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संपादक के नाम पत्र

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माननीय कोर्ट ने एक ऐसी नजीर पेश कर दी है के कोई भी जिद्दी भीड़ देश के चुने हुए लॉ-मेकरों के बनाये कानूनों पर स्टे लगवा सकेगी।

एक बुद्धिजीवी की इस विषय पर ये टिप्पणी बिल्कुल सही है के किसान आंदोलन के परिपेक्ष्य में कोर्ट के आज के फैसले से लोकतंत्र की नई परिभाषा ये हो जाएगी कि

“लोकतंत्र, कोर्ट का कोर्ट के लिए ,कोर्ट द्वारा दिया आदेश है”

मैं इससे आगे जा कर ये कहना चाहता हूँ के:-

लोकतंत्र,कोर्ट का जिद्दी भीड़ के पक्ष में कोर्ट द्वारा दिया आदेश है।जिस आदेश को वो भीड़ भी माने या न माने ये उस भीड़ की मर्जी पर निर्भर होगा!

इस आदेश से माननीय कोर्ट ने कौन सी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी है जिसका ताना वो चुनी हुई सरकार को मारती दिख रही है?

क्या किसान(?) घर जाने को तैयार हो गए,क्या किसानों(?) की भीड़ ने कोर्ट के बनाई कमिटी को पंच मान लिया?क्या किसान(?) आंदोलन से बूढ़े,बच्चे और औरतों को वापस भेजने को तैयार हो गए?क्या किसान आंदोलन ने सोशल डिस्टेंशिंग और मास्क पहन कर किसी मैदान में बैठने की बात मान ली?

कुल मिला कर माननीयों ने आने वाले समय के लिए एक गलत उदाहरण पेश कर दिया है।जिसका खामियाजा देश के लोकतंत्र को चिरकाल तक भुगतना पड़ेगा।बाकी माननीय की मान्यता को नमस्कार तो है ही…

#किसानआंदोलन

-संवेद अनु

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