थिति में भेंट होना आसान होता है। भाजपा संगठन को इस बारे में चिंतन करना चाहिए और नेताओं, मंत्रियों को आम आदमी से मिलने के लिए व्यवस्था बनानी चाहिए।

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