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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (श्री गुरुजी) की पुण्यतिथि पर विशेष

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| राष्ट्राय स्वाहा। राष्ट्राय इदं न मम ।
शशिकांत चौथाईवाले
 दिनांक 5 जून सन 1973 की याद आज भी ताजी है। आसाम प्रांत का संघ शिक्षा वर्ग गुवाहाटी के आर्य विद्यापीठ महाविद्यालय में चल रहा था। रात दस बजे संघ के तत्कालीन सह सर कार्यवाह मा. माधवराव मुले प्रचारकोंकी बैठक ले रहे थे। बैठक के बीच में ही वज्राघाती समाचार मिला कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूजनीय श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) स्वर्गवासी हुए है। सभी कार्यकर्ता किंकर्तव्यमूढ हुए।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिष्ठाता परम पूजनीय डाक्टर हेडगेवार की मृत्यु के पश्चात् सन 1940 से सतत 33 साल तक सरसंघचालक पद का दायित्व ले कर पू.श्री गुरुजीने संघ को विशाल वट वृक्ष में विकसित किया।सन 1948 में महात्मा गांधीजी की हत्या का झूटा आरोप संघ पर लगा कर सरकार ने संघ को प्रतिबंधित किया था।
संघ को समूल समाप्त करूंगा ऐसा प्रधान मंत्री पं
नेहरूजी ने कह कर पू. श्री गुरुजी समेत 80 हजार
स्वयंसेवकोंको कारावास में भेजा। संघ स्वयंसेवकोंने
शांति पूर्ण अहिंसक सत्याग्रह किया। जिससे स्वयं
नेहरूजी प्रतिबंध हटाने को बाध्य हुए।सर्वोच्च न्यायालय ने भी गांधाजी की हत्या से संघ का बिंदुमात्र संबंध नहींयह स्पष्ट कहा। किंतु आज भी संघ विरोधी उसी का जप करते हैं। प्रतिबंध के कारण संघ का काम 10 साल पीछे गया ऐसा पू. श्री गुरुजी ने भी कहा था। अतः सन1949 में प्रतिबंध हटते ही पू. श्री गुरुजी का सतत प्रवास प्रारंभ हुआ। प्रतिबंध में अनेक कार्यकर्ताओं के घर उजड गये थे। गांधी हत्या के बाद गुंडों के आक्रमण से तथा जेल में बंदी कई स्वयंसेकोंकी मृत्यु हुई थी।अनेकों की सरकारी नौकरी समाप्त हुई थी। ऐसे सभी परिवारों में जा कर उनका सान्त्वन करना भी जरूरी था। संघ बंदी के बाद कुछ लोग निष्क्रीय हुए थे। उनको भी उत्साह तथा प्रेरणा देना आवश्यक था। प्रवास में बौद्धिक, बैठकें तथा वार्तालाप के द्वारा स्वयंसेवकों का मनोबल और उत्साह बढ़ने लगा, साथ ही काम भी बढ़ने लगा। पू.श्री गुरुजी प्रति वर्ष कम से कम दो बार प्रत्येक प्रांत में जाते रहे। संघ का काम बढ़ने के साथ ही उनकी प्रेरणा से स्वयंसेवकों ने समाज के विभिन्न अंगों में विविध
 संघटन (जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, कल्याण आश्रम, शिशु मंदिर, विश्व हिंदु परिषद आदि) शुरु हुए। ये सारे संघटन अपने अपने क्षेत्र में आज बड़े संघटन इस प्रकार पू.श्री गुरुजी के सतत परिश्रम से संघ फिरसे
फलने फुलने लगा। किंतु उनके स्वास्य पर धीरे धीरे परिणाम दीखने लगा। सन 1970 के जोरहाट संघ शिक्षा वर्ग में पू श्री गुरुजी आये थे। तीन दिन के वास्तव्य में उनके मुख पर पहले जैसीही हंसी, स्फूर्ती सभी ने देखी। वे जाने के पश्चात् जुलाई मास में अकस्मात समाचार मिला कि पू श्री गुरुजी मुंबई के अस्पताल में हैं तथा उनका Cancer का Operation हुआ है। एक डेढ़ साल पूर्व ही इसका पता चला था, किंतु संघ शिक्षा वर्ग तक निर्धारित प्रवास समाप्त कर ही शस्त्रक्रिया होगी ऐसा उन्होंने कहा और वह प्रवास पूरा किया। अस्पताल से छुटी होने पर डाक्टर की सलाह से कुछ दिन विश्राम लेकर फिर से गुरुजी भ्रमण पर निकले। संघ के एक अधिकारी के अनुसार उनकी शस्त्रक्रिया करने वाले डाक्टर देसाई को पू. श्री गुरुजी ने पूछा, “मैं ओर कितने साल तक काम कर सकूगा?” डाक्टर ने हंस कर कहा कि यह बताना ठीक नहीं, किंतु आप आध्यात्मिक प्रकृति के व्यक्ति है, इसीलिये आपको बताता हूं कि आप और तीन साल काम कर सकेंगे। श्री गुरुजी ने डाक्टर को कहा कि आपका कहना बराबर है। किंतु तीन सालों में मुझे बहुत काम करने है।
 और वे पूर्व के समान काम करने लगे। सन 71,72 के संघ शिक्षा वर्ग के साथ हर एक प्रांत में एक या दो स्थानों पर उनके कार्यक्रम संपन्न हुए। 1973 के जनवरी माह में गुवाहाटी के गौशाला में स्वयंसेवकों को मार्गदर्शन करते समय बोलने में उनको होने वाले कष्ट देख कर सभी चिंतित हुए थे। मार्च के पहले सप्ताह में कर्नाटक प्रांत मे उनका अंतिम प्रवास रहा। 1973 सन के मार्च मास में नागपुर में संपन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के सन्मुख पू. श्री गुरुजी ने अंतिम भाषण दिया। प्रतिनिधियोंको संबोधित करते हुए मिलजुल कर काम करने से विजय ही विजय है ऐसा उन्होंने कहा। अप्रैल में उन्हों ने नागपुर के निकट रामटेक का अपना पैतृक घर उत्कर्ष मंडल को दान किया, जहाँ आज संघ का कार्यालय है।उस साल के संघ शिक्षा वर्गों में जाने की पू. श्री गुरुजी की प्रबल इच्छा थी। उनके स्वास्थ्य को देखते हुए तत्कालीन सरकार्यवाह मा. बालासाहेब देवरसजी ने उनको न जाने के लिए राजी किया। किंतु नागपुर में तृतीय वर्ष के शिक्षार्थी प्रतिदिन प्रांत के अनुसार संघ कार्यालय में आकर पू. सरसंघचालकजी से मिलते थे। सभी अपना परिचय देकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। इस प्रकार आये हुए शिक्षार्थी भी पू. श्री गुरुजी से मिल कर आनंदित हुए।
 दि. 5 जून की रात
दि. 5 जून को प्रातः नागपुर के संघ कार्यालय में पू. श्री
गुरुजी ने निकटवर्ती कार्यकर्ताओंको कहा कि आज घंटी बज रही है। डाक्टरों को भी Oxygen हटा देने का आग्रह करते रहे। संन्यास की दीक्षा लेने के बाद पू. श्री गुरुजी के पास एक कमंडल था। ऐसा सुना था कि वे अपने कमरे में सदैव उसे अपनी दाहिनी ओर रखते थे। किंतु प्रवास को निकलते समय उसे बांयी ओर रख कर जाते थे। उस दिन सुबह से ही कमंडल बांयी ओर रखा था।
मार्च मास से पू. श्री गुरुजी को सायम् शाखा में जा कर
प्रार्थना करना संभव नहीं था। उनके कमरे के निकट के कक्ष में ही प्रार्थना की व्यवस्था की थी। दि. 5 को प्रार्थना में जाने के लिए खड़े रहना संभव नहीं यह देख कर डाक्टरों की सलाह से कुर्सी पर बैठ कर उन्होंने प्रार्थना बोली। “भारत माता की जय” ये उन के मुख से निकले अंतिम शब्द थे। इसके पश्चात् अपने नेत्र बंद कर वे कुर्सी पर बैठे रहे। शाम को संध्या वंदन करने के पूर्व प. पू श्री गुरुजी दो कार्यकर्ता (बाबुराव चौथाईवाले और विष्णुपंत मुठाळ) की सहायता से हाथ पैर धोने गए। वापस लौटते समय सहायक के कंधे पर उन्होंने अपना सिर रख दिया। कुछ समय कुर्सी पर शांत बैठे रहे रहे। धीरे धीरे श्वास धीमी होती रही। रात 9 बज कर 5 मिनिट में पू. श्री गुरुजी का पार्थिव शरीर पंचत्व में विलीन हुआ।
पू. श्री गुरुजी ने “राष्ट्राय स्वाहा, राष्ट्राय इदं न मम” यह
मंत्र अपने जीवन में चरितार्थ किया। एक बार किसी विशेष प्रसंग पर हिंदी मासिक धर्मयुग ने देश के प्रमुख नेताओं से स्वयं के जीवन के उद्देश्य पर लिखने का अनुरोध किया। संपादक महोदय के आग्रह पर पू श्री गुरुजी ने लिखा “मैं नहीं तूं ही”। मृत्यु के दो मास पूर्व पू श्री गुरुजी ने तीन पत्र लिखकर नागपुर के कार्यालय प्रमुख को दिए और पत्रों को उनकी मृत्यु के बाद खोलने की सूचना दी थी। गुरुजी का देहावसान होने के पश्चात् श्रद्धांजली के कार्यक्रम में सभी की उपस्थिति में पत्रों को पढ़ कर सुनाया। प्रथम पत्र में मा, बालासाहेब देवरसजी पर सरसंघचाक का दायित्व अर्पण करने की घोषणा थी। दूसरे पत्र में स्वयंसेवकों को विदाई संबोधन किया था। तीसरे पत्र में लिखा था “अपना काम राष्ट्र पूजक तथा ध्येय पूजक है। उसमें व्यक्ति पूजा को स्थान नहीं। अतः मेरा स्मारक बनाना आवश्यक नहीं। ब्रह्मकपाल में मैंने अपना श्राद्ध किया है, अतः उसको भी फिर से करना नहीं”।
प. पू.श्री गुरुजी की इच्छानुसार आज तक उनका स्मारक बना नहीं। सबल, संघटित और जागरुक हिंदु समाज यही उनका सर्वश्रेष्ठ स्मारक होगा।
फोन 7002376830
विशेष- लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।

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