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पत्र पाठकों के

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संपादक महोदया,
प्रेरणा भारती में प्रकाशित लेख, भाजपा क्यों कर रही है हिन्दीभाषियों की उपेक्षा ? यह लेख विचारणीय है। इस पर मैं अपना कुछ व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत करते हुए यह कहना चाहती हूँ कि यह सत्य है कि भाजपा सरकार बराकघाटी में हिन्दीभाषियों की उपेक्षा कहीं न कहीं तो कर रही है। यह भी सही है कि उधारबंद, राताबाड़ी, पाथारकांदी की विधानसभा की सीट हिन्दीभाषियों से छीन ली गई। चुनाव में जो दो-चार हिन्दीभाषी नेता विधानसभा जाते थे। अब वह भी नहीं रहेंगे। अर्थात असम विधानसभा हिन्दीभाषी शून्य रहेगी। हमारी समस्याओं पर आवाज उठाने वाला कोई नहीं होगा। इसीप्रकार धीरे धीरे प्रदेश से हिन्दी को भी समाप्त कर देने की कोशिश की जा रही है। वह दिन दूर नहीं जब हिन्दीभाषी समाज डर-डर कर जीवन जीयेगा।
यह भी सत्य है कि बराकघाटी में चाय बागानों को बढ़ाने के स्थान पर उन्हें नष्ट किया जा रहा है। इतने विशाल, सुंदर, हरे-भरे डलु चाय बागान को नष्ट कर दिया गया। वहाँ के मजदूरों की रोजी-रोटी छीन ली गयी। आज उनका भविष्य अंधकारमय है। इसे सरकार की तानाशाही नहीं कहेंगे तो और क्या कहा जा सकता है? इसी प्रकार घुंघुर बाइपास में शहीद मंगल पाण्डेय की मूर्ति स्थापना के लिए दो साल से हिन्दीभाषी समाज अनुमति मांग रहा है पर प्रशासन अनुमति नहीं दे रही है, इसका क्षोभ सभी के मन में है। यह चरम स्तर का भेदभाव है। पूरे शिलचर शहर में कितनी मूर्तियों की स्थापना की गई है, कहीं भी कोई विरोध नहीं पर मंगल पाण्डेय की मूर्ति के लिए विरोध क्यों है? क्या मंगल पाण्डे केवल हिन्दीभाषियों के हैं? वे पूरे देश के हैं। उनके बलिदान को प्रशासन कैसे भूल सकता है? यह तो एक वर्ग के प्रति अन्याय है। इसके लिए हम सबको एकजूट होकर आवाज उठाने की जरुरत है। इसके अलावा भी अनेक समस्याओं की बात लेख में उठाई गयी
है, जिसके लिए हमारे बुद्धिजीवी समाज को चिंतन-मनन कर सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक रूप से मजबूत बन
अपने अधिकारों को पूरा कराना होगा।
● डॉ. रीता सिंह, शिलचर

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