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बकरी के मूंह में तुंबा ( हास्य व्यंग्य)– मदन सुमित्रा सिंघल

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जब अयोग्य व्यक्ति को ऐसे मंच पर आप चढा देंगे तो नतीजा आपको नही बल्कि पूरे समाज को भूगतना पङेगा। यह सच है कि किसी भी धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक एवं अन्य संस्था को चलाने के लिए धन जमीन गाङी वाहन तथा बहुत सी जरूरत होती है लेकिन ऐसे लोग धनाड्य होने के साथ साथ उस संस्था के अनुसार पढेलिखे मिलनसार संस्थानो के काम के अनुभवी भी होने चाहिए।  लेकिन दूर्भाग्य है कि ,रुप ठगे भाग्य खाय,, के अनुसार *सुत दारा एवं लक्ष्मी पापी के भी होय* यानि पुत्र रत्न सुंदर पत्नी एवं लक्ष्मी यह सब अनपढ़ गंवार अयोग्य व्यक्ति के पास भी हो जाती है। व्यक्ति पूजन के बजाय शिक्षित दिक्षित विद्वान ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठा वाले व्यक्ति को ही जिम्मेदारी दी जानी चाहिए‌। निखट्टू राम अपने नाम के अनुरूप बेढंगा रंगीन मजाज भोंडा एवं झगङालू मूर्ख था लेकिन धन संम्पति की कोई कमी नहीं थी। जब भी जरूरत पड़ती जितना धन एवं जमीन लेने के साथ उसे अध्यक्ष मुख्य अतिथि बना दिया जाता था स्टेज पर कुर्सी पर बैठकर जमकर बिङी पीता। माइक पर बोलने से शुभसंदेश की जगह श्रद्धांजलि देने तथा शोकसभा में मखौलबाजी करता तो बाहर से आये अतिथि पुछते कि निखटू लाल जी को यहाँ क्यों बिठाया तो सरपंच बोला कि दुध देने वाली गाय की लात खाने की हमारी मजबूरी है।इसलिए ,,बकरी के मूंह में तुंबा,,  वाली कहावत घटित हर जगह होती है‌।

मदन सुमित्रा सिंघल 
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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