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केंद्र सरकार द्वारा मिले नए अधिकारों से असम बंगाल और पंजाब में बढ़ेगी बीएसएफ की ताकत

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नई दिल्ली: गृह मंत्रालय के नए एलान के मुताबिक अब बीएसएफ के अधिकारी पंजाब, बंगाल और असम जैसे राज्यों में सीमा के अंदर 50 किलोमीटर के दायरे में गिरफ्तारी, सर्च अभियान और जब्ती जैसी कार्रवाई का फैसला खुद ले सकेंगे।

 

पहले बीएसएफ को ये ताकतें सीमा से सिर्फ 15 किमी तक के दायरे में दी गई थीं।

 

जहां केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि यह फैसला राजनीतिक मकसद से नहीं, बल्कि सीमाई इलाकों पर सुरक्षाबलों की क्षमताओं को मजबूत करने और तस्करी के नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने के लिए लिया गया है, वहीं विपक्ष द्वारा शासित राज्यों की सरकार ने केंद्र की भाजपा सरकार को निशाने पर ले लिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने तो इस कदम को भारत के संघीय ढांचे पर हमला करार दे दिया।

गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सीमा सुरक्षा बल कानून, 1968 में बीएसएफ से सलाह-मशविरा करने के बाद ही यह बदलाव किए गए हैं। इससे सीमा से सटे राज्यों में सुरक्षाबलों के अधिकार समान क्षेत्र में लागू रखने में मदद मिलेगी। इन विवादों के बीच अमर उजाला आपको बता रहा है कि बीएसएफ की ताकतों में आखिर किस तरह की बढ़ोतरी की गई है और इससे विपक्ष शासित राज्यों की नाराजगी क्यों बढ़ गई है।

 

क्या हुए बीएसएफ के अधिकारों को लेकर बदलाव? केंद्र सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि वह 2014 में जारी किए गए एक पिछले नोटिफिकेशन को संशोधित कर रही है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे राज्यों में तैनात बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का ब्योरा दिया गया था। बीएसएफ के पास भारत-बांग्लादेश के बीच 4096.7 किलोमीटर और भारत-पाकिस्तान के बीच 3323 किलोमीटर सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। इसके अलावा इस सुरक्षाबल के पास छत्तीसगढ़ और ओडिशा में मौजूद माओवाद को भी खत्म करने का जिम्मा है। केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा बल कानून, 1968 के सेक्शन 139 के तहत इन नियमों में समय-समय पर बदलाव कर सकती है।

 

1. सरकार ने नए नोटिफिकेशन में कहा है कि बीएसएफ के नए अधिकार क्षेत्र में मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय जैसे राज्य और जम्मू-कश्मीर, लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेश के पूरे इलाके आएंगे।

 

2. इसके अलावा गुजरात, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में सीमा से अंदर 50 किमी का दायरा भी बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में ही रहेगा।

 

पहले क्या थीं बीएसएफ की ताकत? इससे पहले 3 जुलाई 2014 को जो नोटिफिकेशन जारी हुआ था, उसके तहत बीएसएफ को पासपोर्ट कानून, एनडीपीएस कानून (नशीले पदार्थों से जुड़े मामले) और कस्टम्स कानून के तहत अपने अधिकर क्षेत्र में कार्रवाई की इजाजत थी।

 

1. यह अधिकार क्षेत्र मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में सभी इलाकों में था।

 

2. गुजरात में सीमा से लगे 80 किमी और राजस्थान में सीमा से 50 किमी के दायरे में।

 

3. पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा के अंदर 15 किमी दायरे तक था।

 

क्या है इन बदलावों का मतलब? 1. इन बदलावों के तहत अब बीएसएफ को भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश से सटे सीमाई राज्यों में 50 किमी अंदर तक सर्च अभियान चलाने, जब्ती कार्रवाई के अलावा गिरफ्तारी का भी अधिकार होगा।

 

2. नए नोटिफिकेशन के तहत अब बीएसएफ का सबसे निचली रैंक वाला अधिकारी भी सीआरपीसी के तहत और मजिस्ट्रेट के आदेश और वॉरंट के बिना कार्रवाई कर सकता है। यानी बीएसएफ का अधिकारी किसी संज्ञेय अपराध के मामले में किसी व्यक्ति पर तब कार्रवाई कर सकते हैं, अगर वह (i) संदिग्ध हो या (ii) उसके खिलाफ पुष्ट जानकारी हो या (iii) उसके खिलाफ तर्कसंगत शिकायतें मिली हों।

 

3. इसके अलावा नए नियम के तहत बीएसएफ के अधिकारी सीमा से 50 किमी के दायरे में उन जगहों की छानबीन भी कर सकेंगे, जहां गिरफ्तारी के लिए खोजे जा रहे संदिग्ध के छिपे होने या पहले मौजूदगी के सबूत रहे हों।

 

जिन राज्यों में बढ़ा बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र, वहां क्या है सरकारों का रुख? 1) वो राज्य जहां नहीं उठी इस फैसले के खिलाफ आवाज

जिन 12 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में नए नियम के तहत बीएसएफ की ताकत बढ़ी है, उनमें पूर्वोत्तर के छह राज्य- असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और मेघालय शामिल हैं। इन सभी राज्यों में भाजपा सीधे तौर पर यह परोक्ष रूप से सरकार का हिस्सा है। जहां असम, त्रिपुरा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है, वहीं मिजोरम, नगालैंड और मेघालय में भाजपा क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन का हिस्सा है। खास बात यह है कि इन राज्यों में अलगाववादी ताकतों के लगातार सक्रिय रहने के कारण सुरक्षाबलों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। ऐसे में बीएसएफ को लेकर इन राज्यों में विरोध के स्वर नहीं उठे हैं।

 

उधर, गुजरात में जहां भाजपा की सरकार है, वहीं यहां बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र पहले के 80 किमी से घटकर 50 किमी पर आ गया है। साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से राज्य का दर्जा छीने जाने के बाद इन पर केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण है। यानी इन राज्यों में भी बीएसएफ की अतिरिक्त ताकतों का विरोध सामने आने की फिलहाल संभावना नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद यहां नए नियमों का विरोध इसलिए नहीं किया जा रहा, क्योंकि बीएसएफ का दायरा पहले की तरह 50 किमी पर ही स्थिर है।

 

2) वो राज्य जहां केंद्र सरकार का जमकर विरोध हुआ

केंद्र के इन नए नियमों के विरोध में मुख्य तौर पर पंजाब और पश्चिम बंगाल सामने आए हैं। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा के विपक्ष में खड़ीं कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सरकारें हैं। जहां पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बुधवार को इस मामले में ट्वीट में अमित शाह को टैग कर लिखा, “अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगे 50 किलोमीटर के दायरे में बीएसएफ को अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं, भारत सरकार के इस एकतरफा फैसले की कड़ी निंदा करता हूं, यह संघीय ढांचे पर सीधा हमला है। मैं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इस तर्कहीन निर्णय को तुरंत वापस लेने का आग्रह करता हूं।”

 

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने केंद्र के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में 15 से 50 किलोमीटर तक बढ़ाने वाली गृह मंत्रालय की अधिसूचना राज्यों के संवैधानिक सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस अधिकार का उल्लंघन करती है। इससे आधा पंजाब अब बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा। चरणजीत चन्नी को इसका विरोध करना चाहिए। तिवारी ने पूछा, यह भारत सरकार को एक वैकल्पिक पुलिसिंग प्रतिमान को संस्थागत बनाने की अनुमति देता है। क्या इसके लिए पंजाब सरकार से परामर्श किया गया था?

 

उधर, पश्चिम बंगाल सरकार में परिवहन मंत्री और टीएमसी नेता फिरहाद हकीम ने कहा, “केंद्र सरकार देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है। कानून और व्यवस्था राज्य का विषय हैं, लेकिन केंद्र सरकार केंद्रीय एजेंसियों के जरिए दखल देने की कोशिश कर रही है। उनके अलावा टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, ”हम इस फैसले का विरोध करते हैं। यह राज्य के अधिकारों में अतिक्रमण है। राज्य सरकार को सूचित किए बिना बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार करने की तुरंत क्या जरूरत पड़ी। अगर बीएसएफ को कहीं पर तलाशी लेनी है, तो वह राज्य पुलिस के साथ मिलकर ऐसा हमेशा ही कर सकती है। कई साल से यही चलता आ रहा है। यह संघीय ढांचे पर हमला है।”

 

तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने आरोप लगाया कि केंद्र और गृह मंत्री अमित शाह राज्यों को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। सीमावर्ती गांवों में मानवाधिकार के मामले में बीएसएफ का ट्रैक रेकॉर्ड अच्छा नहीं है। उनके अलावा बंगाल से कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया और कहा कि गृह मंत्रालय को इस तरह की छेड़खानी में नहीं पड़ना चाहिए, वरना इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।”

 

क्या है अधिकार क्षेत्र बढ़ाने पर बीएसएफ का पक्ष? इस मामले में विवाद उभरने के बाद बीएसएफ ने बुधवार को ही कहा कि यह सिर्फ अलग-अलग राज्यों में उसके अधिकार क्षेत्र को एकरूपता देने से जुड़ा कदम है। बीएसएफ ने कहा, “11 अक्टूबर 2021 को किया गया संशोधन सिर्फ राज्यों में उसकी ताकतों और जिम्मेदारियों को नियमित और एकरूप बनाने का कदम है। इससे अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे राज्यों में सीमापार से होने वाली आपराधिक गतिविधियों को रोकने के अभियान मजबूत होंगे।”

 

क्या हैं बीएसएफ की ताकत बढ़ने पर चिंताएं? बीएसएफ की ताकत बढ़ने पर कुछ चिंताएं भी जाहिर की गई हैं। दरअसल, बीएसएफ को मुख्य तौर पर सीमाई इलाकों पर ही सुरक्षा का जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन अब इन दायरों को 50 किमी तक बढ़ा देने से बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र कई छोटे राज्यों में काफी अंदरुनी इलाके तक पहुंच जाएगा।

 

1. इससे एक समस्या यह होगी कि बीएसएफ जब भी अंदरुनी क्षेत्र में कार्रवाई करेगी, तो उसका और स्थानीय पुलिस का अधिकार क्षेत्र टकराएगा और दोनों के बीच विवाद की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

 

2. हालांकि, इसके उलट एक तर्क यह भी है कि पहले जहां बीएसएफ को अपने दायरे के बाहर पहुंच चुके अपराधी को पकड़ने के लिए स्थानीय पुलिस पर निर्भर रहना पड़ता था, वहीं अब उन्हें किसी खुफिया जानकारी के आधार पर संदिग्ध को पकड़ने में खास दिक्कत नहीं आएगी। इससे कार्रवाई में समय की खासा बचत होगी।

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