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आध्यात्म आदर्श के सच्चे प्रतीक : भगवान शिव 

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शिव जी हिन्दू देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं और उन्हें ब्रह्मा और विष्णु के साथ हिंदू धर्म की पवित्र त्रिमूर्ति (त्रिमूर्ति) का सदस्य माना जाता है। इन्हें देवों के देव ” महादेव ” या  ” देवाधिदेव ” भी कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि ब्रम्हा, विष्णु के अलावा सभी देवतागण उन्हें आपने आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।
          संसार में तीन ईश्वर मुख्यतः माने गये है – ब्रह्मा ,विष्णु,और महेश अर्थात शिव-शंकर । ब्रह्मा जी सृष्टी की उत्पत्ती करते है, विष्णु जी पालन करते हैं और शिव संहार करते है।अपनी कईं लिलाओं मेंशंकर जी ने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए है जिसके कारण हम उन्हें आध्यात्मिक आदर्श के प्रतीक मान सकते हैं ।कोप में त्रिशूल द्वारा गणेश जी का सर धड से अलग कर देना और फिर दया करके न सिर्फ गज का सिर लगा कर गणेश जी को पुनर्जीवन देना, और देवताओं मे उन्हें प्रथम पूज्य का स्थान प्रदान करना उनके भोलेनाथ नाम को चरितार्थ करता हैं । यह उनकी उदारता का एक अनोठा मिशाल है।
        भगिरथ की तपस्या के कारण सागर पुत्रों और भगिरथ के पूर्वजों के उद्धार के लिए जब माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित होने के पहले जब शिवजी की जटाओं में जाना चाहती है ताकि उनके अत्याधिक आवेश अर्थात तेज धार को कम किया जा सके। शिवजी माँ गंगा के इस आग्रह को स्वीकार करके अपने जनहितेषी स्वरुप को बताते हैं । इसी कारण उनका नाम – ” गंगाधर ” पड़ा । अपने आधे शरीर में माता पार्वती को स्थान देकर वे महिला सशक्तिकरण को भी दर्शाते है । इसी कारण शिव का नाम हुआ- “अर्द्धनारिश्वर ” । वे यह भी बताते हैं कि महिला के बिना पुरुष अपूर्ण हैं और दोनों का समान महत्व हैं ।
           जब माता गौरी श्रीराम की परीक्षा लेने सीताजी का वेष बना कर जा रही होती है तब शिवजी उन्हें इस कार्य के लिए मना करते हैं , पर हठ पूर्वक जब माता गौरी यह कार्य करती हैं तो शिवजी उन्हें त्याग देते हैं। इसी प्रकार दक्ष प्रजापति की पुत्री सति शिवजी की इच्छा के बगैर यज्ञ मे जाती है और जब वहाँ शिवजी का अपमान होता देखती हैं तो आत्मदाह कर लेती है ।ये दोनों लिलाऐं यह बताती हैं कि शिव भविष्य की होने वाली अनहोनी को भली-भाती जानते हैं । साथ ही साथ वे यह भी उदारण प्रस्तुत करते हैं कि हर पत्नी को हर कार्य अपने पति को विश्वास में लेकर करने से ही परिवार का भला होता हैं ।
          समुद्र मंथन के हलाहल विष को पीकर वे सृष्टि के सबसे बडे शुभचिंतक प्रतीत होते हैं ।इसी कारण उनका ” नीलकण्ठ”  नाम हुआ । कामदेव को भस्म करके वे यह दर्शाते हैं कि वे गृहस्थी हैं पर कामी नहीं। सिर्फ खाल को ओढना और कैलाश पर निवास करना और दिगम्बर(अर्थात् दिशाऐं हैं जिनके अम्बर या वस्त्र)नाम धारण करना उनके त्यागी होने को दर्शाता हैं ।
      दक्ष प्रजापति का वध करके वे बताते हैं कि अपमान का समुचित प्रत्योत्तर देना चाहिए और पुनः जब उसे बकरे का सिर लगाते है और वह ‘बे’ की ध्वनि निकाल कर अपने पापों के लिए क्षमा माँगता हैं तो शिवजी उसे क्षमा करते हैं साथ मे यह वरदान देते हैं कि जब भी उनके सामने बकरे की आवाज निकालेगा तो वे खुश होंगे और भक्तों को आशीष देंगे ।इसी प्रकार शिवजी दुष्टों को भी अपने नाम के साथ जोडकर उन्हें मान देते हैं बशर्ते वे सुधर गये हों । राम जी के आगृह पर रामेश्वरम्म में स्थापित होते हैं और रामेश्वरम् का अर्थ बताते है- राम है जिनके ईश्वर । भस्मासूर जैसों को मनचाहा वरदान देते हैं । अर्थात् शिव सारे जीवन और नैतिक मूल्यों के जीवन्त प्रतीक हैं। अनेंक मौको पर उन्होंने सृष्टि को बचाया है।कभी-कभी उन्हें सृष्टि का संहारक कहने पर आश्चर्य होता हैं , लेकिन जब पाप बढता हैं तो वे ताण्डव करते हैं।अर्थात् अति सर्वत्र वर्जयते को प्रतिपादित करते हैं ।
          शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। अर्थात शिव आध्यात्म आदर्श के सच्चे प्रतीक हैं । प्रेम से बोलिए हर-हर महादेव।
आकाश सिंह “अभय “
कार्बीआंगलांग,असम

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