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तपोनिष्‍ठ स्‍वयंसेवक अमीरचंद : जिन्‍होंने पूर्वोत्‍तर भारत की कलासंस्‍कृति से उत्‍तर को कराया परिचित -डॉ. मयंक चतुर्वेदी  

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अरुणाचल प्रदेश के इटानगर से खबर आई कि ‘संस्कार भारती’ के अखिल भारतीय महामंत्री अमीरचंद का निधन हो गया है। समाचार सुनने के बाद से जैसे लगा भारत ने संवेदनशील भारतीय कला, साहित्‍य और दर्शन के लिए समर्प‍ित एक व्‍यक्‍ति नहीं खोया बल्‍कि पूर्व की कलाओं को लेकर उत्‍तर, पश्‍चिम और दक्षिण के बीच त्रिकोणीय सेतु की जो भूमिका निभा रहे थे, ऐसे तपोनिष्‍ठ को सदैव के लिए खो दिया है।
साधयति संस्कार भारति, भारते नवजीवनम्
प्रणवमूलं प्रगतिशीलं प्रखर राष्ट्र विवर्धकम्।
संस्‍कार भारती के ध्‍येयगीत की ये आगे की प्रथम पंक्‍ति है। इस संपूर्ण गीत के अर्थ को देखें तो ”संस्कार भारती” अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार करना चाहती है। जोकि शिवम् सत्यम् सुन्दरम, अभिनवम् संस्करणोद्यमम् आधारित हो। इस व्यवस्था के मूल में सच्चिदानन्द का वास होगा, उन्नतशीलता होगी, तेजी से राष्ट्र का विकास करने वाली यह साधना होगी। सत्य, सुन्दर, कल्याणकारी तथा नये संस्कारों की प्रदाता इस साधना से संस्कार भारती ऐसे मधुर, मनोहारी और हृदय को मंत्र मुग्ध करने वाले संगीत का स्वर चाहती है जो बसुधैक कुटुम्बकम् की भावना का पोषण करता हो।
रसपूर्ण, मनोहर तथा उग्र, ताण्डव नृत्य और माधुर्य, ओज व क्रांति-भाव की आनंददायी कथाओं पर आधारित नाटकों से यह लोक जीवन में संस्कार जगाना चाहती है। और यह चैंसठ कलाओं से समन्वित विश्वचक्र पर गतिमान, कभी नष्ट न होने वाली, वेदों पर आधारित व्यवस्था को ‘संस्कार भारती’ भारत में स्थापित करना चाहती है। इसके साथ ही इस ध्‍येय गीत की अंतिम पंक्‍तियों का जो सार है वह कहता है कि ‘संस्कार भारती’ पुरातन अभिलेखों का संरक्षण-संवर्धन करते हुए सात वर्णों की रचना से प्रत्येक भारतवासी को रस सागर में डुबोकर आनन्द विभोर करना चाहती है। इस प्रकार संस्कार भारती अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार चाहती है।
अमीरचंद जी का जीवन जैसे इस कला के संगठन के लिए ही बना था। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रचारक निकलने के बाद उन्‍होंने जिस तन्‍मयता के साथ भारत माता की सेवा करते हुए अनेक राष्‍ट्र जागरण के कार्यों को सफलता प्रदान की, उसमें उनकी विशेष दक्षता को देखते हुए संघ ने उन्‍हें संस्‍कार भारती में कार्य करने के लिए भेज दिया था । अपने समय का एक ऐसा संगठन जो अभी-अभी अस्‍तित्‍व में आया था और उसे अखिल भारतीय स्‍वरूप में तेजी से स्‍थापित करना अभी शेष था। किंतु अमीर चंदजी जो एक बार इस संगठन में गए तो जैसे उनका पूरा जीवन ही संस्‍कार भारती का हो गया ।
बलिया जिला मुख्यालय के करीब हनुमानगंज में जन्मे अमीरचंद 1981 में संघ के स्वयंसेवक बने। 1985 में आजमगढ़ में संघ के तहसील प्रचारक बने। 1987 में संस्कार भारती में पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र की जिम्मेदारी मिली। वर्ष 1990 में वे राष्‍ट्रीय सह संगठन मंत्री के दायित्‍व पर आए और उसके बाद जो मुख्‍य रूप से उन्‍होंने कार्य की जिम्‍मेदारी मिली वह थी, पूर्वोत्‍तर भारत की विविध भारतीय कला के स्‍वरूप से संपूर्ण भारत को परिचित करना। वे इस कार्य में ऐसे जुटे कि अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में विशेष तौर से असमिया, मिसिंग, बोडो, दिमासा, गारो, नेपाली, कार्बी, खासी, कुकी, मणिपुरी, मिज़ो, नागा, राभा, राजबोंगशी, तिवा, त्रिपुरी, बंगाली, बिष्णुप्रिया, मणिपुरी इत्‍यादि समुदायों की लोक कलाओं को वे सफलता पूर्वक संस्‍कार भारती के माध्‍यम से देश के कोने-कोने में लेकर गए।
इसके लिए उन्‍होंने ”अपना पूर्वोत्तर” कार्यक्रम हाथ में लिया। याद आता है वर्ष 2019 का कुंभ मेला, यहां भी यह संस्कार भारती के माध्‍यम से इस कार्यक्रम को लेकर पहुंचे थे। उस समय 17 जनवरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्‍कालीन सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी जी का आशीर्वचन सभी को मिला था। कार्यक्रम में पूर्वोत्तर के सातों राज्यों – असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम एवं मणिपुर से आए लगभग 400 कलाकारों द्वारा अपनी कला, संस्कृति, लोकगीत एवं लोक संस्कृति से संबंधित विविध प्रस्तुतियां दी गई थीं। वे संपूर्ण देश में ”अपना पूर्वोत्तर” कार्यक्रम सफलता पूर्वक लेकर गए और सभी को भारत के इस हिस्‍से की विभिन्‍न कलाओं की बारीकियों से परिचित कराने में सफल रहे । इसमें भी खासकर भारत की नाट्य परम्‍परा को लेकर उन्‍होंने जो कार्य किया है, वह बहुत ही अद्वितीय है।
यहां उनका एक अद्भुत प्रयोग यह भी रहा कि उन्‍होंने विविध कला माध्‍यमों से एक कार्य ”हमारी संस्कृति हमारी पहचान” पूर्वोत्‍तर भारत के राज्‍यों में आरंभ किया, जिससे देखते ही देखते बच्‍चों से लेकर बुजुर्ग तक जुड़ते चले गए। उनमें फिर तमाम लोग ऐसे भी थे, जो यह खुलकर कहने लगे थे कि हमने अपना पंथ, धर्म बदला है, संस्‍कृति नहीं। संस्‍कृति से हम आदि-अनादि सनातनी हैं। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत में धर्मांतरण के खिलाफ सफल अभियान चलाया। बड़ी संख्या में धर्मांतरण कर चुके हिंदुओं की घर वापसी सतातन धर्म के अंगीभूत कला संस्‍कारों के अर्थों को उन्‍हीं की प्रेरणा से जानने के कारण संभव हुई । अमीरचंद जी के द्वारा आदिवासी बहुल इलाकों में जो सेवा भाव का उदाहरण प्रस्‍तुत किया गया, उससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संस्‍कार भारती की अपनी अलग श्रेष्‍ठ सेवा पथ की पहचान पूर्वोत्‍तर के एक बड़े हिस्‍से में सफलता से बनी ।
एक बार एक पत्रकार ने उनसे पूछा-संस्कार भारती, आरएसएस का सांस्कृतिक एजेंडा क्या है? इसका जो उन्‍होंने जवाब दिया है, वह उनके संपूर्ण संगठन जीवन का सार कहा जा सकता है, वे कहते हैं कि संस्कार भारती का मानना है कि कला ही जीवन है। सौ साल पहले इसे ट्विस्ट करके कह दिया गया कि कला कला के लिए है। इससे हमारी मतभिन्नता है, भारत की मिट्टी से उपजी प्रदर्शनकारी और चाक्षुष कलाओं में यह दर्शन छिपा है कि हमारी कृतियों से आम जन को आनंद मिले, न कि वे आहत हों । यहां तो किसान, मजदूर भी थकने के बाद रात को गाकर, नाचकर हल्के हो जाते हैं । कलाविहीन व्यक्ति, समाज, सभ्यता क्रूर होगी ही । आज जिन संस्कृतियों में कला पर पाबंदी है, वहीं समस्या बढ़ रही है।
वे कहा करते थे कि सा कला या विमुक्तये अर्थात् “कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है” उत्कृष्ट कला-संस्कृति किसी भी राष्ट्र की वास्तविक शक्ति और समृद्धि का परिचायक होती हैं। मानव जीवन में कला और संस्कृति का वही स्थान है जैसा फूलों में सुगंध का अथवा संगीत में राग-रागिनी का होता है। हम भाग्यशाली हैं कि हमने भारत जैसे देश में जन्म लिया है, जहां की कला-संस्कृति समूचे विश्व को आकृष्ट करती रही है। भारत में कला को पवित्र माना जाता है तथा कलाकार अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। हमें ध्‍यान रखना चाहिए कि कला और संस्कृति के बगैर राष्ट्र और मानव का सार्वभौम विकास संभव नहीं है। इसीलिए ही भारतीय कला-संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को अक्षुण्ण रखने के लिए एक ऐसी संस्था की आवश्यकता महसूस हुई जो अखिल भारतीय स्तर पर कार्य करे। और इस तरह सन् 1981 में ‘संस्कार भारती‘ का आविर्भाव हुआ। वे वर्ष 2018 में संस्‍कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री बने । वर्तमान में उनका केंद्र दिल्ली था। जहां से पूर्वोत्तर भारत के भ्रमण पर अभी गए हुए थे।
उनके यूं अकस्‍मात चले जाने पर संपूर्ण राष्‍ट्रवादियों के बीच शोक की लहर है। मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी भावसंवेदनाएं व्‍यक्‍त करते हुए कह रहे हैं कि संस्कार भारती के महामंत्री, आदरणीय अमीरचंद जी के असमय गोलोकगमन के समाचार से स्तब्ध हूं। वे भारतीय कला और संस्कृति के उत्थान के लिए सम्पूर्ण जीवन होम कर देने वाले असाधारण साधक थे। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान और परिजनों को संबल दें। ॐ शांति! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संवेदना व्‍यक्‍त करते हुए कहते हैं कि ‘संस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री अमीरचन्द जी का निधन दुखद है। लोक जीवन में राष्ट्रीय मूल्यों के बीजारोपण हेतु वे आजीवन समर्पित रहे। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल विचार परिवार को दुख सहने की शक्ति दे।
इसी प्रकार से उन्‍हें याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश कहते हैं कि खूब हंसी मजाक करेंगे बशर्ते भोजन के लिए निमंत्रण देना होगा, भोपाल में मेरे निवास पर भोजन के पश्चात गाड़ी में बैठते हुए अंतिम वाक्य ताउम्र याद रहेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि आदरणीय अमीर चंद जी को। कहना होगा कि ऐसे संघ के वरिष्ठ प्रचारक अमीरचन्द जी के निधन से शोक की लहर कला जगत, राजनीतिक एवं विद्या क्षेत्र सहित सर्वत्र व्‍याप्‍त है।
(लेखक फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य एवं पत्रकार हैं । )
हिन्‍दुस्‍थान समाचार

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