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ना शिकवा ना शिकायत

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क्या है आज ये सब कुछ,
      कुछ नया है कुछ बदला सा,
कुबूल है दिया हर तोहफा तेरा,
     तू दे दे मुझे जो है तेरी मनसा।
हमने देखा है जिंदगी का हर बदला स्वरूप,
    हर पल बदलते देखा है लम्हा कुछ,
बदल गया है मानो सारा जहां,
   हर पल कुछ बदला अनोखा।
अब लगता नहीं भय किसी का,
    दे दे वक्त मनचाही तेरी सितम अपनी,
एक तरफ डूबा रही जल मग्न कर,
     पड़ा दूसरी तरफ उड़ा रही मरुओ का ढेर,
हो गए दर बदर हो,
    लाखों हुए घर बार,,
यू सब देख पड़े खुशियों के बीच भी,
    छोड़ दिया कुछ मुस्कुराना हमने,
जो समझना ना चाहे,
छोड़ दिया समझाना हमने।
बिता देंगे कुछ ऐसी जिंदगी अपनी,
     ना सुने दूसरे की शिकायत,
 ना शिकवा करें अपनी,
    चाहते हैं कुछ लोग,
सिर झुका दे हम अपनी,
    लेकिन चाहतों की उड़ाने,
ना दे सिर झुका हमारी,
    ना शिकवा किसी से न शिकायत किसी से।।
                डोली शाह
               सुल्तानी, हाइलाकांदी

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