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हिन्दी साहित्य के एक युग का अंत !

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हिन्दी साहित्याकाश में अपनी लेखनी की स्वर्णिम आभा बिखेरने वाले लब्धप्रतिष्ठित हिन्दी साहित्यकार तथा हिन्दुस्तान पेपर कॉरपोरेशन/काछाड़ पेपर मिल ,पंचग्राम(आसाम) के भूतपूर्व राजभाषा अधिकारी ,नराकास शिलचर के भूतपूर्व सचिव डॉ प्रमथ नाथ मिश्रा का बिगत दिनांक ०८-०१-२०२१(शुक्रवार) दोपहर १२.४५ बजे बनारस (उत्तर प्रदेश) में देहांत हो गया। आप पिछले एक महीने से बीमार चल रहे थे।प्रथमत: कोविद -१९ की आशंकाओं के बीच आपका इलाज चल रहा था परन्तु अन्तत: लीवर सिरोसिस के कारण ही आपका अचानक परलोक गमन हो गया ।आप अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी व तीन सुपुत्र ही नहीं अपितु लाखों पाठक एवं कुशल श्रोताओं को इस प्रकार छोड़ गए कि आज हर कोई इसे सहज स्वीकार करने को विवश हो रहा है कि :- साहित्य के एक युग का आज अन्त हो गया ,
लेखनी भी सो गई,कागज भी रो गया ।
न जाने किस फिजा में खो गई आपकी वो दिलकश आवाज ,
वेवक्त मौत की आगोश में हरदिल अज़ीज़ शायर शादाब सो गया।।
डॉ प्रमथ नाथ मिश्रा का जन्म कृष्ण प्रतिपदा शुक्र मार्गशीर्ष संवत् २०१७ वि.(०४ -११-१९६०ई.)को उत्तर प्रदेश राज्य के जौनपुर जिलांतर्गत रामपुर नद्दी ग्राम में हुआ । एक सहज -सात्त्विक, समाजसेवी, प्रज्ञावान एवं प्रकृति-प्रेमी व्यक्तित्व डॉ सुरेन्द्र नाथ मिश्रा के इस विद्वान सुपत्र ने न केवल हिन्दी एवं संस्कृत से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा ही ग्रहण किया अपितु हिन्दी साहित्य में पी एच डी भी हासिल किया। आप उन दिनों बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हुआ करते थे, जब आपको देश के शीर्षस्थ हिन्दी साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।तब से लेकर जीवन पर्यन्त अपनी साहित्यानुभूति के आधार पर आप हिन्दी साहित्य की हरेक विधा में अपनी लेखनी की स्वर्णिम आभा बिखेरते रहे, जो प्रशंसनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी है। संयोगवश आपकी आखिरी साहित्यिक कृति साहित्यानुभूति ही रही। आपके व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व का दर्पण स्मारिका तैयार ही की जा रही थी कि आप ही नहीं रहे । मुझे आशा है कि आप की यह इच्छा जल्द ही पूरी होगी । सर्वप्रथम आपने अपना काव्य पाठ का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्र वाराणसी से १९८०में शुरू किया और तब से लगातार प्रकाशन-प्रसारण का सिलसिला ही चल पड़ा। वर्ष १९८४ ई . से आकाशवाणी केन्द्र एवं दूरदर्शन केन्द्र रॉऺची तथा शिलचर से शताधिक रचनाओं का प्रसारण होता रहा।
विविध पत्रिकाओं में २०० से अधिक साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशन ही नहीं हुआ अपितु इनकी सुप्रसिद्ध रचना “राजभाषा कार्यालय सहायिका” असम विश्वविद्यालय शिलचर के स्नातक (हिन्दी) पाठ्यक्रम में शामिल भी हुई। आपने अपने उपनाम “शादाब जौनपुरी “के मुत्तलिक एक से बढ़कर एक शादाब ग़ज़लों का गुलदस्ता पेश करते रहे, जिसे उर्दू ही नहीं अपितु हिन्दी साहित्य जगत में भी अच्छी खासी लोकप्रियता मिलती रही। कोई भी काव्य मंच हो या मुशायरा, आप उन महफिलों की शान माने जाते थे, जिसमें सिरकत करने वाले कुशल श्रोताओं की एक ही आवाज हुआ करती थी कि:-++
“जाम पी कर भी मेरी तश़्नगी(प्यास) रह गई ।
सच बता शाकिया !
क्या कमी रह गई ‍। । ”
आपकी दिलकश आवाज और तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ने का हसीन अंदाज कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे । आपकी अमूल्य साहित्यिक कृति: – राजभाषा कार्यालय सहायिका ( १९७७), काव्य सुमन(१९८०), शादाब की ग़ज़लें (१९८८), स्वाति बूंद (लघु कथा संकलन-१९९१), उत्तिष्ठ विश्रान्त (२००४), साहित्यानुभूति (२००८) युगों -युगों तक आपकी साहित्य सेवा का प्रमाण प्रस्तुत करती रहेंगी तथा एक कुशल मार्गदर्शन भी क्योंकि :–
“दुनियॉऺ से चले जाते हैं , पर मरते नहीं शायर ।
दिलों में आकर कहीं और गुजरते नहीं शायर ।।
फूलों से महकते हैं, तितलियों से चहकते हैं ।
खुशबुओं की तरह हर रोज बिखरते हैं शायर।।”
वैसे भी आपने पुस्तकों का लेखन ही नहीं अपितु अनेक पुस्तकों की भूमिका -लेखन का कार्य भी किया। इसके अलावा समर्चना (१९८५-९०), साहित्यिक पत्रिका,रॉऺची स्मारिका १९८५),कागज सन्देश १९९२-९६), पूर्वांजलि १९९२-२०००), हिन्दुस्तान पेपर निगम की गृहपत्रिका सन्देश (१९९६ से), दर्पण (२००४-२००७) इत्यादि का कुशल संपादन भी करते रहे।
आप सदृश साहित्यसेवी का परलोक गमन हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति मानी जाएगी।आज आपके कुशल पाठक की आंखें नम तथा रसिक श्रोताओं के दिल में गम सहसा उमर आया है,जो आपके प्रति उनके अपार स्नेह का परिचायक है । साहित्य जगत आप सदृश साहित्यसेवी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता है तथा आपकी आत्मा को शान्ति एवं शोक संतप्त परिजनों को सम्बल प्रदान करने हेतु प्रार्थना भी । अन्तत: कविवर” गोपाल दास नीरज “की इन पंक्तियों को आत्मसात करने के सिवाय और कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है कि:-+
” कफ़न जब हटा तो आंख तू क्यों डबडबा गई,
श्रृंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गई ।
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सी बात है,
किसी की आंख खुल गई किसी को नींद आ गई ।।
अजय कुमार सिंह ( एक साहित्यानुरागी )
हिन्दुस्तान पेपर कॉरपोरेशन/कछाड़ पेपर मिल, पंचग्राम (आसाम)

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