एक जमाना था कि बेटियों की जगह बेटा ही सब लोगों को चाहिए ताकि खानदान का वारिस बना सके। खानदान भले ही कर्ज में डुबा हो अथवा झोंपड़ी में गुजारा कर रहा हो लेकिन परंपरागत हार्दिक इच्छा पुत्र की ही होती थी। बनवारी लाल आनंदी देवी के घर पांचवीं बेटी होने पर आनंदी देवी के पिताजी झुगली टोपी लेकर आये तो बेटी जंवाई को समझाया कि अपने जीवन में इतना बोझ मत उठाओ ईश्वर की इच्छा मानकर अब ओपरेशन करवा लो। जंवाई बोला बाबूजी जब तक पांचों बहनों के पांच भाई नहीं होंगे तब तक हम ओपरेशन नहीं करवायेंगे। ससुर संपतलाल बोले कि कंवर जी छोटी सी परचुन की दुकान से कैसे करोगे इतनी बेटियों की शादी?? बनवारी लाल बोला इस बार आपके आशीर्वाद एवं पितरों की कृपा से आपको खुश खबरी भेजेंगे। आप हमारे बेटे के लिए मूर्तडोरा बनवा कर तैयार रखना। संपतलाल अनुभवी एवं वृद्ध व्यक्ति थे तो शर्त रखी कि पच्चीस हजार रुपये आपको अगली बेटी के नाम बैंक में जमा कराना पङेगा। हालांकि आनंदी कम उम्र की थी लेकिन बनवारी पंद्रह सोलह साल बङा था लेकिन कमाऊ धार्मिक एवं समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सातवीं बेटी के जन्म के साथ ही छोटे भाई धनसुख उर्मिला को तीसरा बेटा हुआ तो वरिष्ठ लोगों ने तय किया कि धनसुख उर्मिला के बेटे को गोद लिया जाये। घर की बात थी इसलिए नवरात्रि पर शुभ मुहूर्त निकाला गया। क्योंकि दूर रहने वाले भी आ सके। बनवारी आनंदी बेटे को गोद लेने की तैयारी की नियत तिथि पर आलीशान पार्टी की गई सभी रिश्तेदार इक्कठे हुए । भागदौड़ के कारण आनंदी काफी बिमार हो गई।आनंदी को नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया गया क्योंकि उसके पेट में आठ महीने का गर्भ था। अस्पताल में धनसुख उर्मिला अपने बेटे को लेकर भाभी को सौंप दिया तो आनंदी ने सीर पर हाथ फेरकर मुसकाई लेकिन तुरंत नर्स को बुलाया तो डाक्टर ने आपरेशन किया व बाहर आकर बताया कि माँ को हम नहीं बचा पाए लेकिन लालाजी आपको बेटा हुआ है।
हमारा ऐप डाउनलोड करें
- Admin
- December 11, 2023
- 8:05 pm
- No Comments
सातवीं बेटी ( लघुकथा) — मदन सुमित्रा सिंघल
Share this post: