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रात की चादर में लिपटा हुआ
तू हर पल मेरे संग रहा
जब साथ छोड़ा सबने मेरा
मेरे पास तेरा ही रंग रहा।
तु खड़ा होता साथ मेरे
आँखो की अनकही बात लिए
सबसे अलग, सबसे दूर भी मैं
रहता हूँ सदा तेरा साथ लिए ।
सैकड़ों के बीच होकर भी
मैं तुझसे जुदा न हो पाती
कभी दूर भागती मैं
कभी तेरे लिए तरस जाती।
चेहरे पर हर मुस्कान में भी
मेरे दर्द की बातें छिपी हुई
तु ही बस इक दोस्त मेरा
ये दुनिया मेरी कभी नहीं हुई।
कभी समझ सकी तुझको न मैं
तू हैं अपना या बेगाना
ज्यो बादलों में छिप गया चाँद
तुझे ढूंद रही बनी दीवाना।
जब पर्दा उठा समझ आया
तू ही मेरे भीतर रहता हैं
तेरे लहर में शामिल होकर ही
मेरा दिल भी बहता रहता है।
~ स्वर्णाली साहा
जेएनवी हाइलाकांदी